पूरी दुनिया में अब तक कोरोना वायरस के संक्रमण से सबसे ज्यादा मौतें इटली में हुई हैं. 19 मार्च को इटली में कोरोना वायरस से हुईं मौतों का आंकड़ा चीन से भी आगे चला गया जहां से ये खतरनाक वायरस दिसंबर महीने में फैलना शुरू हुआ था.
इटली में 3405 लोगों की मौत हो चुकी हैं. यहां 21 फरवरी से कोरोना वायरस फैलना शुरू हुआ था. चीन में अब तक कोरोना वायरस के संक्रमण से 3245 मौतें हो चुकी हैं. इटली में बुधवार को एक ही दिन में 475 मौतें हुई थीं जो दुनिया भर के किसी भी देश में एक दिन में हुई मौतों का सबसे बड़ा आंकड़ा था.
सिविल प्रोटेक्शन एजेंसी के मुताबिक, इटली में 41,035 मामले सामने आ चुके हैं. पिछले तीन दिनों में ही इटली में कोरोना वायरस के मामलों में 14.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद इटली में बाकी देशों की तुलना में मृत्यु दर 12 फीसदी ज्यादा है.
कोरोना वायरस से बुजुर्ग आबादी को ज्यादा खतरा है, इसी तरह जिन लोगों को पहले से कोई बीमारी है, उन्हें भी कोरोना वायरस ज्यादा आसानी से अपनी चपेट में ले लेता है. इटली दुनिया भर में बुजुर्ग आबादी के मामले में दूसरे नंबर पर है और यहां युवा पीढ़ी बुजुर्गों के काफी संपर्क में रहती है.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इन्हीं दोनों फैक्टरों को इटली में कोरोना वायरस से मौत के भयावह आंकड़े के लिए जिम्मेदार माना है. यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के डेमोग्राफर और एपिडेमीलॉजिस्ट जेनिफर बीम डाउड का कहना है, ज्यादा लंबे जीवनकाल ने यहां की आबादी के स्वरूप को बदलने में अहम भूमिका निभाई है. यहां मृत्यु दर में बड़ी तेजी के साथ गिरावट हो रही है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि इटली की युवा पीढ़ी दूसरे देशों की तुलना में अपने बड़ों-बुजुर्गों के साथ ज्यादा करीब है. ये भी एक तथ्य है कि अधिकतर युवा अपने पैरेंट्स और दादा-दादी के साथ एक ही घर में रहते हैं.
फैमिली डेटा के मुताबिक, तमाम युवा ग्रामीण इलाकों में अपने पैरेंट्स के साथ रहते हैं और कामकाज के लिए रोजाना शहर जाते हैं. जैसे- लॉम्बार्डी इलाके का मिलान जहां कोरोना वायरस बहुत तेजी से फैला है.
यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का तर्क है कि शहरों और गांवों के बीच आवाजाही की वजह से वायरस का शांत तरीके से संक्रमण फैलता रहा. उनका कहना है कि शहरों और कस्बों में काम कर रहे और सोशलाइज कर रहे युवा भीड़-भाड़ वाली जगहों पर गए होंगे और वहीं से कोरोना वायरस अपने घर ले आए होंगे. इससे घर के बुजुर्गों तक संक्रमण फैला होगा.
अगर उनमें कोई लक्षण नहीं दिखे होंगे तो उन्हें पता भी नहीं चला होगा कि वे अपने घर के बुजुर्गों में संक्रमण फैला रहे हैं. बुजुर्ग आबादी कोरोना वायरस संक्रमण के सबसे पहले निशाने पर है. ऐसा इसलिए क्योंकि उनका श्वसन तंत्र कमजोर होता है और इसी पर वायरस का सबसे ज्यादा असर पड़ता है.
बच्चों में कोरोना वायरस के खिलाफ ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता होती है. इस पर रिसर्च कर रहे शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा इसलिए कि बच्चों के फेफड़ों को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा होता है. पहली सांस लेने के साथ ही हमारे फेफड़ों में प्रदूषित हवा पहुंचने लगती है और वे धीरे-धीरे खराब होते जाते हैं. इसीलिए बच्चों के फेफड़े नए वायरस से ज्यादा मजबूती से लड़ लेते हैं.
इटली में पूरी तरह से लॉकडाउन है ताकि कोरोना वायरस के संक्रमण को कम किया जा सके. शोधकर्ता बीम कहते हैं, हम बस यही कहना चाह रहे हैं कि केवल बूढ़ी आबादी को ही आइसोलेट करना ही काफी नहीं है बल्कि पूरी आबादी के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को प्रोत्साहित करने से मदद मिलेगी. मेरा मानना है कि अगर आपके देश की ज्यादातर आबादी बुजुर्ग है तो फिर ये शोध और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. इस महामारी से लड़ने में इटली का उदाहरण बाकी देशों के लिए काम आ सकता है.
देशों को अपनी बुजुर्ग आबादी वाले क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए और यह अनुमान लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि सबसे ज्यादा गंभीर स्थिति कहां हो सकती है. यह भी देखना चाहिए कि किस इलाके में ज्यादा स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरत पड़ सकती है.
हालांकि, किसी भी देश की बुजुर्ग आबादी भयंकर रूप से कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने और मृत्यु दर बढ़ने की गारंटी नहीं है. जापान में 28 फीसदी आबादी 65 उम्र से ऊपर की है लेकिन 19 मार्च तक वहां सिर्फ 924 मामले सामने आए हैं और 29 मौतें हुई हैं जोकि इटली में कोरोना के 41,035 मामले और 3405 मौतों की तुलना में काफी कम है. इटली ने कोरोना वायरस के संक्रमण को पहचानने और इससे लड़ाई शुरू करने में भी देरी कर दी जिससे यह तेजी से फैलता चला गया.
इटली की अधिकतर आबादी तमाम तरह की बीमारियों से भी ग्रसित है और इस वजह से भी कोरोना वायरस से यहां ज्यादा मौतें हो रही हैं.
रोम स्थित इंस्टिट्यूट ने इटली में कोरोना के संक्रमण से कुल मरने वालों के 18 फीसदी लोगों का मेडिकल रिकॉर्ड देखा तो पता चला कि मरने वालों में महज 0.8 फीसदी ही ऐसे लोग थे जिन्हें पहले से कोई बीमारी नहीं थी. इनमें से आधे से ज्यादा लोग पहले से ही कम से कम तीन बीमारियों से जूझ रहे थे और एक चौथाई लोग एक या दो बीमारी से ग्रसित थे.