राजस्थान के सिरोही जिले के दांतराई गांव के एक सुदूर फार्महाउस से पुलिस ने ऐसी गुप्त लैब का खुलासा किया है, जिसे देखकर जांच एजेंसियां भी हैरान रह गईं. मेफेड्रोन जैसे सिंथेटिक उत्तेजक और मनोदैहिक ड्रग की अवैध फैक्ट्री बेहद सुनसान इलाके में चल रही थी. इसका संचालन कोई गेंगस्टर नहीं, बल्कि सिविल सर्विस की तैयारी कर चुका एक शख्स कर रहा था.
ये कार्रवाई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) और राजस्थान पुलिस की संयुक्त टीम ने 6 नवंबर को की है. पहले से ऐसी सूचनाएं मिल रही थीं कि एक फार्महाउस में संदिग्ध रसायन और भारी मशीनरी लंबे समय से जमा की जा रही है. जब पुलिस मौके पर पहुंची तो उन्हें ड्रम, पैकेट और उपकरणों का वह स्टॉक मिला, जो किसी पेशेवर केमिकल लैब से कम नहीं था.
एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक, जब्त किए गए रसायनों का कुल वजन सैकड़ों किलोग्राम है, जो लगभग 100 किलोग्राम मेफेड्रोन तैयार करने के लिए पर्याप्त था. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत करीब 40 करोड़ रुपए आंकी गई है. शुरुआती जांच में ही संकेत साफ थे कि यह सेटअप किसी सामान्य ऑपरेशन से कहीं बड़ा है. इसके पीछे एक संगठित नेटवर्क सक्रिय है.
जोधपुर एनसीबी की टीम को जैसे ही सूचना मिली, वे तुरंत सिरोही पहुंचीं. मौके का निरीक्षण करने के लिए गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय की टीम को बुलाया गया. फोरेंसिक विशेषज्ञों ने पुष्टि की कि जब्त किए गए उपकरणों और रसायनों में मेफेड्रोन उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले प्रीकर्सर मौजूद थे. यह एक गुप्त लैब नहीं, बल्कि सक्रिय मेफेड्रोन यूनिट थी.
इसके बाद जांच टीम ने इस अवैध फैक्ट्री के ऑपरेटरों की पहचान और लोकेशन ट्रैक करना शुरू किया. धीरे-धीरे इस रैकेट की परतें खुलनी शुरू हुईं. इस गिरोह के मास्टरमाइंड की पहचान राम के रूप में हुई है. उसके साथ चार आरोपियों को राजस्थान और गुजरात के अलग-अलग हिस्सों से पकड़ा गया. पूछताछ में आरोपियों ने जांचकर्ताओं के सामने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं.
मास्टरमाइंड राम ने बताया कि वो लंबे समय से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था, जिनमें सिविल सेवा भी शामिल थी. लेकिन निरंतर असफलताएं उसे अपराध की ओर धकेल ले गईं. उसने पैसा कमाने के लिए मेफेड्रोन बनाने का रास्ता चुना. उसने स्वीकार किया कि लैब को एक 'फुल-फंक्शनल' केमिकल यूनिट में बदलने के लिए उपकरण अलग-अलग राज्यों से मंगवाए थे.
ऑपरेशन का बड़ा हिस्सा राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में फैला हुआ था. इन राज्यों में मेफेड्रोन का साइकोट्रोपिक ड्रग के तौर पर तेजी से बढ़ता इस्तेमाल इस रैकेट की कमाई का आधार था. यही वजह थी कि नेटवर्क लगातार नई गुप्त लैबें खड़ी करने की कोशिश में था. एनसीबी के सही दिशा-निर्देश के चलते पुलिस दांतराई गांव में पूरे रैकेट पकड़ने सफलता हासिल की है.