दुनिया का शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो किसी जानवर से इंसानों जैसे सुलूक की उम्मीद करे. और ठीक इसी तरह शायद दुनिया का कोई जानवर भी ये उम्मीद नहीं करता होगा कि खुद को सभ्य कहने वाला इंसान उसकी तरह जानवर बन जाए. अब जानवर तो इंसान नहीं बन पाया. पर हां इंसान जब-तब खुद को जानवर जरूर बना लेता है. अगर ऐसा ना होता तो छह सेकेंड में एक तेंदुआ तीस गोलियां ना खाता.
एक तेंदुए के एनकाउंटर को देखकर ये अंदाजा लगाना मुश्किल है कि इनमें इंसान कौन है और जानवर कौन? क्योंकि खुद को इंसान कहने वाले तमाम इंसान जो हरकत कर रहे हैं वैसी हरकत तो शायद जानवरों में भी इंसानों के साथ नहीं होती होगी. मुर्दा तेंदुए पर भी गोली चलाई गई.
वैसे ये जानवर इस वक्त बेबस ना होता तो शायद इन इंसानों की इतनी हिम्मत भी ना होती. पर यहां मौजूद हर शख्स को पता है कि इस वक्त इसके साथ वो जो भी करेंगे, वो चुपचाप सहेगा. क्योंकि मुर्दे कभी विरोध नहीं करते. वो तो बस जिंदों के रहमो-करम पर होते हैं.
गोलियां लगने के बाद तेंदुआ मर चुका है. और बस इसीलिए बेबस है. और उसकी बेबसी का फायदा उठा कर ये इंसान अलग-अलग एंगल से अलग-अलग पोज में खिलखिलाते और मुस्कुराते हुए उसकी तस्वीरें उतार रहे हैं. और ये जवान तो अपनी बहादुरी के किस्से सुना रहा है.
ये तंदुआ ना तो आतंकवादी था और ना ही इसने सरहद पार से घुसपैठ की थी. ये तो बस कश्मीर घाटी में बर्फ की वजह से रास्ता भटक कर बस्ती के करीब आ गया था. हां, इसने कुछ इंसानों को जख्मी करने का गुनाह जरूर किया था. पर क्या उसकी सजा ये थी?
ये अफसोसनाक कहानी कश्मीर घाटी के अनंतनाग जिले से आई है. जिले के मीरपुरा इलाके में कुछ दिनों से एक तेंदुआ दिखाई दे रहा था. घाटी में जबरदस्त बर्फबारी के चलते शायद वो रास्ता भटक गया और जंगल से बस्ती के करीब पहुंच गया. कुछ इंसानों से उसका सामना भी हुआ और उन्हें उसने घायल कर दिया.
इसी बीच सोमवार सुबह खबर मिली कि तेंदुआ बस्ती के ही करीब है. तेंदुआ के बस्ती में होने की बात कई दिनों से थी पर इस दौरान वन विभाग नदारद था. सोमवार सुबह जैसे ही तेंदुए की खबर फैली तो वन विभाग के साथ आसपास के इलाकों में मौजूद सेना के जवान भी तेंदुए के पीछे लग गए. किसके कहने पर पता नहीं. जवानों की इतनी बड़ी तादाद देख बस्ती वाले भी हैरान रह गए. फिर क्या था कुछ ही देर में पूरी बस्ती भी इकट्ठी हो गई.
इसके बाद तेंदुए की खोज शुरू हुई. बस्ती वाले डंडे से लैस थे तो जवान एके-47 से. जहां तेंदुआ दिखता बस्ती वाले उसे दौड़ा देते. इंसानों और तेंदुए के बीच ये लुका-छुपा घंटों जारी रही. इस दौरान सेना के जवान ने कई राउंड गोलियां चलाईं.
फिर आखिरकार एक जगह तेंदुआ गिर पड़ा. लगभग बेहोश था या शायद मर चुका था. पर उसमें हरकत जरा भी नहीं हो रही थी. शायद पहले ही उसे गोली लग चुकी हो. पर उसके बावजूद सेना के जवान उसके करीब जाते हैं और फिर एके-47 और दूसरी बंदूकों का मुंह उस बेजुबान बेहोश या शायद मुर्दा तेंदुए पर खोल देते हैं.
कई गोली खाने के बाद तेंदुआ तब भी हरकत नहीं करता. मगर इसके बावजूद फिर एक जवान अपनी बहादुरी दिखाता है और मुर्दा तेंदुए पर गोली दाग देता है. सिर्फ छह सेंकेंड में कुल तीस राउंड गोलियां चलती हैं. तीस राउंड गोलियां. एक मुर्दे तेंदुए पर.
पर तमाशा यहीं खत्म नहीं होता. बल्कि इसके बाद उस तेंदुए का तमाशा बनाया जाता है. मृत तेंदुए को घसीटकर उसकी नुमाइश की जाती है. आप पूछेंगे कि वन विभाग के लोग यहां क्या कर रहे थे तब? उन्होंने तेंदुए को बेहोश कर क्यों नहीं पकड़ा. तो हटाइए उनकी कहानी. वन विभाग का जवान तेंदुए के मारे जाने से पहले उसे पकड़ने की बजाए अपनी एक्शन का फोटो खिंचवा रहा था.
वैसे सवाल तो सेना के जवानों से भी है. आखिर उन्हें तेंदुए पर गोली चलाने का हुक्म कहां से मिला? एक मुर्दा तेंदुए को यूं गोली मारना कहां की इंसानियत है? वो भी तीस-तीस गोलियां? अब आप ही बताएं जानवर क्या सिर्फ तेंदुआ था?