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कौन लौटाएगा उसकी जिंदगी के वो 14 साल

तब दिल्ली में ना मेट्रो की रफ्तार थी, ना फ्लाइओवर की बाढ़. ना चमचमाता एयरपोर्ट ना दमकता रेलवे स्टेशन. पुरानी दिल्ली भी तब वैसी ही पुरानी ही थी और उसी पुरानी दिल्ली से उसे उठाया गया था. ये कहानी है पुरानी दिल्ली के तेलीवाड़ा इलाके में रहने वाले 18 साल के आमिर की.

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तब दिल्ली में ना मेट्रो की रफ्तार थी, ना फ्लाइओवर की बाढ़. ना चमचमाता एयरपोर्ट ना दमकता रेलवे स्टेशन. पुरानी दिल्ली भी तब वैसी ही पुरानी ही थी और उसी पुरानी दिल्ली से उसे उठाया गया था. ये कहानी है पुरानी दिल्ली के तेलीवाड़ा इलाके में रहने वाले 18 साल के आमिर की.

14 साल बाद जब वो आजाद हुआ तो दिल्ली की सूरत ही नहीं पूरी दिल्ली बदल चुकी है. लेकिन वो खुद इस बदलाव का गवाह नहीं बन पाया. क्योंकि उसकी जिंदगी के सबसे खूबसूरत 14 साल उससे छीन कर सलाखों को दे दिए गए थे, जेल की सलाखों को. वो सलाखें अब टूट चुकी हैं, उसकी बाकी की उम्र भी उसे लौटाई जा चुकी हैं. पर सवाल यही है कि क्या उसके बीते हुए वो 14 साल, वो 5110 दिन कोई लौटा पाएगा?

बात 1996-97 की है. इन दो सालों में दिल्ली, यूपी और हरियाणा में अलग-अलग तारीख और वक्त पर कुल 22 धमाके हुए थे. ये धमाके सड़क पर, बाजार में, रेस्तरां, बसों में यहां तक कि ट्रेन में भी हुए. इन धमाकों के लिए बांग्लादेश और पाकिस्तान में छुपे आतंकवादी और बम एक्सपर्ट अब्दुल करीम टुंडा व कुछ दूसरे आतंकवादी संगठनों को जिम्मेदार ठहराया गया. धमाकों की तफ्तीश दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल कर रही थी, पर दो साल बीत गए और उसके हाथ खाली थे. उसके बाद 20 फरवरी 1998 की वो रात आई, जिसने आमिर की जिंदगी बदल दी.

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पुरानी दिल्ली के तेलीवाड़ा इलाके में रहने वाला 18 साल का आमिर दवा लेने के लिए घर से बाहर निकला था. पुरानी दिल्ली से आम तौर पर इस तरह किसी को यूं उठा ले जाना मुश्किल होता है. क्योंकि यहां लोग देर रात तक जागे होते हैं, दुकानें खुली रहती हैं. पर यहां सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि कोई कुछ समझ पाता तब तक जिप्सी निकल चुकी थी. आमिर को अब तक यही गुमान था कि शायद उसे किसी ने अगवा कर लिया है. मगर एक बार जैसे ही वो गाड़ी से बाहर निकला उसे सब समझ आ चुका था.

सात दिनों तक आमिर को गैरकानूनी तरीके से पुलिस हिरासत में रखा गया. इस दौरान उस पर तमाम जुल्म ढहाए गए. उससे जबरन सादे कागजात पर दस्तखत कराए गए. इस दौरान आमिर के घरवाले लगातार अपने बेटे को तलाश रहे थे. उन्हें पता ही नहीं था कि उनके बेटे को कौन लोग और कहां उठा कर ले गए हैं? उन्हें तो ये खबर 28 फरवरी को मिली. जब अखबारों की हेडलाइंस में उनके बेटे का नाम आया. आमिर के अलावा पुलिस ने एक और लड़के को उठाया था, उसका नाम मोहम्मद शकील था. उसे आमिर का साथी बताया गया.

जाहिर है आमिर के घरवालों के साथ-साथ पूरी पुरानी दिल्ली को इस खबर ने चौंका दिया था. जितनी आमिर की उम्र नहीं थी उससे ज्यादा धमाकों का इल्जाम अब उसके नाम था. उम्र से ज्यादा केस उसके सिर पर थे. पल भर में आमिर की जिंदगी ही बदल चुकी थी. जब उसे उठाया गया तब वो 11वीं कक्षा में था. पर एक झटके में अब वो स्टूडेंट से एक खूंखार आतंकवादी बनाया जा चुका था.

