अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत की जांच अलग-अलग पहलुओं से की जा रही है. लेकिन हाई प्रोफाइल मौत के इस मामले में पुलिस की जांच का पहला चेहरा है एफआईआर. जिसमें आईपीसी की धारा 306 लगाई गई है. यानी नरेंद्र गिरी को आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया. लेकिन प्रयागराज पुलिस इस केस की एफआईआर में अभी और भी धाराएं जोड़ सकती हैं.
कानून के जानकारों का कहना है कि सुसाइड नोट के बाद इस केस में पुलिस को ब्लैकमेलिंग यानी आईपीसी की धारा 503 और आपराधिक साजिश जैसी धाराओं को जोड़ना पड़ेगा. क्योंकि नरेंद्र गिरी के सुसाइड नोट में कई लोगों के नाम लिखे गए हैं, लिहाजा इसमें पुलिस कॉमन इंटेंशन यानी धारा 34 का इस्तेमाल भी कर सकती है.
आईपीसी में किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने को लेकर धारा 306 का प्रावधान है. ये धारा उस व्यक्ति पर लगाई जाती है, जिसने किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए मजबूर किया हो. इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर 10 साल की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है. यह गैर जमानती धारा है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सांखला के मुताबिक आईपीसी में यह इतनी पुरानी धारा है कि इसमें आसानी से मुलजिम को मुजरिम मुकर्रर कराना बेहद मुश्किल काम होता है. अभिनेत्री जिया खान आत्महत्या कांड में सूरज पंचोली को कुछ दिन जेल में भी रहना पड़ा, आज तक ये केस अदालतों में पड़ा है. और भी कई जाने-माने आत्महत्या के केस अदालतों में लंबित हैं. वजह वही कि सिर्फ सुसाइड नोट के बलबूते धारा 306 किसी आरोपी को मुजरिम नहीं करार दिलवा सकती है.
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साल 2012 में एयर होस्टेस गीतिका शर्मा ने दिल्ली में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी. पुलिस को मौके से अंंग्रेजी में लिखा दो पेज का स्यूसाइड नोट बरामद हुआ था, जिसमें हरियाणा के गृह राज्यमंत्री गोपाल कांडा का नाम आने पर दिल्ली पुलिस ने खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया था. यह केस अभी भी दिल्ली की अदालत में चल रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सांखला का कहना है कि भारत में आज भी आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में सजा का प्रतिशत मात्र 4 से 5 फीसदी इसीलिए है क्योंकि, इस धारा में आरोपों को सिद्ध कर पाना जांच एजेंसी के लिए बेहद पेंचीदा काम होता है. हां. इतना जरूर है कि इस धारा में पीड़ित पक्ष और मुजलिम पक्ष साल दर साल कोर्ट कचहरी के धक्के जरुर खाते रहते हैं.
इसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में टिप्पणी करते हुए कहा था कि आईपीसी की धारा-306 के प्रावधान के मुताबिक आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी के खिलाफ उकसाने के मामले में ऐक्टिव रोल होना चाहिए. या फिर उसकी ऐसी हरकत होनी चाहिए, जिससे जाहिर हो कि उसने आत्महत्या के लिए सहूलियत प्रदान की है. उकसावे वाली कार्रवाई में आरोपी का ऐक्टिव रोल होना चाहिए.