
एक समय था जब STD PCO बूथ के बाहर लंबी कतार लगती थी. लोग अपने से फोन पर बात करने के लिए घंटों इंतजार करते थे. लेकिन पिछले एक दशक में मोबाइल फोन की क्रांति ने एसटीडी को इतिहास बना दिया. मोबाइल कंपनियां कॉलिंग की सुविधा के साथ लगभग फ्री डेटा दे रही हैं. इसके साथ कई ओटीटी ऐप का सब्सक्रिप्शन अलग से मिलता है. लोग चंद सेकेंड में वीडियो कॉल पर अपनों से आमने-सामने बात करते हैं. शायद कम ही लोग जानते होंगे कि भारत में आज ही के दिन 25 नवंबर 1960 को पहली बार एसटीडी सेवा शुरू हुई थी. आइए जानते हैं एसटीडी से जुड़ी जरूरी बातें.
STD का सफर कैसे शुरू हुआ था?
STD का पूरा नाम सब्सक्राइबर ट्रंक डायलिंग है, जिसका मतलब है बिना ऑपरेटर की मदद से टेलिफोन यूजर को ट्रंक कॉल करने की सुविधा देना. इससे पहले ट्रंक कॉल का चलन था जिसमें पहले ऑपरेटर को फोन किया जाता था फिर उस यूजर से कॉल कनेक्ट की जाती थी जिससे बात करनी है.
19वीं शताब्दी में, दूरसंचार सेवाओं ने ऑटोमेटिक सिस्टम डेवलेप किया था, जो ग्राहकों को प्रत्येक टेलीफोन पर स्थापित टेलीफोन डायल के उपयोग से जोड़ सकती थी. 1940 में, यूएस और कनाडा में डायरेक्ट डिस्टेंस डायलिंग टेक्नोलॉजी और मैथड को इजाद किया था, जिसने टेलीफोन ग्राहकों को ऑपरेटर के बिना लंबी दूरी की टेलीफोन कॉल डायल करने में सक्षम बनाया. यूके में, STD की शुरुआत 5 दिसंबर, 1958 को हुई थी. हालांकि, 1979 तक ऐसा नहीं था कि STD प्रक्रिया पूरी हो गई थी.

यूके में, जब महारानी एलिजाबेथ ब्रिस्टल में थीं, उन्होंने 5 दिसंबर, 1958 को एडिनबर्ग डायल करके एसटीडी का इस्तेमाल किया, जो सबसे दूर की कॉल थी, जिसे यूके में सीधे डायल किया गया था. 8 मार्च, 1963 को टेक्नोलॉजी का विस्तार हुआ, जब लंदन में ग्राहक सीधे अंतरराष्ट्रीय डायरेक्ट डायलिंग का उपयोग करके पेरिस डायल करने में सक्षम थे.
इस बीच, भारत में भी एसटीडी सेवा शुरू हो गई थी. 25 नवंबर 1960 को पहली बार एसटीडी सेवा शुरू हुई थी. जब कानपुर से लखनऊ के बीच एसटीडी सर्विस के तहत पहला कॉल किया गया था. बाद में देश के प्रमुख शहरों के इस सेवा से जोड़ा गया.

कैसे काम करता थी STD सेवा?
एसटीडी सर्विस के जरिए कॉल करने के लिए शहरों से लेकर गांवों तक को एसटीडी कोड दिया गया था. इस कोड के साथ यूजर का टेलिफोन नंबर डायल किया जाता था जैसे नई दिल्ली का कोड 011, उत्तर प्रदेश को कोड 0120 और हरियाणा का कोड 0124. इन एसटीडी कोड के साथ पूरा नंबर 10 अंकों का होता था. आमतौर पर एसटीडी बूथ और बाद में घरों में भी टेलिफोन डायरेक्टरी के साथ एसटीडी कोड्स की बुक मिल जाया करती थी.
कैसे खत्म होने की कगार पर पहुंची STD सर्विस?
मोबाइल फोन की शुरुआत से एसटीडी का दौर खत्म होने लगा. जैसे-जैसे मोबाइल फोन का इस्तेमाल बढ़ा, वैसे-वैसे एसटीडी का चलन कम होता चला गया और आज यह मुश्किल से देखने को मिलता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2008 में देश में लगभग 50 लाख एसटीडी बूथ थे, जो एक ही साल में (2009 में) लगभग 45 लाख हो गए थे. तकरीबन 6 साल में इनकी संख्या घटकर 6 लाख के आस-पास रह गई थी.

2018 में भारतीय रेलवे ने भी स्टेशनों पर पीसीओ बूथ की अनिवार्यता खत्म कर दी थी. जिन दुकानों पर कभी एसटीडी बूथ हुआ करते थे, वहां अब मोबाइल फोन, सिम कार्ड, चार्जर आदि दिखने लगे हैं. जहां लोग अपनों का हाल जानने के लिए घंटों लाइन में खड़े रहते थे, वहां अब बिस्तर पर लेटे-लेटे घंटों बात होती है.