दिल्ली के कानून मंत्री रहे जितेंद्र सिंह तोमर की फर्जी डिग्रियों की जांच में जुटी पुलिस के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती चार दिन हैं.
चार दिन यानी 96 घंटों की रिमांड. इन घंटों में पुलिस को न सिर्फ तोमर पर लगे तमाम इल्जामों की तस्दीक करनी है बल्कि वो सुबूत भी जुटाने हैं, जो अदालत में टिक सकें. यह और बात है कि इस सफर के पहले पड़ाव में ही उसे बड़ी कामयाबी मिली है.
वैसे तो दिल्ली बार काउंसिल और दिल्ली पुलिस पहले दिन से ही तोमर के दावों को गलत बता रही थी, लेकिन दिल्ली से तोमर को लेकर बुधवार को फैजाबाद पहुंची पुलिस टीम ने जब राम मनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी में अपने कदम रखे तो तोमर के दावों की असलियत जैसे सही मायने में खुलकर सामने आ गई.
पुलिस ने जब यूनिवर्सिटी के अधिकारियों से ग्रेजुएशन की डिग्री को लेकर तोमर का आमना-सामना करवाया तो आखिरकार वही बात निकल कर सामने आ गई जिसका डर था. यूनिवर्सिटी के मीडिया इंचार्ज ने दो टूक शब्दों में साफ कर दिया कि तोमर के पास मौजूद उनके यूनिवर्सिटी की बीएससी की डिग्री असल नहीं बल्कि फर्जी है.
रोल नंबर का नहीं है कोई वजूद
तोमर की ओर से दिया गया इनरोलमेंट नंबर किसी और छात्र का है. तोमर की मार्कशीट पर मौजूद रोल नंबर का भी कोई वजूद नहीं है. यहां तक कि उनकी डिग्री पर यूनिवर्सिटी के कुलपति यानी वाइस चांसलर के जो दस्तखत हैं, वो भी फर्जी हैं. हालांकि पुलिस सूत्रों की मानें तो तोमर को लेकर शुरू हुई तफ्तीश का अभी ये पहला पड़ाव है. तोमर की गिरफ्तारी से पहले उन्हें लेकर की गई पुलिस की शुरुआती इनक्वायरी में तोमर की एक नहीं बल्कि तकरीबन वो सारी डिग्रियां फर्जी पाई गई थीं, जो पहले सवालों के घेरे में हैं.
अगले सफर की तैयारी
पुलिस अब तोमर को फैजाबाद से अपने अगले सफर पर निकलने की तैयारी में है. अब जब पूर्व मंत्री महोदय की तमाम डिग्रियां ही सवालों के घेरे में है तो इन डिग्रियों को हासिल करने का उनका तरीका भी यकीनन सवालों में ही होगा. कहने का मतलब ये कि अब पुलिस इन फर्जी डिग्रियों की जांच के साथ-साथ उस पूरे रैकेट के तह तक जाने की तैयारी कर रही है, जिनके जरिए तोमर ने ये डिग्रियां हासिल की हैं.
अब तक की तफ्तीश से इस बात के संकेत मिलने लगे हैं कि इन सबके पीछे किसी ऑर्गेनाइज्ड गैंग का ही हाथ है. लेकिन पुलिस के सामने सबसे अहम सवाल ये है कि क्या तोमर ने सिर्फ एक क्लाइंट के तौर पर फर्जी डिग्री और सर्टिफिकेट्स हासिल किए या फिर इस रैकेट से सीधे तौर पर भी उनका कोई लेना-देना था? सीधे-सीधे कहें तो कहीं तोमर खुद ही फर्जी डिग्री का रैकेट तो नहीं चला रहे थे.
वीडियो क्लिप और आरोप
आम आदमी पार्टी ने भले ही अपने नेता की इस गिरफ्तारी को असंवैधानिक और गैरकानूनी करार दिया है, लेकिन इस बाबत जो वीडियो क्लिप सामने आई है उससे भी साफ जाहिर हो रहा है कि पुलिस ने गिरफ्तारी के वक्त तोमर के साथ जिस्मानी तौर पर कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की.
चार दिन, 3 राज्य और 3 हजार किलोमीटर का सफर. दिल्ली के कानून मंत्री रहे जितेंद्र सिंह तोमर को लेकर सुबूत जुटाने निकली पुलिस के लिए ये सफर बेहद लंबा है. लेकिन पुलिस के पास सिर्फ 96 घंटों का समय है. ऐसे में अब पुलिस अपने तमाम सवालों के जवाब ना सिर्फ हाथों-हाथ हासिल करना चाहती है बल्कि तोमर की आंखों के सामने ही उन्हें वैरीफाई भी कर लेना चाहती है.
