देशभर में पिछले एक हफ्ते में कई जांचों ने एक डरावनी साजिश का पर्दाफाश किया है. इसे 'व्हाइट कोट टेरर कांस्पिरेसी' कहा जा रहा है. इसमें प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों का नाम सामने आया है. ये डॉक्टर अमोनियम नाइट्रेट और अन्य विस्फोटक सामग्री को किराए के कमरों और गाड़ियों में छिपा रहे थे.
यह तरीका अपनाया गया ताकि किसी को शक न हो. एजेंसियों का कहना है कि ये डॉक्टर एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे. जांच में पता चला कि लंबे प्लान के तहत बड़ी मात्रा में केमिकल को सिविलियन चैनलों से ले जाया जा रहा था. कानूनन उपयोग के लिए अधिकृत लोगों के जरिए यह काम हो रहा था.
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तेजी से चल रही जांच में कई गिरफ्तारियां हुई हैं. पुलिस इसे व्हाइट-कॉलर टेरर मॉड्यूल बता रही है. यह जांच कई राज्यों में फैल रही है. पुलिस के बयानों और दस्तावेजों से पता चलता है कि ये ऑपरेटिव्स अपनी प्रोफेशनल कवर का फायदा उठा रहे थे. इनके पास मेडिकल डिग्री और अस्पतालों में नौकरियां थीं.

ये किराए के फ्लैट लेते या अस्पताल के पास स्टोरेज का इस्तेमाल करते. अमोनियम नाइट्रेट को छोटी-छोटी खेपों में खरीदते या डिलीवर करवाते. इससे तुरंत अलर्ट नहीं होता. फिर इसे सेफ हाउस में इकट्ठा करते.
एक बड़ा मामला फरीदाबाद का है. वहां 360 किलो और 2900 किलो अमोनियम नाइट्रेट के साथ अन्य सामग्री बरामद हुई. यह एक लोकल मेडिकल संस्थान में काम करने वाले डॉक्टर की गिरफ्तारी के बाद जब्त की गई.
सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों ने बताया कि आतंकी संगठन जानबूझकर प्रोफेशनल्स को भर्ती करते हैं. डॉक्टरों को रेडिकलाइज करते हैं. वजह? डॉक्टरों पर कम शक होता है. इंडिया टुडे को सूत्रों ने कहा कि उन्हें बताया जाता है कि डॉक्टर पर कोई शक नहीं करेगा. डॉक्टरों को समाज में भरोसा मिलता है. अस्पताल के काम के बहाने घूम सकते हैं.
मेडिकल सप्लाई के नाम पर सामान मंगवा सकते हैं. इससे ऑपरेशन आसान हो जाता है. हाल की खबरों में कई राज्यों में डॉक्टरों की गिरफ्तारी हुई है. इससे चिंता बढ़ी है कि यह नेटवर्क हो सकता है, न कि अकेले लोग.

अमोनियम नाइट्रेट एक ऑक्सीडाइजर है. यह खाद और कानूनी विस्फोटकों में इस्तेमाल होता है. लेकिन ईंधन के साथ मिलाकर (ANFO मिश्रण) या गंदे ढेर में रखने पर यह जोरदार धमाका कर सकता है. दुनिया भर में आतंकियों ने इसका इस्तेमाल किया है. भारत में भी पिछले 20 सालों में कई बार हुआ है.
इसलिए भारत के विस्फोटक कानून और अमोनियम नाइट्रेट नियमों के तहत इसकी स्टोरेज, ट्रांसपोर्ट और बिक्री पर सख्त कंट्रोल है. परमिट जरूरी है. सख्त तरीके से हैंडल करना पड़ता है. आबादी वाले इलाकों में बड़ी मात्रा जमा करना मना है. एक्सप्लोसिव एक्सपर्ट्स कहते हैं कि हाल की छापेमारी में बरामद मात्रा से कई बड़े IED (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) बन सकते थे.
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शक से बचने के लिए एक बड़ी खेप न भेजकर बार-बार छोटी डिलीवरी करवाई जाती. अलग-अलग नामों से या अस्पताल के पास किराए के पते पर. डॉक्टर बार-बार घूम सकते हैं. कूरियर से मेडिकल सामान मंगवा सकते हैं. इससे पैकेट पर सवाल नहीं उठते.

अमोनियम नाइट्रेट नियमों में परमिट जरूरी है. लेकिन कुछ बिक्री स्थानों पर ढीली निगरानी है. थर्ड-पार्टी मध्यस्थों का इस्तेमाल करके खरीद लेते हैं. ऑनलाइन अनवेरिफाइड सप्लाई से लूपहोल्स बन जाते हैं. संगठित अपराधी इनका फायदा उठाते हैं.
जांचकर्ता उन प्रोफेशनल्स की रेडिकलाइजेशन और भर्ती को समझने की कोशिश कर रहे हैं, जो समाज में भरोसेमंद हैं. वे रेगुलेटरी या लॉजिस्टिकल गैप्स का गलत इस्तेमाल कैसे करते हैं, यह जानना चाहते हैं. पुलिस और NIA की जांच जारी है. फोन लिंक्स, लेजर एंट्रीज और अन्य जानकारी ट्रेस की जा रही है.
इससे बड़ा नेटवर्क उजागर हो सकता है. एक्सपर्ट्स चेतावनी दे रहे हैं कि ऐसी साजिशें बढ़ रही हैं. प्रोफेशनल्स पर नजर रखनी होगी. रेगुलेशन्स को और सख्त करना जरूरी है. ताकि भरोसे के नाम पर खतरा न बने.