आऩंद
बिहार बस बड्डे पर भी मजदूरों का रेला दिखा. जेबें खाली हैं, परिवार को
पालने की चिंता ने चाल में रफ्तार ला दी है. जो मजदूर दिल्ली शहर को सुंदर
बनाने के लिए अपना पसीना बहाता था, अट्टालिकाओं पर रस्सी के सहारे चढ़कर
उन्हें सतरंगी बनाता था, जो मिलों में अपनी सांसों को धौंकनी बना देता
था...वो मजदूर चल पड़ा है, सिर पर गठरी लादे, हाथ में बच्चा उठाए.