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चेक बाउंस मामलों काे निपटाने में देरी, SC ने हाईकोर्ट्स से जताई नाराजगी

मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्ट‍िस ने इस मामले में चार हफ्ते के भीतर सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारों से जवाब देने को कहा है. अब इस मामले में चार हफ्ते के बाद सुनवाई होगी.

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सुप्रीम कोर्ट ने लगायी फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने लगायी फटकार
स्टोरी हाइलाइट्स
  • चेक बाउंस मामलों को निपटाने में होती है देरी
  • इस पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया है संज्ञान
  • मांगा है चार हफ्ते के भीतर जवाब

चेक बाउंस के मामले निपटाने में देरी करने पर सुप्रीम कोर्ट ने देश के हाईकोर्ट्स से नाराजगी जताई है. मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्ट‍िस ने इस मामले में 4 हफ्ते के भीतर सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारों से जवाब देने को कहा है. 

चार हफ्ते में जवाब दें 

चीफ जस्ट‍िस (CJI) शरद अरविंद बोबडे ने कहा, ' विभि‍न्न राज्यों में न्यायिक प्रशासन के महत्व को देखते हुए सभी हाईकोर्ट अपने रजिस्ट्रार और सभी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश अपने डीजीपी के जरिये चार हफ्ते के भीतर जवाब दें .' अब इस मामले में चार हफ्ते के बाद सुनवाई होगी.

सीजेआई ने कहा कि अगर हाईकोर्ट और राज्य सरकारें जवाब नहीं जमा करतीं तो हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और राज्यों के डीजीपी खुद जरूरी कागजात के साथ यह बताने के लिए मौजूद रहें कि उनकी सरकार ने क्या कदम उठाए हैं. 


सीजेआई ने कहा कि कई हाईकोर्ट ने लेटर के द्वारा जवाब दिया है, जबकि उन्हें उपयुक्त हलफनामा दायर करने को कहा गया था. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि चेक बाउंस मामले में नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (NALSA) ने मुकदमा पूर्व मध्यस्थता का सुझाव दिया है.

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उ‍न्होंने कहा कि निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट एक्ट में डिसऑनर्ड बाउंस चेक के लिए कोई कदम नहीं है. इसलिए मुकदमा पूर्व मध्यस्थता पर विचार करने की सलाह नहीं दी जा सकती. हालांकि, यह संभव है कि संज्ञान होने के बाद इसे किसी क्रिमिनल कोर्ट के द्वारा देखा जाए. 

चीफ जस्ट‍िस ने कहा कि NALSA चाहे तो अपने सुझावों में बदलाव कर नए सिरे से सिफारिशें भेज सकता है. चेक बाउंस होने का मामला 

क्या होता है चेक बाउंस 

अगर आपको किसी ने चेक दिया है और आप उसको कैश कराने के लिए बैंक में जमा करते हैं तो यह जरूरी है कि चेक जारी करने वाले के खाते में कम से कम उतने पैसे हों. अगर उसके खाते में उतने पैसे नहीं होते हैं तो बैंक चेक को dishonour कर देता है. इसी को चेक बाउंस कहा जाता है. जब चेक बाउंस होता है, तो बैंक की ओर से एक स्लिप भी दी जाती है. इस स्लिप में चेक बाउंस होने का कारण लिखा होता है.

अगर चेक जारी करने वाला पैसा देने से इनकार कर देता है या लीगल नोटिस का जवाब नहीं देता है, तो आप निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत सिविल कोर्ट में केस फाइल कर सकते हैं.  

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चेक बाउंस के मामले में आप भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 420 के तहत क्रिमिनल केस भी कर सकते हैं. इसके लिए यह साबित करना होता है कि चेक जारी करने वाले का इरादा बेईमानी करने का था. इसके लिए आरोपी को 7 साल की जेल और जुर्माना दोनों हो सकता है. 

पिछले साल दायर हुई थी रिट याचिका 

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल मार्च में चेक बाउंस मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए एक मैकेनिज्म विकसित करने के लिए स्वत: संज्ञान लेते हुए एक रिट याचिका दर्ज की थी. 

 

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