तीस जुलाई की सुबह जब नागपुर सेंट्रल जेल के स्टाफ याकूब मेमन के बैरक में पहुंचे और उसे चलने के लिए कहा तब याकूब मेमन कांप रहा था. उसके हाथ और पैर दोनों कांप रहे थे. हालांकि याकूब की कहानी अब खत्म हो चुकी है. मगर उसकी जिंदगी के आखिरी चंद घंटों और आखिरी पलों की कहानी जेल से अब बाहर आ रही है.
इधर दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में याकूब मेमन की याचिका पर आखिरी दौर की बहस चल रही थी. उधर दिल्ली से करीब 800 किलोमीटर दूर नागपुर सेंट्रल जेल में कैदी नंबर 7346 मतलब याकूब मेमन लगातार बेचैनी से फांसी बैरक के अंदर इधर से उधर टहल रहा था. बैरक के बाहर जूनियर जेलर समेत जेल स्टाफ के कुल चार लोग याकूब की हर हरकत पर नजरें गड़ाए थे. जेल सुप्रींटेंडेंट योगेश देसाई तब अपने कमरे में टीवी के सामने ही बैठे थे. कमरे में सुबह से ही एडीजी प्रिजन मीरा बोरवणकर और औरंगाबाद जेल के डीआईजी आर धामने भी डटे थे. इन लोगों की नजरें भी टीवी पर थी. सभी फैसले का इंतजार कर रहे थे. मगर शायद जेल के अंदर अफसरों को याकूब मेमन का अंजाम पहले से मालूम था. इसलिए इंतजार सभी को बेशक कोर्ट के फैसले का था, मगर साथ ही साथ फांसी की तैयारी भी जारी थी.
फांसी बैरक से फांसी घर जिसे जेल के अंदर अमरधाम के नाम से जाना जाता है मुश्किल से पंद्रह कदम की दुरी पर है. मगर फांसी बैरक से अमरधाम के रास्ते में विचाराधीन कैदियों के सेल का पिछला हिस्सा आता है. इस सेल में करीब तीन सौ कैदी रह रहे थे. फांसी के दौरान कोई गड़बड़ ना हो इसलिए जेल प्रशासन ने एक दिन पहले ही सारे कैदियों को यहां से दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया. अब फांसी बैरक से फांसी घर यानी अमरधाम तक पूरी तरह सन्नाटा था. इस इलाके में सिर्फ और सिर्फ उऩ्हीं 35 लोगों को आने-जाने की इजाजत थी जिन्हें याकूब की फांसी के काम को पूरा करना था.
याकूब अब भी फांसी बैरक में उसी बेचैनी से टहल रहा था और अब भी लगातार बैरक के बाहर खड़े जेल स्टाफ से बस एक ही सवाल पूछ रहा था. फैसला आया, क्या हुआ ? जेल स्टाफ उसे लगातार यही जवाब देते रहे थे कि अभी नहीं. जेल सुप्रीटेंडेंट योगेश देसाई के कमरे में टीवी पर अचानक ब्रेकिंग न्यूज आती है. याकूब मेमन की याचिका खारिज और फांसी 30 जुलाई की सुबह ही होगी. इसके बाद एडीजी प्रिजन मुंबई बात करती हैं. थोडी देर बाद तस्वीर साफ हो जाती है. फांसी सुबह ही दी जाएगी. इसके बाद फौरन फांसी की तैयारी में लगे सभी 35 स्टाफ को ब्रीफ किया जाता है.
यही वो वक्त था जब जेल सुप्रींटेंड योगेश देसाई औरंगाबाद जेल के डीआईजी आर धामने के साथ फांसी बैरक में पहुंचते हैं. याकूब अब भी बेचैन और परेशान था. जेलर याकूब को खबर देते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है. ये सुनते ही याकूब अचानक लड़खड़ा जाता है. उसके हाथ-पैर कांपने लगते हैं. कुछ देर बाद वो खुद को किसी तरह संभालता है. पर अगले कई मिनट तक याकूब को यकीन ही नहीं होता. इस पूरे वक्त में बैरक में पूरी तरह खामोशी थी. फिर कुछ देर बाद याकूब जेलर से पूरी जानकारी मांगता है. जेलर उसे कोर्ट के फैसले की पूरी जानकारी देते हैं. फिर वो सहमा हुआ पूछता है अब क्या होगा? कल सुबह ही मुझे फांसी होगी? फिर उसे अचानक कुछ याद आता है और वो जेलर से पूछता है मैंने प्रेसिडेंट को मर्सी पेटिशन भी भिजवाई है. क्या उसका फैसला भी आ गया? फिर वो गवर्नर के फैसले के बारे में भी पूछता है. जेलर को शायद खुद पता नहीं था. लिहाजा वह याकूब को पता कर जानकारी देने का भरोसा देते हुए वहां से वापस चल दिए.