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पर क्यों? आखिर आमिर ही क्यों? उसे ही क्यों उठाया गया? उसी के सिर 22 धमाकों का इलजाम क्यों लगा? इतने भरे-पूरे शहर में पुलिस किसी और को भी उठा सकती थी? तो आमिर ही क्यों? क्या उसका कोई पुराना क्रिमिनल रिकार्ड था? या पाकिस्तान या बांग्लादेश से कोई कनेक्शन? आज तक ने पता किया तो पता चला कि आमिर की बहन की शादी पाकिस्तान में हुई है. बस यही उसका पाकिस्तान से रिश्ता था. लेकिन सिर्फ पाकिस्तान से, पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी संगठनों से नहीं.

आज तक ने आमिर की पिछली जिंदगी के बारे में छानबीन की. हमें पता चला कि उसका कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं था. फिर आमिर को ही पुलिस ने क्यों पकड़ा? ये सवाल हमने आमिर से ही पूछ लिया. इलजाम इतना बड़ा और खौफनाक था कि आमिर का पूरा परिवार टूट गया. पड़ोसी छोड़िए अपनों तक ने आमिर के घरवालों से किनारा कर लिया.

आमिर के पिता का छोटा-मोटा बिजनेस था. वो बच्चों के लिए खिलौने बनाते थे, उसी से घर का गुजर-बसर होता था. बेटे पर सबसे बड़ा इलजाम लगा था. पुलिस आमिर को आतंकवादी करार देकर अपना काम कर चुकी थी. अब आमिर को साबित करना था कि वो आतंकवादी नहीं बल्कि एक स्टूडेंड है और बेगुनाही मुफ्त में साबित नहीं होती. इसके लिए कोर्ट-कचहरी वकील का खर्चा आता है.

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बाप ने बेटे के केस के लिए अपना सब कुछ झौंक दिया. खिलौनों के जरिए दूसरों के बच्चों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने वाले का खुद अपना सबसे प्यारा खिलौना टूट रहा था. कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने के बाद खिलौने बनाने के लिए वक्त भी कहां बचा था. लिहाजा घर की माली हालत खस्ता होती गई. बेटे के गम ने बाप को कुछ इस कदर तोड़ दिया कि आमिर की गिरफ्तारी के तीन साल बाद ही आमिर के वालिद की मौत हो गई.

बदनसीबी देखिए कि आमिर अपने बाप को मिट्टी भी नहीं दे सका, क्योंकि वो जेल में था. मगर हां, मरने से पहले तिहाड़ में जब उसके पिता उससे मिलने आए थे तब उन्होंने जो कुछ उससे कहा था वो उसे आज भी याद है. आमिर के पिता की मौत के बाद अब आमिर के केस की सारी जिम्मेदारी उसकी मां ने उठा ली, क्योंकि घर में और कोई था नहीं. एक बहन थी जो ब्याह कर पाकिस्तान जा चुकी थी. पर आमिर की बदनसीबी यहीं खत्म नहीं होती. शौहर की मौत और बेटे के माथे पर आतंकवादी का कलंक, इन दोनों गमों ने आमिर की मां को भी बुरी तरह तोड़ कर रख दिया. सदमा ऐसा लगा कि ठीक उसी साल जिस साल शौहर की मौत हुई थी, आमिर की मां को भी लकवा मार गया. जिस्म के ज्यादातर हिस्से ने काम करना बंद कर दिया. अब घर में एक जिंदा लाश थी और घर के बाहर कानूनी खेल. पैरवी करने वाला भी कोई नहीं था, खैर वक्त धीरे-धीरे बीतता गया.

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अब तक आमिर पर एक साथ तीन राज्यों में हुए धमाकों के सिलसिले में मुकदमा चलना शुरू हो चुका था. ये मुकदमा दिल्ली, गाजियाबाद, रोहतक और सोनीपत के सेशन कोर्ट में चल रहे थे. धमाकों के सिलसिले में आमिर के खिलाफ 22 मुकदमे दर्ज हुए थे. इनमें बाकी तमाम धाराओं के साथ-साथ देशद्रोह और देश के खिलाफ जंग का मामला भी शामिल था. मुकदमों की सुनवाई अपनी रफ्तार से चल रही थी. दिन-महीने साल बीतते जा रहे थे. इस बीच जेल में आमिर ने पढ़ाई शुरू कर दी, लेकिन आरोप ही ऐसा लगा था कि जेल में भी उसे सुकून से नहीं रहने दिया गया. ताने मारे गए कि आतंकवादी भी अब पढ़ाई करेगा.

