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क्या है ND PS, कौन कर सकता है कार्रवाई, दोषी को मिलती है कितनी सजा? जानिए सबकुछ

एनडीपीएस एक्ट में ड्रग्स की मात्रा भी तय है. इसे तीन हिस्सों में बांटा गया है. स्मॉल क्वांटिटी, मीडिया क्वांटिटी और कमर्शियल क्वांटिटी. इसी क्वांटिटी के हिसाब से धारा और सज़ाएं तय होती हैं.

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NDPS एक्ट के तहत केवल एनसीबी ही नहीं बल्कि और विभाग भी कार्रवाई कर सकते हैं
NDPS एक्ट के तहत केवल एनसीबी ही नहीं बल्कि और विभाग भी कार्रवाई कर सकते हैं

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से आर्यन की गिरफ्तारी तक पिछले करीब सवा साल से दो नाम हरेक की ज़ुबान पर है. एनसीबी (NCB) और एनडीपीएस (NDPS). एनडीपीएस की तमाम धाराओं को लेकर भी पिछले सवा सालों में तमाम तरह की बातें हुईं. कौन कौन सी ड्रग्स, कैसी-कैसी ड्रग्स, ड्रग्स की कितनी मात्रा, ड्रग्स की ख़रीद फ़रोख्त, ड्रग्स की स्मॉल मीडिया और कॉमर्शियल क्वांटिटी, किस और कितनी ड्रग्स में कितनी सज़ा. एनडीसीपीएस की कौन सी धारा ज़मानती कौन सी ग़ैर जमानती और सबसे अहम व्हाट्स एप चैट की ड्रग्स केस में कितनी अहमियत. ये वो सवाल हैं, जिनके जवाब हर कोई जानना चाहता है. तो आज आपके सामने पेश है एनडीपीएस एक्ट की वो सारी कहानी, जिसका सच आप जानना चाहते हैं. तो शुरुआत ख़ुद एनडीपीएस से, आख़िर एनडीपीएस है क्या? 

एनडीपीएस
दरअसल, एनडीपीएस दो हिस्सों में बंटा हुआ है एनडी और पीएस. एनडी का मतलब नार्कोटिक ड्रग. जबकि पीएस का मतलब साइकोट्रॉपिक सबस्टांस. एनडीपीएस को दो हिस्सों में इसलिए बांटा गया है क्योंकि एनडी और पीएस दो अलग-अलग तरह से काम करती है. एनडी यानी नार्कोटिक ड्रग सीधे दिमाग़ पर असर करती है. इंसान के सोचने समझने की ताक़त पर हमला करती है. और उसकी सेंसिटिविटी को ख़त्म कर देती है. नार्कोटिक ड्रग में जो ड्रग्स आते हैं, वो हैं कोका, गांजा, अफ़ीम, डोडा, चूरा वगैरह-वगैरह. जबकि पीएस यानी साइकोट्रॉपिक सबस्टांस मसल्स पर असर करता है. पीएस के तहत वो ड्रग्स आती हैं, जिनमें केमिकल मिला होता है. जैसे एमडीएमए, एमडी, एक्सटैसी, एल्प्राज़ोलम वगैरह-वगैरह. 

एनडीपीएस के तहत कौन कर सकता है कार्रवाई?
ऐसा नहीं है कि ड्रग्स के मामलों में सिर्फ़ एनसीबी यानी नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ही कार्रवाई कर सकती है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार की कुछ संस्थाओं को भी ड्रग्स के मामले में कार्रवाई का अधिकार दिया गया है. इन संस्थाओं और विभागों में कस्टम, सेंट्रल एक्साइज़, सीबीएम, बीएसएफ, सीआईएसएफ, आरपीएफ, पुलिस और राजस्व विभाग के अधिकारी शामिल हैं. 

