एंटीलिया केस से चर्चाओं में आए सहायक पुलिस निरीक्षक (API) सचिन वाजे का विवादों से पुराना नाता रहा है. वाज़े को पहले 2004 में ख्वाजा यूनुस एनकाउंटर मामले में गिरफ्तार किया गया था. उसके खिलाफ वो मुकदमा अभी चल रहा है. उस मामले में राहत मिलने और मुंबई पुलिस के साथ काम पर वापस लौटने के केवल दस महीने बाद ही अब सचिन वाज़े को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने गिरफ्तार कर लिया है.
इस बार, वाज़े राजनीतिक परेशानी में फंस गया है, क्योंकि उसे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का करीबी माना जाता था. यही वजह है कि उसे विपक्षी दलों ने भी निशाना बनाया है. इस मामले में उसका नाम आने पर ठाकरे ने कहा था कि सचिन वाज़े ओसामा बिन लादेन नहीं है. किसी व्यक्ति को निशाना बनाना और उसे फांसी दे देना और फिर जांच करना सही नहीं है.
टीआरपी घोटाला
मुंबई क्राइम ब्रांच की क्रिमिनल इंटेलिजेंस यूनिट (CIU) के हेड के तौर पर अपने कार्यकाल में सचिन वाज़े ने TRP घोटाले सहित कई हाई-प्रोफाइल मामलों को संभाला. जिसमें उसने 24 दिसंबर को ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) पार्थ दास दासगुप्ता सहित कुल 15 आरोपियों को गिरफ्तार किया था.
अर्नब की गिरफ्तारी
वाज़े उस अलीबाग पुलिस की उस टीम में भी शामिल था, जिसने अक्टूबर 2020 में मुंबई के लोअर परेल इलाके से रिपब्लिक टीवी के मालिक अर्नब गोस्वामी को अनवय नाइक सुसाइड केस में उसके घर से गिरफ्तार किया था.
डीसी छाबड़िया का बैंकिंग घोटाला
सचिन वाज़े ने ही एक इंटरस्टेट कार घोटाले का खुलासा किया था. इस मामले में उसने 28 दिसंबर, 2020 को प्रसिद्ध स्पोर्ट्स कार डिजाइनर दिलीप छाबड़िया को गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने जांच में पाया था कि दिलीप छाबड़िया और उसकी फर्म दिलीप छाबड़िया (डीसी) डिज़ाइन्स प्राइवेट लिमिटेड ने कथित तौर पर कुछ गैर-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (NBFC) डीसी स्पोर्ट्स कार खरीदने के इच्छुक ग्राहकों को लोन ऑफर करती थी. पुलिस ने पुणे में उनकी वर्कशॉप पर छापा मारा और जनवरी 2021 में 14 कार और 40 इंजन भी जब्त किए थे.
ऋतिक रोशन-कंगना रनौत केस
अभी हाल ही में सचिन वाज़े ने एक मामले में बॉलीवुड अभिनेता ऋतिक रोशन के बयान दर्ज किए थे. इस मामले में ऋतिक रोशन ने साल 2016 में कंगना रनौत के खिलाफ साइबर थाने में दोनों के बीच ईमेल का आदान-प्रदान करने के संबंध में केस दर्ज कराया था. इस मामले को बाद में आगे की पूछताछ के लिए CIU में स्थानांतरित कर दिया गया था. वाज़े ने पिछले महीने ही ऋतिक रोशन का ताज़ा बयान दर्ज किया था.
1990 में महाराष्ट्र पुलिस में हुआ था भर्ती
सचिन वाज़े 1990 में सब इंस्पेक्टर के रूप में महाराष्ट्र पुलिस बल में भर्ती हुआ था. उसकी पहली तैनाती नक्सल प्रभावित क्षेत्र गढ़चिरौली में थी. लेकिन 1992 में उसे ठाणे सिटी पुलिस में स्थानांतरित कर दिया गया था.