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{mospagebreak}सूत्रों की मानें तो पुलिस इसके बाद तोमर को लेकर ट्रेन के रास्ते सीधे फैजाबाद से भागलपुर के लिए रवाना होगी और फिर वहां से मुंगेर जाएगी. दरअसल, तोमर ने भागलपुर के तिलका मांझी यूनिवर्सिटी से एलएलबी करने का दावा किया है. साथ ही मुंगेर के बीएसआईएल कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई करने का. पुलिस इन दावों का भी पता लगाएगी और डिग्रियों का भी. चूंकि पुलिस के पास वक्त कम है, इसके बाद वो बुंदेलखंड होते हुए दिल्ली के लिए रवाना होगी. तोमर ने 2001 में बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी से माइग्रेशन सर्टिफिकेट बनवाने की बात कही है. पुलिस की तफ्तीश में इस सर्टिफिकेट की जांच भी शामिल है.
मामूली वकील से कानून मंत्री
एक वो दिन थे जब तोमर की हस्ती एक मामूली वकील से ज्यादा कुछ भी नहीं थी. लेकिन वकालत की इसी रंजिश में एक दूसरे वकील ने तोमर के खिलाफ मोर्चा क्या खोल दिया. तोमर की फर्जी डिग्रियों की पहली शिकायत इसी साल फरवरी महीने में सामने आई थी. एक वो दिन था और एक आज का दिन.
तोमर के खिलाफ मुसीबत की शुरुआत इसी साल 4 फरवरी को तब हो गई थी, जब एक दूसरे वकील संतोष कुमार शर्मा ने उनके खिलाफ हाई कोर्ट में एक रिट पिटिशन यानी एक याचिका दाखिल की थी. इस रिट पिटिशन में शर्मा ने उनकी बीएससी और एलएलबी की डिग्रियों को फर्जी करार देते हुए इनकी जांच करने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने की गुजारिश की थी. ये वो दिन थे जब तोमर का मंत्री बनना तो दूर वो विधायक तक नहीं थे. लेकिन इसके बाद वक्त ने पलटी खाई और तोमर पहले आम आदमी पार्टी की ओर से विधायक चुने गए और फिर उनके वकील होने के दावे को देखते हुए ही शायद आम आदमी पार्टी ने उन्हें 13 मार्च को दिल्ली के कानून मंत्री की कुर्सी सौंप दी.
जारी हो चुकी थी नोटिस
अब तक हाई कोर्ट इस मामले में तोमर के साथ-साथ बार काउंसिल ऑफ इंडिया और बार काउंसिल ऑफ दिल्ली को नोटिस जारी कर चुकी थी. बार काउंसिल अपने स्तर पर मामले की जांच शुरू कर चुकी थी. लेकिन चूंकि अब वक्त बदल चुका था, शिकायत करने वाले शख्स ने हाई कोर्ट से अपनी शिकायत वापस लेने के लिए अर्जी दी. लेकिन शायद तब तक बात बहुत आगे निकल चुकी थी और हाई कोर्ट ने शिकायत वापस करने से इनकार करते हुए इस मामले की तह तक जाने का फैसला किया.
AAP के लिए परेशानी का सबब
ऐसा लगता है कि फर्जी डिग्री 'आप' के लिए मुसीबतों का सबब बन कर आई है. पूर्व कानून मंत्री जितेन्द्र तोमर का मामला अभी उफान पर ही है कि इसी बीच फर्जी डिग्री के एक और मामले ने मुसीबतें और बढ़ा दी हैं. आप के एक और विधायक पर ग्रेजुएशन की फर्जी डिग्री रखने का इल्जाम लगा है. विधायक कमांडो सुरेन्द्र अपनी डिग्री सही साबित नहीं कर पाए तो मुमकिन है कि शायद उनका भी हश्र तोमर जैसा ही हो.
दरअसल, चुनाव के दौरान कमांडो ने खुद को सिक्किम यूनिवर्सिटी से पास आउट बताया था, जबकि बीजेपी के नेता करन सिंह तंवर ने उनकी डिग्री का पता लगाने के लिए जब यूनिवर्सिटी में आरटीआई की अर्जी दाखिल की तो उन्हें दो टूक जवाब मिला कि उनके यहां सुरेंद्र सिंह नाम को कोई छात्र रहा ही नहीं.