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सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होनेवाले ड्रग्स
नशा करनेवाले लोग अमूमन उन नशों का इस्तेमाल करते हैं, जो कोका के पौधे से बनते हैं. कोकीन, अफीम, अफीम को पौधे के फल यानी डोडा, ये सभी नशे के रूप में इस्तेमाल होते हैं. हेरोईन भी अफीम का ही उत्पाद है. इसके अलावा गांज़ा सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है. बहुत से लोग ऐसे ड्रग्स का भी इस्तेमाल करते हैं, जिसमें मॉर्फिन और कोडीन जैसे पदार्थ होते हैं. ब्रेड पर आयोडेक्स लगा कर खाना, सिगरेट पर झंडू बाम लगा कर पीना, कफ़ सिरप काज़्यादा इस्तेमाल करना, वाइटनर, डीज़ल पेट्रोल सूंघना, इसकी मिसालें हैं. आम लफ्ज़ों में भारत समेत पूरी दुनिया में जो ड्रग सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं, उनमें कोकीन, हेरोईन, चरस, गांजा, हशीश और एक्सटैसी शामिल हैं.

ड्रग्स की कितनी मात्रा में कितनी सज़ा?
एनडीपीएस एक्ट में ड्रग्स की मात्रा भी तय है. इसे तीन हिस्सों में बांटा गया है. स्मॉल क्वांटिटी, मीडिया क्वांटिटी और कमर्शियल क्वांटिटी. इसी क्वांटिटी के हिसाब से धारा और सज़ाएं तय होती हैं. मसलन, कोकीन की स्मॉल क्वांटिटी 2 ग्राम से कम है, जबकि कमर्शियल क्वांटिटी 100 ग्राम से ज्यादा. मीडियम क्वांटिटी 2 से 100 ग्राम के बीच में मानी जाती है. यानी अगर किसी के पास से 2 ग्राम से कम कोकीन बरामद होती है, तो उसे अधिकतम 1 साल की सज़ा मिल सकती है. लेकिन अगर 2 ग्राम या इससे ज्यादा बरामद होती है, तो फिर सज़ा 10 से 20 साल हो सकती है. गांजा की स्मॉल क्वांटिटी एक किलो से कम, जबकि कमर्शियल क्वांटिटी 20 किलो से अधिक है. हेरोईन की स्मॉल क्वांटिटी 5 ग्राम से कम, जबकि कमर्शियल क्वांटिटी 250 ग्राम से ज्यादा है. चरस की स्मॉल क्वांटिटी 100 ग्राम से कम. जबकि कमर्शियल क्वांटिटी 1 किलो से ज्यादा है. अफीम की स्मॉल क्वांटिटी 25 ग्राम से कम, जबकि कमर्शियल क्वांटिटी ढाई किलो से ज्यादा है. बीच की मात्रा मीडियम कही जाती है, जिसमे 10 साल तक की सजा है.

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कितना अहम सबूत है व्हाट्सएप चैट?
कानून के जानकारों के मुताबिक आर्यन खान की सबसे ज़्यादा मुश्किल व्हाट्स एप चैट ने बढ़ाई है. आर्यन के पास से कोई ड्रग्स बरामद नहीं हुई थी. उसके दोस्त अरबाज़ मर्चेंट के पास से भी महज 6 ग्राम चरस मिला था. जबकि चरस की स्मॉल क्वांटिटी ही सौ ग्राम है. लेकिन आर्यन के मोबाइल से जो व्हाट्स एप चैट मिला, उसमें कुछ विदेशियों और अनन्या पांडेय के साथ उसकी बातचीत को एनसीबी ने सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया. आपको याद होगा रिया चक्रवर्ती, दीपिका पादुकोण, श्रद्धा कपूर, सारा अली ख़ान, रकुलप्रीत को भी व्हाट्स एप चैट की वजह से ही एनसीबी के दफ्तर में पूछताछ के लिए जाना पड़ा था. 

