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बाढ़ के बाद चोरों के निशाने पर कश्मीर

क्या इंसान इतना नीचे भी गिर सकता है? क्या इंसान की फिरतत इतनी शर्मनाक भी हो सकती है? और क्या इंसान, सिर्फ़ अपनी ओछी चाहतों के लिए अपने ही जैसे किसी लाचार इंसान के मुंह से निवाला छीन सकता है. ये सवाल इसलिए, क्योंकि कश्मीर में आई सदी की सबसे भीषण बाढ़ के बाद कुछ इंसानों ने यहां जो सूरत दिखाई दी है, उसके बाद सचमुच ऐसे इंसानों को इंसान कहते हुए शर्म आती है, लेकिन क्या करें? कुदरत के बाद अब कश्मीर ऐसे ही इंसानों के पंजे में है.

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क्या इंसान इतना नीचे भी गिर सकता है? क्या इंसान की फिरतत इतनी शर्मनाक भी हो सकती है? और क्या इंसान, सिर्फ़ अपनी ओछी चाहतों के लिए अपने ही जैसे किसी लाचार इंसान के मुंह से निवाला छीन सकता है. ये सवाल इसलिए, क्योंकि कश्मीर में आई सदी की सबसे भीषण बाढ़ के बाद कुछ इंसानों ने यहां जो सूरत दिखाई दी है, उसके बाद सचमुच ऐसे इंसानों को इंसान कहते हुए शर्म आती है, लेकिन क्या करें? कुदरत के बाद अब कश्मीर ऐसे ही इंसानों के पंजे में है.

दरअसल, जम्मू-कश्मीर में बाढ़ का पानी जैसे-जैसे कम हो रहा है, भुखमरी, महामारी और रोज़ी-रोज़गार जैसी तमाम परेशानियां मुंह बाए खड़ी हो रही हैं. ज़िंदगी की गाड़ी को फिर से पटरी पर लाने के लिए इंसान रोज़ी-रोटी, सड़क और मकान जैसी बुनियादी ज़रूरतों फिर से जुटाने की जद्दोजहद में लगा है, लेकिन इन कुदरती परेशानियों के बीच किस कदर खुद इंसान ही इंसान का दुश्मन बना है, ये सोच कर भी अजीब लगता है. मगर, क्या करें? यही सच है और सच ये भी है कि इस मुश्किल हालत में कैसे कुछ इंसान अपने अंदर के इंसान को मार कर खुद अपने ही हाथों से अपने ही इंसानों को लूटने से बाज नहीं आ रहा है.

बाढ़ के पानी से घिरे एक शख्स ने बोट पर आए जिन लोगों को फरिश्ता समझा था, वही इनके लिए सबसे बड़े दुश्मन साबित हुए. राहतकर्मियों के बीच उन्हीं का लबादा ओढ़ कर कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने इन्हें घरों से निकाला तो जरूर, लेकिन घर खाली करवाने के बाद खुद उन्हीं लोगों ने घरों में चोरी की और इस बात का अहसास उन्हें तब हुआ, जब वो पानी कम होने के बाद अपने घरों में वापस लौटे.

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जम्मू में 55 साल बाद आई एक ऐसी बाढ़, जिसने धरती के जन्नत की सूरत बिगाड़ दी, जाते-जाते अब ज़म्मू कश्मीर के लोगों को वो ज़ख्म दे रही है, जिसके बारे में सोचना भी मुश्किल लगता है. हालत ये है कि सेना और दूसरी एजेंसियों ने जिन 2 लाख 34 हज़ार से ज़्यादा लोगों को उनके ठिकानों से निकाल कर महफ़ूज़ जगहों तक पहुंचाया है, अब खुद वही लोग अपने घरों में लौटने से घबरा रहे हैं. एक तो बाढ़ के पानी ने उनके घरों की बुनियाद हिला दी है, ऊपर से चोरी और लूट-खसोट की वारदातों ने घरों में सिवाय चंद ईंटों की चारदिवारी के और कुछ भी नहीं छोड़ा है. सवाल ये है कि आख़िर इस मुसीबत की घड़ी में वे कौन लोग हैं, जो पहले हालत से लाचार इंसान को भी लूटने से बाज नहीं आ रहे? क्या ये सचमुच इंसान हैं या फिर इंसान की शक्ल में कुछ और?

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