Delhi Fake Foreign Job Scam: दिल्ली पुलिस ने एक ऐसे साइबर फ्रॉड सिंडिकेट का भंडाफोड़ किया है, जो बेरोजगार लोगों को विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर ठग रहा था. पुलिस ने इस नेटवर्क से जुड़े तीन अहम सदस्यों को गिरफ्तार किया है, जिनमें एक असिस्टेंट बैंक मैनेजर भी शामिल है. आरोपियों पर नकली विदेशी जॉब ऑफर देकर लोगों से लाखों रुपये वसूलने का आरोप है. सोमवार को पुलिस ने इस रैकेट की पूरी कहानी साझा की.
तीन राज्यों के युवक बने ठगी के मास्टरमाइंड
पुलिस ने जिन आरोपियों को पकड़ा है, उनकी पहचान गुजरात के केतन दीपक कुमार (24), पश्चिम बंगाल के संजीब मंडल (34) और गुरुग्राम के रवि कुमार मिश्रा (29) के तौर पर हुई है. ये लोग मिलकर ऐसे ऑफर भेजते थे, जो असल में होते ही नहीं थे. यह गैंग नौकरी तलाशने वालों को झांसे में लेकर उनका पैसा अलग-अलग बैंक अकाउंट्स के जरिए घुमाता था, जिसे पकड़ना मुश्किल हो जाता था.
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और नगदी बरामद
पूरी जांच के दौरान पुलिस ने आरोपियों के पास से दो लैपटॉप, छह मोबाइल फोन और करीब 50 हजार रुपये की नकदी बरामद की है. जिसे अपराध से अर्जित रकम बताया जा रहा है. पुलिस के अनुसार ये डिवाइस पीड़ितों से बातचीत, फर्जी दस्तावेज भेजने और बैंकिंग गतिविधियों को छिपाने के काम आते थे.
ऐसे हुआ रैकेट का खुलासा
पीटीआई के मुताबिक, यह केस एक ऐसे व्यक्ति की शिकायत के बाद दर्ज हुआ, जिसकी नौकरी COVID-19 महामारी में चली गई थी और वह विदेश में रोजगार तलाश रहा था. उसे “FLYABROAD 6” नाम के एक ग्रुप से न्यूज़ीलैंड में नौकरी दिलाने का ऑफर मिला. मॉडर्न सोशल मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर गैंग ने उसे अपने जाल में फंसाया था.
डॉक्यूमेंट दिखाकर जीता भरोसा
सिंडिकेट के सदस्यों ने शिकायतकर्ता का भरोसा जीतने के लिए उसे नकली वीज़ा कॉपी, फर्जी रजिस्ट्रेशन डॉक्यूमेंट और एक मनगढ़ंत ऑफर लेटर भेजा. उन्होंने दावा किया कि 2.80 लाख रुपये में उसे शेफ/कुक वीज़ा दिला दिया जाएगा. भरोसा करते हुए पीड़ित ने 1.80 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए. इसके बाद आरोपी अचानक गायब हो गए और जवाब देना बंद कर दिया.
वेरिफिकेशन में फर्जी निकले सारे डॉक्यूमेंट
जब पीड़ित ने अधिकारियों से जांच कराई, तो पता चला कि वीज़ा, ऑफर लेटर और ट्रैवल टिकट सभी पूरी तरह फर्जी थे. इसके बाद 7 अक्टूबर को साउथ-वेस्ट दिल्ली में BNS की संबंधित धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया. पुलिस ने मोबाइल चैट, बैंक लेन-देन और लोकेशन डेटा की गहन जांच शुरू की.
पैसों की लेयरिंग का खुलासा
जांच में सामने आया कि आरोपियों ने पीड़ित से ऐंठे हुए पैसे पहले एक म्यूल अकाउंट में डाले और फिर उसे दूसरे खातों में भेजकर ट्रेल छिपाने की कोशिश की. यह प्रोसेस कई राज्यों में फैले नेटवर्क के जरिए किया गया, ताकि पुलिस तक सीधे कोई कड़ी न पहुंचे. लेकिन साइबर टीम ने लगातार सर्विलांस कर लोकेशन ट्रैक की.
अलग-अलग राज्यों से गिरफ्तारी
लंबे सर्विलांस के बाद पहला आरोपी केतन दीपक कुमार 9 नवंबर को ऋषिकेश से पकड़ा गया. उससे पूछताछ में पुलिस को संजीब मंडल का पता चला, जिसे 13 नवंबर को कोलकाता से गिरफ्तार किया गया. आखिर में 17 नवंबर को गुरुग्राम से रवि कुमार मिश्रा को पकड़ा गया, जो एक बैंक में असिस्टेंट मैनेजर है और खातों को सिंडिकेट के हवाले करने में अहम भूमिका निभाता था.
सबने निभाई अलग-अलग भूमिका
पुलिस के अनुसार केतन एक BTech ड्रॉपआउट है और ट्रैवल एजेंट का काम करता था. वह म्यूल अकाउंट अरेंज करता था और पैसों की लेयरिंग प्लान करता था. संजीब मंडल, जो MBA ग्रेजुएट है, खुद को विदेशी कंसल्टेंट बताकर पीड़ितों से बात करता था. वहीं बैंक मैनेजर रवि मिश्रा गैंग को फर्जी खातों का एक्सेस देता था. पुलिस का मानना है कि सिंडिकेट ने कई लोगों को इसी तरह फंसाया है और जांच अभी जारी है.