लिहाज़ा ये सवाल उठता है कि ड्रग्स के केस में व्हाट्स एप चैट कितना अहम सबूत है. तो क़ानून के हिसाब से व्हाट्स एप चैट जांच शुरू करने के लिए तो एक अहम सबूत हो सकता है. लेकिन सिर्फ़ व्हाट्स एप चैट के बिनाह पर किसी आरोपी को अदालत में दोषी साबित नहीं किया जा सकता. इसके लिए ज़रूरी है कि उस व्हाट्स एप चैट के आधार पर केस से जुड़े बाक़ी सबूतों को इकट्ठा कर अदालत के सामने रखा जाए. ताकि ये कहा जा सके कि देखिए व्हाट्स एप चैट के बिनाह पर ही ये सारे सबूत मिले हैं. पिछले साल दीपिक पादुकोण और बाक़ी एक्ट्रैस को पूछताछ के बाद इसीलिए छोड़ना पड़ा, क्योंकि व्हाट्स एप चैट के आगे उससे जुड़े सबूत एनसीबी जुटा नहीं पाई. एनडीपीएस की धारा 27 साक्ष्य अधिनियम के तहत व्हाट्स एप चैट के अलावा डिस्कवरी पर ऑफ फैक्ट ज़रूरी है. 

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NCB हिरासत में दिया गया बयान क्या अदालत में मान्य है?
2020 से पहले एडीपीएस की धारा 67 के तहत एनसीबी की हिरासत में दिया गया बयान अदालत में मान्य हुआ करता था. लेकिन 2020 में तूफ़ान सिंह वर्सेज़ तमिलनाडु राज्य के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 67 के तहत एनसीबी हिरासत में दिए गए बयान को अमान्य करार दे दिया. सुप्रीम कोर्ट का तर्क था कि एनसीबी भी एक एजेंसी है और पुलिस की तरह काम करती है. पुलिस हिरासत में दिए गए बयान अदालत में मान्य नहीं है. लिहाज़ा एनसीबी की हिरासत में दिए गए बयान को भी मान्यता नहीं दी जा सकती. यानी आर्यन खान ने एनसीबी की हिरासत में जो कुछ भी कहा है, एनसीबी उसे सबूत के तौर पर अदालत में नहीं रख सकती.

एनडीपीएस की धारा 27 और 27ए 
दरअसल, धारा 27 ए किसी ड्रग रैकेट से जुड़े उस शख्स पर लगाया जाता है जो ड्रग्स के धंधे में पैसे लगाता है. यानी इसका कारोबार करता है. इसीलिए इसे गंभीर अपराध माना जाता है. और इसमें 20 साल तक की सज़ा का प्रावधान है. जबकि धारा 27 उन लोगों पर लगती है, जो ड्रग्स का इस्तेमाल खुद करते हैं. यानी ड्रग्स लेते हैं. इसमें अधिकतम एक साल की सज़ा है. 

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एनडीपीएस की धारा 29  
धारा 29 किसी पर लगाने के लिए ज़रूरी है कि उस केस में एक से ज़्यादा आरोपी हों. हालांकि किसी का नाम लेने भर से ही ये धारा लगाना काफ़ी नहीं होता, बल्कि इस धारा को लगाने के लिए सह आरोपियों के खिलाफ़ साज़िश में शामिल होने के सबूत होने ज़रूरी हैं. ऐसे सबूत हासिल करने में अक्सर मुश्किलें आती हैं. और यही वजह है कि इसका फायदा उठा कर बड़े ड्रग डीलर आसानी से बच निकलते हैं. 

मीडिया ट्रायल का मुकदमों पर असर
मीडिया ट्रायल हरेक मामले पर उल्टा असर डालता है, ऐसा कतई नहीं कहा जा सकता. लेकिन ये भी सच है कि मीडिया ट्रायल के बाद अमूमन निचली अदालतें दबाव में आ जाती हैं. जिसका असर कई बार उनके फैसलों पर पड़ता है. हालांकि जज को मानसिक रूप से इतना मज़बूत होना चाहिए कि मीडिया ट्रायल का उनके फैसले पर कोई असर ना पड़े.

 

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