Success Story IAS Manuj Jindal: 'चुनौतियों को मौके में बदलो, और आगे बढ़ो जीत आपकी होगी, और कामयाबी आपके कदम चूमेगी.' गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले IAS मनुज जिंदल के सामने भी चुनौतियां कम नहीं थीं. 18-19 साल की उम्र में डिप्रेशन होना और उससे बाहर निकलकर अपना नाम बनाना आसान नहीं था. छोटी-सी उम्र में मनुज के सामने कई चैलेंज थे, लेकिन उन्होंने डटकर सामना किया और आज एक IAS ऑफिसर हैं. इस दौर से बाहर आकर एक आईएएस अफसर बनने की उनकी पूरी कहानी उन युवाओं को मोटिवेट करती है जो बहुत जल्द हार मान लेते हैं.
18 साल की उम्र में NDA में हुआ था सेलेक्शन
मनुज जिंदल शुरुआती पढ़ाई गाजियाबाद से करने के बाद वे देहरादून के एक स्कूल में पढ़ने चले गए. स्कूल की पढ़ाई पूरी करते ही उनका सीधे एनडीए में चयन हो गया. उन्होंने यूपीएससी एनडीए में 18वीं रैंक हासिल की थी. aajtak.in से बातचीत में मनुज जिंदल ने बताया कि यह 2005 की बात है. "मैं 18 साल था. तब मेरा एनडीए में सेलेक्शन हो गया था." ट्रेनिंग एकेडमी में उन्होंने पहले टर्म में तो बहुत अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन दूसरा टर्म आते आते वो डिप्रेशन का शिकार हो गए.
डिप्रेशन ने घेरा तो NDA एकेडमी से निकाला
मनुज बताते हैं, 'पहले टर्म में मेरा बहुत अच्छा जा रहा था लेकिन तब भी मैं मेंटली सेटल नहीं हो पा रहा था. सेकेंड टर्म में मैं बहुत डिप्रेशन में था. मेरे हाथ और पैर में इंजरी हो गई थी, इसकी वजह भी मैं यही मानता हूं, कि मैं मेंटली सेटल नहीं था, इसलिए फिजिकली भी बहुत अच्छा नहीं कर पा रहा था. मेरे मन में हमेशा यही ख्याल आता था कि मैं इसके लिए नहीं बना हूं, मुझे जिंदगी में कुछ और करना है. फिर मेरा डिप्रेशन इतना बढ़ गया कि अधिकारियों ने मुझे अस्पताल में भर्ती करा दिया. वहां तीन चार महीने मेरा इलाज चला. दवाईयां खाईं. पेरेंट्स सोच रहे थे कि अभी नया-नया है, जल्द सेटल हो जाऊंगा. उन्होंने भी मुझे समझाया. लेकिन मैं एकदम सेटल नहीं हो पा रहा था. मेरे डिप्रेशन के कारण मैं खुद को समझा नहीं पा रहा था कि आगे क्या कैसे करूंगा. एकेडमी ने मुझे निकाल दिया था."
भारत छोड़ा, विदेश जाकर की पढ़ाई
एनडीए से निकाले जाने के बाद उन्होंने आगे पढ़ाई करने का मन बनाया. उनके दोस्तों ने भारत के अलावा विदेशी विश्वविद्यालयों में अप्लाई करने की सलाह दी, जहां अच्छी स्कॉलरशिप मिल जाए. हुआ भी ऐसा ही, मनुज को यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में पढ़ने का मौका मिला. यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया से ग्रेजुएशन करने के बाद बार्कलेज में जॉब भी मिल गई. वहां अच्छी सैलरी पैकेज पर तीन साल नौकरी भी की, लेकिन घर से दूर रहने का गम और खालीपन था.
छोटे भाई से मिली प्रेरणा, फिर 12 साल बाद यूं बने IAS
जब मनुज वर्जीनिया में नौकरी कर रहे थे तब उनका छोटा भाई UPSC एग्जाम की तैयारी कर रहा था. वे कहते हैं, 'इस दौरान जब मैं इंडिया आया तो मेरा छोटा भाई यूपीएससी की तैयारी कर रहा था. मेरा भी भारत वापस लौटने और यहां कोई सार्थक काम करने का मन कर रहा था. उसने मुझे समझाया और मैंने तैयारी करके साल 2014 में पहला अटेंप्ट दिया. पहले अटेंप्ट में ही मेरा प्री और मेंस में सेलेक्शन हो गया था, लेकिन इंटरव्यू में रैंक नहीं मिली. दूसरे अटेंप्ट में भी प्री मेंस निकल गए लेकिन इंटरव्यू के बाद वो रिजर्व लिस्ट में आ गए. लेकिन उन्होंने तैयारी नहीं रोकी और साल 2017 में ऑल इंडिया 52वीं रैंक प्राप्त की. वर्तमान में वो औरंगाबाद के पास स्थित जालना जिला सीईओ जिला परिषद के तौर पर तैनात हैं.
मनुज कहते हैं कि कभी भी बुरे दौर में हार नहीं माननी चाहिए. हमेशा ये सोचना चाहिए कि कितना भी बुरा वक्त हो, वो टल जरूर जाता है. इसके अलावा अपनी कमान अपने हाथ में रखें, अपनी मेहनत पर विश्वास करें और हमेशा मन में ये दोहराते रहें कि जो भी है मेरे हाथ में है, चलते रहो बढ़ते रहो.