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ट्रंप को क्या हो गया है? भारतीयों को एक और झटका... US से 1 लाख भेजने पर लगेगा इतना टैक्स!

Remittances Rule: फिलहाल अगर एक भारतीय वहां से अपनी कमाई का हिस्सा परिवार को भेजता है, तो वो पूरा पैसा यहां तक पहुंचता है और भेजने वाले को अलग से कोई टैक्स नहीं देना पड़ता है. लेकिन अब ट्रंप प्रशासन ने टैक्स लगाने का फैसला किया है. 

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New US tax on NRI
New US tax on NRI

अमेरिका में बड़े पैमाने पर भारतीय रहते हैं, वो अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा भारत भेजते हैं, लेकिन ट्रंप प्रशासन के एक कदम से अमेरिका में रह रहे भारतीयों को झटका लग सकता है. दरअसल, फिलहाल अमेरिका से भारत पैसा भेजने पर कोई रेमिटेंस टैक्स नहीं है, यानी कोई टैक्स नहीं लगता है. अगर एक भारतीय वहां से अपनी कमाई का हिस्सा परिवार को भेजता है, तो वो पूरा पैसा यहां तक पहुंचता है और भेजने वाले को अलग से कोई टैक्स नहीं देना पड़ता है. लेकिन अब ट्रंप प्रशासन ने टैक्स लगाने का फैसला किया है. 

इसी कड़ी में अमेरिका की हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने हाल ही में 'वन बिग ब्यूटीफुल बिल' नामक एक विधेयक पारित किया है, जिसमें गैर-अमेरिकी नागरिकों द्वारा विदेशों में भेजे जाने वाले पैसे पर 3.5% की उत्पाद शुल्क (Excise Tax) लगाने का प्रावधान शामिल है. पहले ये प्रस्ताव 5% टैक्स के रूप में सामने आया था. भारतीय प्रवासियों (NRI) और अन्य आप्रवासियों के लिए चिंता का विषय बन गया है, जो नियमित रूप से भारत में अपने परिवारों को पैसे भेजते हैं. अगर यह विधेयक कानून बन जाता है, तो यह 1 जनवरी, 2026 से लागू होगा, जिससे भारत जैसे देशों को होने वाले रेमिटेंस पर असर पड़ सकता है. हालांकि अभी ये सीनेट में पारित नहीं हुआ है. 

भारत पर क्या पड़ेगा प्रभाव?
विश्व बैंक के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, भारत को हर साल लगभग 129 अरब डॉलर का रेमिटेंस प्राप्त होता है, जिसमें से 28% (लगभग 33 अरब डॉलर) अमेरिका से आता है. यह राशि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार और परिवारों की आर्थिक स्थिति के लिए महत्वपूर्ण है. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने चेतावनी दी है कि प्रस्तावित टैक्स के कारण भारत को मिलने वाले रेमिटेंस में 10-15% की कमी आ सकती है, जो सालाना 12-18 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है.

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अगर कोई एनआरआई भारत में 83,000 रुपये (लगभग 1,000 डॉलर) भेजता है, तो उसे 2900 रुपये (लगभग 35 डॉलर) टैक्स के रूप में देना होगा. बड़े ट्रांसफर के तौर पर जैसे कि संपत्ति खरीद या शिक्षा के लिए 10,000 डॉलर भेजने पर 350 डॉलर का अतिरिक्त टैक्स लगेगा.

NRI और वीजा धारकों पर प्रभाव
यह टैक्स गैर-अमेरिकी नागरिकों, जैसे कि H-1बी, L-1, F-1 वीजा धारकों और ग्रीन कार्ड धारकों पर लागू होगा. यह टैक्स आयकर से अलग है और हस्तांतरित राशि पर आधारित होगा, न कि आय पर. इसका मतलब है कि पहले से ही आयकर चुकाने के बाद, NRI को अपने परिवारों को भेजे गए पैसे पर अतिरिक्त 3.5% टैक्स देना होगा.

उदाहरण के लिए अगर कोई NRI हर महीने 1000 डॉलर अपने परिवार को भेजता है, तो उसे सालाना 420 डॉलर (लगभग 35,000 रुपये) अतिरिक्त टैक्स देना पड़ सकता है. जबकि शिक्षा या संपत्ति के लिए 10,000 डॉलर भेजने पर 350 डॉलर टैक्स के रूप में कटेंगे. 

पृथ्वी एक्सचेंज के प्रबंध निदेशक पवन कावड़ का कहना है कि अमेरिका का यह प्रस्ताव डिजिटल वित्त और सीमा-पार भुगतानों पर बढ़ती निगरानी को रेखांकित करता है, जिसमें वैश्विक धन प्रवाह की जटिलताओं को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए जा रहे हैं. यह प्रस्ताव दर्शाता है कि भविष्य में और अधिक जांच होगी. इससे प्रशासनिक बोझ बढ़ेगा और रेमिटेंस की प्रक्रिया धीमी हो सकती है. इसके अलावा 5000 डॉलर से अधिक के एकल दैनिक हस्तांतरण की निगरानी और सख्त KYC नियम लागू किए जाएंगे, जिससे प्रक्रिया और जटिल हो सकती है.

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भारत की इकोनॉमी पर प्रभाव
भारत दुनिया का सबसे बड़ा रेमिटेंस हासिल करने वाला देश है, और अमेरिका से आने वाला 33 अरब डॉलर परिवारों की आय, छोटे व्यवसायों और राष्ट्रीय भंडार के लिए महत्वपूर्ण है. 


परिवारों को मिलने वाली राशि में कमी आ सकती है, जिससे उनकी दैनिक जरूरतें, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और किराए का भुगतान प्रभावित हो सकता है. रियल एस्टेट और शेयर बाजार जैसे क्षेत्र, जो NRI निवेश पर निर्भर हैं, वहां भी असर हो सकता है. भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, रेमिटेंस में कमी से विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ सकता है, जिससे मुद्रा अवमूल्यन की संभावना बढ़ सकती है. 

एनआरआई के लिए सुझाव
विशेषज्ञों का सुझाव है कि NRI इस टैक्स के प्रभाव को कम करने के लिए निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं, बड़े और कम बार हस्तांतरण: छोटे-छोटे हस्तांतरण के बजाय, बड़ी राशि को कम बार भेजकर टैक्स का बोझ कम किया जा सकता है. ये विकल्प टैक्स के प्रभाव को कम कर सकते हैं, लेकिन यह कानून की संरचना पर निर्भर करेगा. 

डीटीएए पर संभावित प्रभाव
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह टैक्स भारत-अमेरिका डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस एग्रीमेंट (डीटीएए) के गैर-भेदभाव खंड का उल्लंघन कर सकता है. हालांकि, अन्य का कहना है कि DTAA केवल आयकर को कवर करता है, न कि उत्पाद शुल्क या लेनदेन कर को. इस मुद्दे पर नीति निर्माताओं के बीच बहस जारी है, और इसका अंतिम प्रभाव कानून के अंतिम स्वरूप पर निर्भर करेगा.

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प्रस्तावित 3.5% रेमिटेंस टैक्स एनआरआई के लिए वित्तीय नियोजन को और जटिल बना सकता है. यह न केवल परिवारों को भेजे जाने वाले फंड को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत में निवेश, जैसे कि रियल एस्टेट और शेयर बाजार, पर भी असर डालेगा. 

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