Bombay High Court Verdict on Minor Girls Sexual Assault: महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के चर्च ऑफ एवरलास्टिंग लाइफ एंड सोशल वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा संचालित शांति आश्रम अनाथालय में नाबालिग लड़कियों से हुए यौन शोषण मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. अदालत ने सेशंस कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए आरोपियों की सजा को कायम रखा. मुख्य आरोपी क्रिश्चियन राजेंद्रन की 14 साल की कठोर कैद की सजा पर अदालत ने अपनी मुहर लगा दी, जबकि उसके भाई जॉय की सजा पर पुनर्विचार किया गया.
ऐसे खुला था अनाथालय में यौन शोषण का राज
यह मामला तब सामने आया जब अनाथालय में रह रही एक लड़की ने स्कूल में अपनी कक्षा अध्यापिका को अपनी पीड़ा बताई. अध्यापिका ने तुरंत बाल कल्याण समिति (CWC) को सूचना दी. जांच टीम ने आश्रम का दौरा किया और सभी बच्चियों को वहां से सुरक्षित निकाला. इसके बाद रसायनी पुलिस में मामला दर्ज हुआ और खुलासा हुआ कि कई सालों से यहां बच्चियों पर अत्याचार किए जा रहे थे.
सेशंस कोर्ट ने सुनाई थी सजा
पनवेल सेशंस कोर्ट ने साल 2020 में दोनों भाइयों क्रिश्चियन और जॉय राजेंद्रन को साल 2015 में आठ नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण का दोषी पाया था. क्रिश्चियन को 14 साल और जॉय को 10 साल की कठोर कैद की सजा सुनाई गई थी. जांच में यह भी सामने आया था कि आरोपियों की मां सैलोमी राजेंद्रन ने अपराध छिपाने की कोशिश की थी, जिसके चलते उसे एक साल की सजा दी गई थी.
बचाव पक्ष के तर्कों पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी
अदालत में आरोपियों के वकीलों ने दावा किया कि लड़कियां अनाथालय में खुश थीं और उनके जन्मदिन मनाए जाते थे, उन्हें फिल्में दिखाई जाती थीं. लेकिन जस्टिस आरएम जोशी ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि सिर्फ सुविधाएं मिलने से यह साबित नहीं होता कि उनके साथ गलत नहीं हुआ. अदालत ने कहा कि आश्रय, भोजन और कपड़ों के लिए लड़कियां आश्रम पर निर्भर थीं, इसलिए पहले शिकायत न करना स्वाभाविक था.
ऐसे सामने आईं पीड़िता
हाई कोर्ट ने कहा कि लड़कियां तभी हिम्मत जुटा सकीं जब उन्हें अनाथालय से निकालकर सुरक्षित स्थान पर रखा गया. वहीं, उनकी गवाही में निरंतरता और स्पष्टता यह दर्शाती है कि उनके साथ लंबे समय तक शोषण हुआ. अदालत ने माना कि शिकायत देर से होना इस मामले में कोई शक नहीं पैदा करता, बल्कि परिस्थितियों को समझने के बाद यह स्वीकार्य देरी है.
अश्लील वीडियो दिखाने का खुलासा
सरकारी पक्ष ने अदालत के सामने सबूत रखे कि क्रिश्चियन नाबालिग लड़कियों को अपने लैपटॉप पर अश्लील वीडियो दिखाता था. कई पीड़ितों ने यह बयान दिया कि आरोपी उनके साथ शारीरिक शोषण भी करता था. अतिरिक्त लोक अभियोजक मयूर सोनावने और कोर्ट द्वारा नियुक्त अधिवक्ता ज़ाकिर हुसैन ने सभी गवाहियों और मेडिकल रिकॉर्ड को प्रस्तुत किया, जिसे अदालत ने विश्वसनीय माना.
जॉय की सजा पर अदालत की राय
हाई कोर्ट ने माना कि क्रिश्चियन के खिलाफ सबूत ठोस और निर्णायक थे, लेकिन जॉय राजेंद्रन के खिलाफ लगाए गए आरोप इतने स्पष्ट नहीं थे. अदालत ने कहा कि जॉय के खिलाफ “शक की रेखा से परे” कोई ठोस सबूत नहीं मिला. इसलिए उसके मामले में सजा कम करने या रद्द करने पर विचार किया गया.
मां की सजा में आंशिक राहत
आरोपियों की मां सैलोमी राजेंद्रन पर यह आरोप साबित हुआ कि वह बच्चियों को धमकाती थी कि अगर वे शिकायत करेंगी तो उन्हें आश्रम से बाहर कर दिया जाएगा. अदालत ने उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन उसकी उम्र (50+ वर्ष) और पहले बिताए तीन महीने की जेल अवधि को देखते हुए उसकी सजा को “जितनी भुगत ली, उतनी ही पर्याप्त” मान लिया. कोर्ट ने कहा कि न्याय के हित में यही उचित है.