उधर चार शहरों यानी दिल्ली, गाजियाबाद, रोहतक और सोनीपत में तमाम गवाहों और सबूतों के बीच मुकदमे की कार्रवाई जारी थी. शहर बेशक अलग-अलग थे, पर ये दिल्ली, यूपी या हरियाणा पुलिस का ज्वाइंट ऑपरेशन नहीं था. आमिर की गिरफ्तारी से लेकर तमाम आरोप दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने लगाए थे.

इन चार शहरों और 22 धमाकों के सिलसिले में पुलिस ने करीब 400 गवाहों की लंबी-चौड़ी फौज खड़ी की थी. फिर वो वक्त भी आया जब एक-एक कर अदालतों ने अपना फैसला सुनाना शुरू किया. सोनीपत, रोहतक और गाजियाबाद सेशन कोर्ट में एक भी गवाह ने पुलिस की कहानी को सही नहीं ठहराया. लिहाजा इन तीनों ही अदालतों से आमिर बरी हो गया. दिल्ली के धमाकों का कलंक अब भी उसके माथे था. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आमिर की गिरफ्तारी सदर बाजार रेलवे स्टेशन सिग्नल नंबर दस से दिखाई थी. लेकिन इस गिरफ्तारी का कोई सबूत नहीं था. जबकि कानूनन पुलिस को इस गिरफ्तारी के बारे में जीआरपी या आरपीएफ यानी रेलवे पुलिस फोर्स को जानकारी देनी चाहिए थी और उन्हें इस गिरफ्तारी का गवाह भी बनाना चाहिए था.

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इसके अलावा दिल्ली में जितनी जगह धमाके हुए थे, वहां भी कोई ऐसा गवाह नहीं मिला जिसने आमिर को बम रखते देखा हो. जिन गवाहों को पुलिस ने धमाकों का चश्मदीद बताया था, वो भी अदालत में मुकर गए. गवाहों के अलावा पुलिस एक भी ऐसा सबूत पेश नहीं कर सकी, जिससे आमिर का धमाकों से रिश्ता कायम किया जा सकता. यहां तक कि अब्दुल करीम टुंडा या किसी आतंकवादी संगठन के साथ उसके रिश्ते भी पुलिस साबित नहीं कर पाई.

लिहाजा एक-एक कर आमिर धमाकों के इलजामों से बरी होता गया और फिर आखिरकार 9 जनवरी 2012 को लंबे 14 साल बाद उसे जेल से रिहाई मिल गई. चूंकि आमिर की गिरफ्तारी और आमिर के खिलाफ केस दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने तैयार किया था, लिहाजा आज तक ने इस बारे में दिल्ली पुलिस के आला अफसरों से बात करने की तमाम कोशिशें कीं. लेकिन दिल्ली पुलिस ने आमिर के बारे में बात करने से साफ मना कर दिया.

आमिर बेशक अब आजाद है, वो घर लौट आया है. लेकिन इन 14 सालों ने उसकी पूरी जिंदगी ही बदल कर रख दी. बाप को पहले ही खो चुका है, मां अब बिस्तर से उठना तो दूर ठीक से बोल भी नहीं पाती. खुद आमिर के जेहन में 14 साल का जख्म ऐसा घर कर गया है कि उसकी याददाश्त ही कमजोर हो गई है. वो बीच-बीच में अचानक सब कुछ भूल जाता है. बस कुछ याद रहता है तो वो जख्म, जो इन 14 सालों ने उसे दिए.

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वैसे आमिर को पुलिस, कानून या समाज से अब भी कोई शिकायत नहीं है. उसने सबको माफ कर दिया. वो अब एक नई जदिंगी जीना चाहता है और इसकी शुरुआत भी उसने कर दी. आमिर की हाल ही में शादी हो गई. बस एक टीस अब भी उसके दिल में है और वो ये कि सब कुछ होने के बाद भी उसकी जिंदगी के वो 14 साल कोई उसे नहीं लौटा पाएगा, कोई नहीं.

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