शेयर बाजार (Stock Market) लगातार गिर रहा है, जिससे निवेशकों में हाहाकार मचा है. इसका सबसे बड़ा कारण विदेशी निवेशकों को बताया जा रहा है. दरअसल, हर दिन खबर आती है और साथ में डेटा भी, कि आज FPI ने इतने करोड़ रुपये शेयर बाजार से निकाल लिए, कुछ लोग इन्हें FII भी कहते हैं. अब कंफ्यूजन इसी बात को लेकर है, कि FPI और FII क्या है, और दोनों में अंतर क्या है? और ये कैसे भारतीय शेयर बाजार का अहम हिस्सा है?
दरअसल, FPI और FII को समझने से पहले आपको FDI के बारे में थोड़ा बताते हैं, फिर तस्वीर अपने आप साफ हो जाएगी.
Foreign Direct Investment (FDI) को हिन्दी में (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) कहा जाता है. किसी भी देश में निवेश के लिए FDI एक रास्ता है. इसका मतलब है कि किसी विदेशी कंपनी या संस्था में हिस्सेदारी खरीदना या फिर दूसरे देश में अपना कारोबार शुरू करना FDI कहलाता है. कोई भी देश आर्थिक तरक्की के लिए विदेशी निवेश को बढ़ावा देता है. भारत में भी बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश है, और यह लगातार बढ़ रहा है.
FII या FPI किसे कहते हैं?
भारतीय परिपेक्ष्य में नियम को देखें तो जब भी कोई विदेशी निवेशक किसी कंपनी में 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी खरीदता है, तो फिर वो FDI कहलाता है, यानी FDI के तहत 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी खरीदना अनिवार्य होता है. इसके अलावा जब कंपनी हमारे देश में मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट लगाती है, तो वो भी FDI के तहत ही होता है. लेकिन अगर विदेशी निवेशक द्वारा किसी कंपनी में 10 फीसदी से कम या फिर 10 फीसदी तक हिस्सेदारी खरीदी जाती है, तो उसे FPI कहते हैं.
अब सबसे जानते हैं कि ये FPI है क्या? FPI को विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment) कहा जाता है, भारतीय बाजार में अभी हर दिन शेयर बेचकर पैसे निकाल रहे हैं, वो यही FPI हैं, कुछ लोग इन्हें विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) भी कह देते हैं. दरअसल, 10 पहले यानी 2014 से पहले विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में दो तरह से निवेश करते थे- FII और QFI. QFI को क्ववालिफाइड फॉरेन इन्वेस्टमेंट के नाम से जाना जाता है.
भारत में निवेश के लिए साल 1994 में FII को परमिशन मिला था, वहीं 2011 में QFI को इजाजत मिली. लेकिन 2014 में सेबी (SEBI) ने FII और QFI को मर्ज कर सेबी ने FPI बना दिया. यानी FII केवल अब बोलचाल की भाषा है, असल में उसे FPI कहा जाता है, और वही भारतीय शेयर बाजार में निवेश कर सकता है.
- FII किसी भी कंपनी की इक्विटी में 10 फीसदी ज्यादा निवेश नहीं कर सकते. अनलिस्टेड कंपनी में FII को निवेश की इजाजत नहीं है. विदेशी संस्थागत निवेशक देश के बाहर पंजीकृत होते हैं, जहां वो निवेश करते हैं. संस्थागत निवेशक विशेष रूप से हेज फंड, बीमा कंपनियां, पेंशन फंड और म्यूचुअल फंड में शामिल हैं.
यानी ऑफिशियल तौर पर विदेशी निवेशक, जो कि भारतीय शेयर बाजार, या किसी भी कंपनियों में 10 फीसदी तक हिस्सेदारी रखता है, उसे फॉरेन पोर्टफोलियो इंवेस्टमेंट (FPI) कहा जाता है. FPI एक देश के व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा किसी अन्य देश के स्टॉक, बॉन्ड या म्यूचुअल फंड जैसे फाइनेंशियल एसेट में किए गए इन्वेस्टमेंट को दर्शाता है.
FPI कहां-कहां कर सकते हैं निवेश
स्टॉक: इन्वेस्टर विदेशी कंपनियों में शेयर खरीदते हैं, इससे उन्हें डिविडेंड और कैपिटल गेन का लाभ मिलता है, क्योंकि कंपनी की स्टॉक की कीमत बढ़ती जाती है.
इक्विटी म्यूचुअल फंड: सीधे स्टॉक खरीदने की बजाय, इन्वेस्टर इक्विटी-आधारित म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करने का विकल्प चुन सकते हैं, जिनके पास विदेशी इक्विटी का विविध पोर्टफोलियो है.
एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ईटीएफ): ये ऐसे फंड हैं जो विशिष्ट इंडेक्स या सेक्टर को ट्रैक करते हैं और स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड किए जा सकते हैं. विदेशी निवेशक ETF खरीद सकते हैं जो उन्हें विदेशी इक्विटी मार्केट के संपर्क में लाते हैं.
इसके अलावा डेट सिक्योरिटीज के तौर पर सरकारी बॉन्ड, कॉर्पोरेट बॉन्ड और फिक्स्ड-इनकम म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं. साथ ही ट्रेजरी बिल, कमर्शियल पेपर, डिपॉजिट सर्टिफिकेट, रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (REITS), डेरिवेटिव, कमोडिटी-लिंक्ड इन्वेस्टमेंट, सॉवरेन वेल्थ फंड (एसडब्ल्यूएफ), हेज फंड और प्राइवेट इक्विटी में भी निवेश कर सकते हैं.
अभी विदेशी निवेशक दो तरह से भारत में निवेश करते हैं, FPI और FDI. अगर दोनों में अंतर की बात करें तो FDI के तहत विदेशी निवेशक कंपनी पर महत्वपूर्ण प्रभाव या नियंत्रण चाहता है. जबकि FPI में केवल रिटर्न के लिए निवेश किया जाता है, कंपनी के मैनेजमेंट से कोई लेना-देना नहीं होता है.
FPI से जुड़ी कुछ खास बातेंः
FPI विदेशी अर्थव्यवस्था में निवेश करने का एक सामान्य तरीका है.
विदेशी निवेशक को किसी कंपनी की संपत्ति का प्रत्यक्ष स्वामित्व नहीं देता.
FPI निवेश से कंपनियों के स्टॉक की मांग को बढ़ावा देता है.
FPI निवेश से लिक्विडिटी की कमी नहीं होती है.
FPI शॉट टर्म को ध्यान में रखकर निवेश करते हैं.
FPI ब्याज दरों या राजनीतिक घटनाओं के आधार पर देश में और बाहर फंड को तेजी से मूव कर सकते हैं.
अगर नुकसान की बात करें तो FPI की अधिक निकासी से बाजार में अस्थिरता का माहौल आ सकता है, जो फिलहाल भारतीय बाजार में हो रहा है, जिससे गिरावट देखने को मिल रही है.
भारत में एफपीआई को नियंत्रित कौन करता है?
भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश को सेबी नियंत्रित करता है. किसी भी FPI को भारतीय बाजार में निवेश से पहले सेबी की इजाजत लेनी होती है, यानी सेबी में FPI को रजिस्टर्ड होना जरूरी है.
गौरतलब है कि उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी के पीछे विदेशी निवेश का बड़ा हाथ है. वैसे भी एफआईई किसी भी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, वे आम तौर पर बड़ी कंपनियां और संगठन हैं, जैसे कि बैंक, म्यूचुअल फंड हाउस और ऐसी अन्य संस्थाएं जो भारतीय निवेश बाजार में भारी रकम का निवेश करती हैं.