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कोरोना

गांव में नहीं मिली एंट्री तो खुद को बोट पर किया क्वारनटीन, मछली खाकर कर रहे गुजारा

बोट पर क्वारनटीन
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ढाई हफ्ते पहले गुजरात से अपने घर यूपी लौटकर आए तो गांव वालों ने दो प्रवासियों को घर में नहीं घुसने दिया. तबसे वह गंगा नदी में पड़ी बोट पर ही रह रहे हैं और मछलियां पकाकर भूख मिटा रहे हैं. 

बोट पर क्वारनटीन
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रोजी रोटी के लिए अपने गांव और शहर को छोड़कर वापस आ रहे प्रवासी मजदूरों की दिलचस्प तस्वीरें सामने आ रही हैं. ऐसी ही एक तस्वीर वाराणसी के ग्रामीण इलाके चौबेपुर के गंगा किनारे बसे कैथी गांव से भी सामने आई जहां गुजरात से वापसी के बाद जब परिवार और गांव वालों ने नहीं स्वीकारा तो दो दोस्तों ने गंगा की गोद में ही नाव पर खुद का बसेरा बनाकर बोट में ही खुद को क्वारनटीन कर लिया.  

मछली खाकर गुजारा.
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गुजरात के मेहसाणा से आए दो दोस्तों ने हालात के साथ समझौता कर लिया. लॉकडाउन में फंसे होने के दौरान लाख दुश्वारियों और मुश्किलों को झेलते हुए गुजरात के मेहसाणा से अपने गांव कैथी पहुंचे तो परिवार और गांव वालों ने गांव में एंट्री ही नहीं दी.

तब से लगभग ढाई हफ्ते का वक्त बीत जाने के बावजूद नाविक परिवार के पप्पू और कुलदीप निषाद जो मेहसाणा में गन्ने के जूस की पेराई की मजदूरी किया करते थे, वे गंगा की लहरों पर ही अपने पैतृक नाव पर खुद को क्वारनटीन किए हुए हैं.

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बोट पर क्वारनटीन
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इस बारे में कुलदीप बताते हैं कि तमाम कोशिशों के बाद जब मालिक ने भी पैसे नहीं दिए तो अन्य लोगों से मदद मांगकर श्रमिक ट्रेन से गाजीपुर तक आए. वहां थर्मल स्क्रीनिंग और ब्लड चेक कराकर बस से वाराणसी अपने गांव कैथी आ गए. उसके बाद मोहल्ले में बैग रखकर वापस नाव पर आ गए. कुछ दिनों बाद गांव में जरूरत का सामान लेने गए तो गांव वालों ने रोक दिया. तभी से नाव पर ही रह रहे हैं. चूंकि
साग-सब्जी नहीं मिल पा रहा है तो गंगा में से मछली पकड़कर उसे पकाकर खा रहे हैं.

कुलदीप आगे बताते हैं कि उनके गांव में देश के कोने कोने से श्रमिक लौटे हैं, लेकिन उन दोनों को छोड़कर कोई और क्वारनटीन का पालन नहीं कर रहा है. इस घड़ी में कुलदीप के माता-पिता तक ने उनको घर में घुसने से मना कर दिया. तभी से वे नाव पर ही आकर लगभग ढाई हफ्तों से रह रहे हैं. जब तक घर से खाना और पैसा मिला तो ठीक, लेकिन किसी तरह की सरकारी मदद उन तक नहीं पहुंची.      

बोट पर क्वारनटीन
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वहीं कुलदीप के साथ ही गांव लौटे पप्पू निषाद तो और ज्यादा बदकिस्मत हैं. पहली बार बाहर कमाने तीन माह पहले ही मेहसाणा गए थे लेकिन कुछ दिनों बाद ही लॉकडाउन लग गया. मेहसाणा में वे भी गन्ने की मशीन चलाया करते थे. किसी तरह अपने गांव तक आए तो गांव में घुसने तक नहीं दिया. 15-16 दिन से नाव पर ही रह रहे हैं. जब कभी कुलदीप के घर से मदद मिल गई तो ठीक नहीं तो मछली मारकर अन्य मल्लाह साथी दे देते हैं तो वहीं खा लेते हैं. 

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