अंतरराष्ट्रीय मेडिकल पत्रिका The Lancet में छपी एक रिपोर्ट चर्चा का विषय बन गई है. रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि COVID-19 वाले लोगों को इबूप्रोफेन दवा (ibuprofen) और अन्य नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लामेटरी ड्रग्स (NSAIDs) लेने चाहिए कि नहीं.
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इससे पहले The Lancet ने ही ये बताया था कि डायबिटीज और हाइपरटेंशन वालों में COVID-19 का खतरा ज्यादा होता है.
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The Lancet ने अब बताया है कि एंजियोटेंसिन कंवर्टिंग एंजाइम2 (ACE2) के इस्तेमाल से कोरोना वायरस कोशिकाओं को एक साथ बांधे रखता है. इसे ACE इनहिबिटर्स और एंजियोटेंसिन II टाइप-1 रिसेप्टर ब्लॉकर्स के इलाज से बढ़ाया जा सकता है.
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The Lancet में लिखा है कि Thiazolidinedione और ibuprofen ACE2 को बढ़ा सकता है. स्विट्जरलैंड में बायोमेडिसिन विभाग में पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता लेई फांग ने लिखा है, 'ज्यादा ACE2, COVID -19 के संक्रमण को और बढ़ा सकता है.
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लेखक ने लिखा है, 'हमें लगता है कि डायबिटीज और हाइपरटेंशन का इलाज करने वाली ACE2 दवाएं COVID -19 के खतरे को और बढ़ावा दे सकती हैं.'
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इस लेख के जवाब में फ्रांस के स्वास्थ मंत्री ओलिवियर वेरान ने ट्वीट किया कि इबूप्रोफेन और अन्य NSAID दवाएं COVID-19 संक्रमण को और बढ़ा सकती हैं.
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इसके अलावा, फ्रांस की सरकार ने कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज में नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लामेटरी ड्रग्स की जगह पैरासिटामोल का इस्तेमाल करने को कहा है.
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ओलिवियर वेरान के ट्वीट से उलट यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी (EMA) ने कहा कि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि इबूप्रोफेन कोरोना वायरस के मामले को और खराब कर सकता है.
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EMA अधिकारियों का सुक्षाव है कि नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लामेटरी ड्रग्स(NSAIDs) और COVID-19 के बीच संबंध को लेकर और स्टडीज की जानी बाकी हैं.
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वहीं विश्व स्वास्थ संगठन ने इन सारी आशंकाओं का खारिज करते हुए बताया कि इबूप्रोफेन और कोरोना वायरस के लक्षणों में कोई संबंध नहीं है.
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WHO ने अपने अधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर लिखा है, 'वर्तमान में उपलब्ध जानकारी के आधार पर डब्ल्यूएचओ इबूप्रोफेन के उपयोग को मना नहीं करता है.'