scorecardresearch
 

कई सवाल छोड़ गई दीमापुर की वारदात

जरा सोचिए, अगर पुलिस, कानून, अदालत, इंसाफ, जुर्म, सजा...ये तमाम चीजें न होतीं, तो क्या होता? जाहिर है, हर तरफ हाहाकार होता. हर हाथ कानून होता, हर हाथ इंसाफ...और हर हाथ जल्लाद. पर शुक्र है कि ऐसा नहीं है. शुक्र है कि इंसानों की बस्ती में इंसानों का बनाया कानून चलता है. पर जरा सोचिए....क्या सच में ऐसा ही है? अगर हां, तो फिर क्या ये तस्वीरें झूठ बोल रही हैं?

Advertisement
X
दीमापुर की वारदात
दीमापुर की वारदात

जरा सोचिए, अगर पुलिस, कानून, अदालत, इंसाफ, जुर्म, सजा...ये तमाम चीजें न होतीं, तो क्या होता? जाहिर है, हर तरफ हाहाकार होता. हर हाथ कानून होता, हर हाथ इंसाफ...और हर हाथ जल्लाद. पर शुक्र है कि ऐसा नहीं है. शुक्र है कि इंसानों की बस्ती में इंसानों का बनाया कानून चलता है. पर जरा सोचिए....क्या सच में ऐसा ही है? अगर हां, तो फिर क्या ये तस्वीरें झूठ बोल रही हैं?

और सबसे बढ़कर ये कि ये तस्वीरें सोचने को मजबूर करनेवाली हैं. मजबूरी इस बात की कि हम सोचें क्या हम वाकई एक सभ्य समाज में जी रहे हैं? मजबूरी इस बात की कि हम सोचें कि क्या यहां वाकई कानून का राज चलता है? मजबूरी इस बात की कि हम सोचें क्या वाकई हम एक तरक्कीपसंद मुल्क के बाशिंदे हैं?

मगर, क्या करें देश के उत्तर-पूर्वी हिस्से पर बसे सूबे नगालैंड के शहर दीमापुर में 5 मार्च को जो कुछ हुआ, उसने इन सवालों पर अचानक ही पूरे देश को माथापच्ची करने पर मजबूर कर दिया. नगालैंड के छात्रों ने रेप के इल्जाम में गिरफ्तार एक शख्स को एक ऐसी अजीब और भयानक मौत दी कि अगर ये मंजर आईएसआईएस और तालिबान के आतंकवादियों ने देखा होता, शायद उन्हें भी इस बात का इत्मीनान हो जाता कि ऐसी कबिलाई सोच को जीने वाले दुनिया में एक वही अकेले नहीं हैं.

Advertisement

दरअसल, दीमापुर के सेकेंड हैंड कार डीलर सैय्यद फरीद खान को पुलिस ने 25 फरवरी को एक नगा स्टूडेंट के साथ लगातार कई दिनों तक रेप करने के इल्जाम में गिरफ्तार किया था.

लेकिन इससे पहले कि पुलिस उसके खिलाफ कोई सुबूत पेश करती, गवाह अपनी बात रखते, अदालत उसकी सजा मुकर्रर करता, गुस्साए नौजवानों ने खुद अपने हाथों से उसे बर्बर सजा दे दी. रेप की इस वारदात से गुस्साए तकरीबन 10 हजार छात्रों और नौजवानों ने इस रोज सीधे दीमापुर के डिस्ट्रिक्ट जेल पर ही धावा बोल दिया. एक-एक कर जेल के दो फाटकों को तोड़ कर अंदर दाखिल हो गए. फिर क्या था, मुट्ठी पर जेलकर्मी कोने में खड़क होकर सारा तमाशा देखते रहे और हजारों लोगों की भीड़ ने इस मुल्जि‍म को सबके सामने अगवा कर लिया.

अब बारी थी इस मुल्जि‍म को उसके तथाकथित गुनाह की सजा देने की. इसके बाद ये भीड़ उसे मारते-पीटते और घसीटते हुए दीमापुर के मैनचौक पर ले आई. तब तक उसके तमाम कपड़े फट चुके थे और फिर उसे बिल्कुल नग्न हालत में रस्सियों से बांधकर सड़कों पर घसीटा जाता रहा. इस दौरान सिरफिरे नौजवानों की टोली इस भयानक मंजर के हर पहलू को कैमरे में कैद करती रही. जब वो इस जुल्मों-सितम के इस सिलसिले से गुज़र कर बिल्कुल बेसुध हो गया. उसे एक फंदे के सहारे और दीमापुर चौक पर टांग दिया गया और ऐसे गुनाहगारों को ऐसी ही सजा देने की बाकायदा तकरीर गई. तब अंत में उसे इसी हाल में जिंदा जला दिया गया.