अब एडीजी मुंबई से जानकारी लेती हैं. दूसरी तरफ से उन्हें इंतजार करने को कहा जाता है. करीब घंटा भर बीत जाता है. उधर दूसरी तरफ फांसी बैरक में याकूब अब लगभग निढाल सा होकर बैठ जाता है. पहली बार शायद उसे यकीन हो चला था कि अब वो नहीं बचेगा. हालांकि यही याकूब सुबह तक यही कह रहा था कि आखिरी वक्त में कोई करिश्मा जरूर होगा.
दिल्ली से दूसरी खबर जेल पहुंचती है. गवर्नर के बाद अब राष्ट्रपति ने भी दया याचिका खारिज कर दी थी. खबर मिलते ही जेलर याकूब मेमन के परिवार के नाम एक खत लिखते हैं. इसमें जानकारी दी जाती है कि याकूब मेमन को 30 जुलाई की सुबह साढ़े छह से सात बजे के दरम्यान फांसी दी जाएगी. इसके बाद ये खत जेल से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर होटल द्वारका में ठहरे सुलेमान मेमन को पहुंचाई जाती है. खत मिलते ही सुमेलान मेमन अपने भाई के साथ याकूब मेमन से आखिरी बार जेल में मिलने की ख्वाहिश जताता है.
जेल सुप्रींटेंडेट फिर से याकूब मेनन के फांसी बैरक में पहुंचते हैं और उसे बताते हैं कि गवर्नर और प्रसिडेंट दोनों ने ही उसकी मर्सी पेटिशन खारिज कर दी है. इतना सुनते ही याकूब फिर से कांपने लगता है. पर बोलता कुछ नहीं है. तब खुद जेलर उसे खबर देते हैं कि थोड़ी देर में उसका भाई सुलेमान उससे मिलने आ रहा है. उससे पूछा जाता है कि क्या वो मिलेगा? याकूब हां में बस गर्दन हिला देता है. जेल प्रशासन से इजाजत मिलते ही सुलेमान मेमन अपने चचेरे भाई उस्मान मेमन और वकील के साथ नागपुर जेल पहुंचता है. याकूब दोनों से ज्यादातर मेमन जुबान में बातें कर रहा था. मुलाकात का वक्त खत्म होने पर वो सुमेलान से आखिरी बात बस यही कहता है रुहीना और जुबैदा का ख्याल रखना. रुहीना याकूब की बीवी और जुबैदा बेटी का नाम है.
मुलाकात के बाद याकूब को वापस फांसी बैरक में ले जाया गया. बैरक में पहुंचते ही अचानक याकूब जेलर से कहता है कि क्या वो उसकी बेटी जुबैदा से उसकी बात करा सकते हैं? जेलर तैयार हो जाते हैं. थोड़ी देर बाद याकूब की जुबैदा से बात कराई जाती है. पर तब तक याकूब घबराहट से थोड़ा उबर चुका था. या फिर शायद जुबैदा के सामने मजबूत दिखना चाहता था. उसने जुबैदा से बात की. अपनी खैरियत बताई और अपना और अपनी मां का ख्याल रखने को कहा. इसके बाद जुबैदा को दुआ देते हुए उसने फोन रख दिया. फोन रखने के बाद याकूब ने बाकायदा जेलर को बेटी से बात कराने के लिए शुक्रिया कहा.
फांसी से जुड़े स्टाफ जेलर के कमरे में सुबह की तैयारी की प्लानिंग कर रहे थे. हरेक को उसके हिस्से का काम समझा दिया गया था. जेल के बाकी कैदियों के बैरकों पर भी कड़ी नजर थी. बहुत से कैदियों ने रात का खाना नहीं खाया था. क्योंकि उन्हें भी याकूब की फांसी की खबर मिल चुकी थी. याकूब अब अपने बैरक में ही था. रात का खाना लाकर उसे जरूर दिया गया. मगर उसने खाया नहीं. लेकिन चाय जरूर मांगी. याकूब चाय पीने का आदी था. खास कर तनाव में. उसे चाय दी भी गई. चाय के बाद बीच-बीच में उसने कई बार पानी मांग कर पिया.
अचानक दिल्ली से खबर आती है कि कुछ वकील फांसी टालने के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के घर पहुंच गए हैं और चीफ जस्टिस सुनवाई के लिए तैयार हो गए हैं. खबर मिलते ही जेल के अंदर फिर से हलचल तेज हो जाती है. जेलर और एडीजी प्रिजन को समझ नहीं आता कि अब क्या करें. फिर मुंबई से पूछा जाता है और तब इन्हें कहा जाता है कि पहले दिल्ली और उसके बाद मुंबई के आदेश का इंतजार करें. लेकिन लगे हाथ ये भी बताया जाता है कि फांसी की तैयारी जारी रखें.