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर बनाई पहचान
बाद में सचिव वाज़े ठाणे अपराध शाखा के विशेष दस्ते में आया और उसने ठाणे क्षेत्र में एनकाउंटर करना शुरू किए. वो मुठभेड़ विशेषज्ञ प्रदीप शर्मा की तारीफ करता था. और कुछ मुठभेड़ के बाद वाज़े को लोग "एनकाउंटर स्पेशलिस्ट" के तौर पर जानने लगे. वो उस एनकाउंटर टीम में शामिल रहा, जिसने मुंबई और ठाणे क्षेत्र में 60 से अधिक कथित अपराधियों को मार डाला.
2007 में छोड़ दी थी पुलिस की नौकरी
साल 2003 तक वाज़े के लिए सब ठीक चल रहा था. मीडिया में उसकी पहचान थी. उसका नाम और तस्वीरें अक्सर अखबारों और टीवी चैनलों में दिखाई देती थीं. लेकिन 2004 में ख्वाजा यूनुस मामले में उसकी कथित भूमिका के कारण उसे निलंबित कर दिया गया था. 2007 में उसने पुलिस विभाग अलविदा कहते हुए इस्तीफा दे दिया था. साल 2008 में वाज़े ने क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी शिवसेना का दामन थाम लिया था.
सचिन वाज़े ने लिखी हैं तीन किताबें
उसे तकनीक के बारे में अच्छी जानकारी थी. साल 2010 में उसने 'लाई भरी' नाम से एक सोशल नेटवर्किंग साइट भी शुरू की थी. सचिन वाज़े ने कथित तौर पर एक सॉफ्टवेयर भी विकसित किया था. उसने तीन किताबें भी लिखीं. एक शीना बोरा हत्या कांड पर और दूसरी 26/11 आतंकवादी हमले में शामिल लश्कर ऑपरेटिव डेविड हेडली पर. बाद में वाज़े ने मुंबई में 26/11 के आतंकी हमलों पर आधारित एक किताब भी लिखी है, जिसका नाम है 'जिन्कुन हरेली लढाई.'
स्वीकार नहीं किया गया था सचिन वाज़े का इस्तीफा
साल 2003 में पुलिस हिरासत में ख्वाजा यूनुस की मौत के मामले में सचिन वाज़े पर हत्या का आरोप था. इसी के चलते उसने 30 नवंबर, 2007 को पुलिस विभाग से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, उसका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया था और इसलिए उसे फिर से बहाल किया जा सकता था. दरअसल, इसी मामले में तीन अन्य पुलिसकर्मी भी आरोपी थे. राजेंद्र तिवारी, राजाराम निकम और सुनील देसाई. इस भी को 6 जून, 2020 को एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से बहाल किया गया था. इसी आदेश की वजह से 14 अन्य पुलिसकर्मियों के निलंबन को भी रद्द कर दिया था.
इस्तीफे के बाद वाज़े शिवसेना में शामिल हो गया था. 2 दिसंबर, 2002 को घाटकोपर बम विस्फोट मामले में ख्वाजा यूनुस एक संदिग्ध था. वह 7 जनवरी 2003 को लापता हो गया था. पुलिस ने दावा किया था कि वह पुलिस वैन से कूदकर उस वक्त फरार हो गया था, जब उसे जांच के लिए औरंगाबाद ले जाया जा रहा था.
वाज़े के खिलाफ दर्ज हुआ था हत्या का मामला
इस मामले में यूनुस का परिवार उच्च न्यायालय चला गया. मामले पर सुनवाई के बाद इस केस को राज्य आपराधिक जांच विभाग (CID) को स्थानांतरित कर दिया गया. सीआईडी ने ख्वाजा यूनुस के लापता होने की जांच की और इसे हिरासत में मौत का मामला माना. इस केस में वाज़े और तीन अन्य अधिकारियों के खिलाफ हत्या और सबूत नष्ट करने का मामला दर्ज किया गया था.