Advertisement

लेकिन सबसे फिक्र की बात ये रही कि भीड़ इस तादाद और उनकी इस सोच के आगे तमाम कायदे-कानून, पुलिस, सुरक्षा इंतजाम सब छोटे पड़ गए. जिन पुलिसवालों ने इन लड़कों को रोकने की कोशिश की, उन्हें भी लहूलुहान हो कर रास्ते से हटना पड़ा. वो तो जब सब कुछ शांत हो गया, तो दीमापुर प्रशासन ने पहले कर्फ्यू और तब धारा 144 लगाने का ऐलान किया.

सूत्रों की मानें, तो सैय्यद फरीद खान एक बांग्लादेशी नागरिक था और यहीं रहकर कारोबार किया करता था. जिस लड़की के साथ उसने कथित तौर पर ज्यादती की थी, उसे दोनों का एक कॉमन फ्रैंड उसके पास लेकर पहुंचा था. दीमापुर में एक सुपर मार्केट के नजदीक उसने दोनों को कार में छोड़ दिया और आखि‍री बार उसने लड़की को धोखे से शराब पीकर उसके साथ रेप किया था, जिसकी शिकायत बाद ने लड़की ने पुलिस से की थी.

पुलिस ने एक दिन बाद मुल्जि‍म को गिरफ्तार लिया और लड़की की मेडिकल जांच करवाई, जिसमें बलात्कार की बात सामने भी आई. लेकिन इससे पहले कि कानून अपना काम करता, भीड़ ने अपना इंसाफ कर दिया.
दीमापुर की वारदात अगर कचोटने वाली है, तो उस सिस्टम को मुंह चिढ़ाने वाली भी. ऐसा नहीं है कि दीमापुर मे जो कुछ हुआ, वो पहली बार इस देश ने देखा. न जाने कब से कितनी बार, कितनों ही शहरों और गांवों में दीमापुर हुआ है. और जब भी ऐसा हुआ, तब-तब हमेशा हर बार सब कुछ बदल देने की बात कही गई. मगर हर बार सब कुछ फिर वैसा ही हो जाता है, जैसा पहले था. मुद्दा गंभीर है और सरकार को सोचने की जरूरत है.

Advertisement

नागालैंड के शहर दीमापुर में 5 मार्च को जो कुछ हुआ, उसकी तकलीफ अब भी पूरा हिंदुस्तान महसूस कर रहा है. लेकिन क्या ये वारदात फकत तकलीफ महसूस करने की है? क्या ये वारदात सिर्फ एक नई बहस की शुरुआत करने भर की है? और क्या ये वारदात फिर से हमारे सिस्टम को कोसने भर की है?

दरअसल, बीच सड़क दस हजार की भीड़ का यह तालिबानी इंसाफ यह साबित करता है कि तमाम बातों के बवाजूद हम अपने उस सिस्टम को अब तक रत्ती भर भी आगे नहीं खिसका पाए हैं, जिसे हर ऐसी वारदात के बाद हम बिल्कुल बदल देने की बात करते हैं.

बात ज्यादा पुरानी नहीं है, जब 16 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में निर्भया से हुई ज़्यादती के बाद दिल्लीवालों के साथ-साथ पूरा देश सड़कों पर उतर आया था. जब ऐसे संगीन गुनाहों के मुजरिमों को फौरन सजा-ए-मौत देने की बात सड़क से लेकर संसद तक में गूंजने लगी थी. जब इसी वारदात के बाद नए सिरे से कमीशन बना कर महिलाओं के खिलाफ होनेवाले गुनाहों से जुड़े कानूनों को और मजबूत बनाने की बात हुई थी. लेकिन एक वो दिन है और एक आज का दिन. हकीकत यही है कि कागज़ों पर अब काफी कुछ बदल चुका है. कानून के जानकारों की सिफारिशों से पुलिंदे अट चुके हैं. लेकिन हकीकत के आईने में अब भी सबकुछ ठीक वैसा ही है, जैसा पहले हुआ करता था. शायद यही वजह है कि देश में रह-रहकर कहीं न कहीं, कोई न कोई दीमापुर हो जाता है.

Advertisement

निर्भया के मामले में ही मुल्जि‍मों को मुजरिम करार दिए जाने के बावजूद हालात यही है कि उन्हें अब तक उनके आखि‍री अंजाम तक नहीं पहुंचाया गया है, जबकि इस मामले पर पूरे देश के नीति नियंताओं की नजर है और इसके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट तक बनाए गए हैं. लेकिन मामला अब भी अदालत के गलियारों में चक्कर काट रहा है. यह और बात है कि अब दीमापुर की वारदात के बाद एक बार फिर से सियासतदानों के बीच कीचड़ उछालने का खेल भी शुरू हो चुका है. वहां की सरकार ने डीएम, एसपी और जेल सुपरिंटेंडेंट जैसे अफसरों को सस्पेंड कर दिया है.

लेकिन इस बात की गारंटी अब भी कोई देने को तैयार नहीं कि फिर कभी कहीं कोई दीमापुर नहीं होगा. ऐसे में डर ये भी है कि कहीं दीमापुर की ये वारदात फिर से अफसोस जताने भर के एक सड़ी हुई रवायत बन कर ना रह जाए.

Advertisement
Advertisement