इसके बाद जेल स्टाफ पूरी रात टीवी के सामने चिपका रहता है. बीच-बीच में मुंबई से भी फोन आते रहते हैं. मगर देर रात की इस गहमागहमी की जानकारी याकूब को नहीं थी और ना ही उसे जानकारी दी गई. याकूब बैरक के अंदर था और बैरक के बाहर खड़े ड्यूटी स्टाफ तक को दिल्ली में जारी हलचल की कोई भनक नहीं थी. वो भी इससे पूरी तरह अनजान थे. याकूब पूरी रात जागता रहा. कभी लेटता, कभी टहलता तो कभी बैरक की सलाखें पकड़ कर खड़ा रहता.
आखिर दिल्ली से आखिरी फैसला भी आ जाता है. वो फैसला जिसके बारे में याकूब को कोई खबर नहीं थी. याकूब अब भी बैरक में जागा था. जेल स्टाफ उसके पास जाते हैं और उसे बैरक से निकाल कर नहाने ले जाते हैं. नहाते वक्त भी जेल स्टाफ की नजर बराबर याकूब पर थी. इसके बाद उसे पहनने को नई वर्दी दी जाती है. नहाने और कपड़ा पहनने के बाद याकूब बैरक में लौट आता है. याकूब जेल स्टाफ से वक्त पूछता है और फिर फजिर यानी सुबह की नमाज पढ़ता है. नमाज पढ़ने के बाद कुछ देर वो कुरआन पढ़ता है. जेल स्टाफ उससे नाश्ते के बारे में पूछते हैं. वो मना कर देता है. मगर फिर भी एक मग में उसके सामने चाय रख दी जाती है. कुछ देर बाद याकूब चाय पीने के लिए मग उठाने की कोशिश करता है. मगर उसके हाथ इतने कांप रहे थे कि मग उठा नहीं पाता. वो मग वहीं छोड़ देता है. इस दौरान वो लगातार खामोश रहता है. किसी से कोई बात नहीं करता. बैरक के बाहर जेल और जूनियर जेलर के अलावा तीन जेल स्टाफ बार-बार घड़ी की तरफ देख रहे थे. याकूब को तय वक्त पर अमरधाम यानी फांसी घर तक ले जाने के लिए.
ये तीनों वही जेल स्टाफ थे जो 2012 में पुणे के यरवडा जेल मे कसाब को उसके सेल से निकाल कर फांसी के तख्ते तक ले गए थे. सुबह के साढ़े छह बजे यही वो वक्त था जब याकूब को उसके फांसी बैरक से आखिरी बार निकाला गया. जैसे ही घड़ी देखने के बाद तीनों स्टाफ याकूब को चलने के लिए कहते हैं अचानक याकूब के दोनों पैर कांपने लगते हैं. उसके दोनों हाथ पीछे की तऱफ से बंधे थे. इसके बाद तीनों स्टाफ याकूब को पकड़ कर खड़ा करने की कोशिश करते हैं. हालांकि याकूब किसी तरह का विरोध नहीं करता. मगर उसके पैर इतनी बुरी तरह कांप रहे थे कि ठीक से जमीन पर रखे ही नहीं जा रहे थे. किसी तरह तीनों स्टाफ मिल कर उसे पकड़े हुए अमरधाम पहुंचते हैं. जो कि याकूब के बैरक से सिर्फ 15 कदम की दूरी पर था.
अमरधाम में एडीजी, डीआईजी, ज्यूडियशल मजिस्ट्रेट और चीफ मेडिकल अफसर पहले से ही मौजूद थे. जेलर और बाकी स्टाफ याकूब को लेकर वहां पहुंचते हैं. फिर उसे फांसी के तख्ते पर खड़ा किया जाता है, ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट याकूब को उसके गुनाहों के बारे में पढ़ कर सुनाते हैं और बताते है कि क्यों उसे फांसी दी जा रही है. फिर उससे पूछा जाता है कि क्या वो अपना गुनाह कबूल करता है? याकूब के पैर अब भी कांप रहे थे. कुछ पल बाद वो कहता है कि अगर उसे उसके भाई टाइगर मेमन की वजह से फांसी दी जा रही है तो उसे कुछ नहीं कहना. लेकिन अगर उसे मुजरिम मानते हुए फांसी दी जा रही है तो ये गलत है. इसके बाद याकूब का चेहरा काले कपड़े से ढक दिया जाता है.
ठीक 7 बजे फांसी के तख्ते का लीवर खींचा जाता है और याकूब फंदे पर झूल जाता है. फंदे पर झूलने से ऐन पहले याकूब के मुंह से जो आखिरी शब्द निकला था वो था या अल्लाह इसके बाद एक मिनट में ही उसका जिस्म हरकत करना बंद कर देता है.