रिटेल निवेशक चाहता है कि उसके पोर्टफोलियो में भी एक MRF का शेयर हो, पिछले दो दशक में MRF के शेयर ने निवेशकों को मोटा पैसा बनाकर दिया है. लेकिन पिछले एक साल से MRF का स्टॉक ठंडा पड़ा है.
दरअसल, मंगलवार को MRF के शेयर ने नया 52 वीक लो बना दिया, ये शेयर लगातार गिर रहा है. शेयर मंगलवार को लुढ़ककर 1,12,400 रुपये तक पहुंच गया, जो कि इसका एक साल का न्यूनतम स्तर है. जबकि शेयर का 52 वीक हाई 1,51,445 रुपये है. पिछले एक साल में शेयर की चाल को देखें तो शेयर ने करीब 20 फीसदी निगेटिव रिटर्न दिया है. महज एक महीने में शेयर करीब 14 फीसदी तक टूट चुका है. शेयर अपने हाई के करीब 40000 रुपये नीचे लुढ़क चुका है.
इस गिरावट का अहम कारण से ऑटोमोबाइल्स सेक्टर दबाव में है और साथ ही भारतीय शेयर बाजार में पिछले करीब 4 महीने से गिरावट का दौर चल रहा है, जिससे लगातार टूट रहा है. इस गिरावट की वजह से MRF का मार्केट कैप घटकर 48 हजार करोड़ रह गया है. हालांकि कंपनी ने पिछले 5 साल में करीब 60 फीसदी का रिटर्न दिया है.
MRF कंपनी की कहानी बेहद ही दिलचस्प है, आइए जानते हैं कैसे गुब्बारे बनाते-बनाते ये टायर मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस में आई और कैसे इसके शेयर ने देश के सबसे हैवीवेट शेयर का तमगा हासिल किया. MRF Ltd Share के शेयर जनवरी 2024 में पहली बार 1.50 लाख रुपये के पार निकल गया था, जो कि शेयर का ऑलटाइम हाई भी है. ़
देश का सबसे महंगा शेयर कौन?
एक समय MRF का शेयर देश का सबसे महंगा शेयर हुआ करता था. लेकिन फिलहाल शेयर के भाव में भारी गिरावट की वजह से शेयर दूसरे पायदान पर पहुंच गया है, शेयर भाव गिरकर 112400 रुपये तक पहुंच गया है. जबकि फिलहाल Elcid Investment का शेयर पहले पायदान पर है. जो कि देश का सबसे महंगा शेयर है. फिलहाल elcid investment का शेयर 1,37,010 रुपये का है.
गुब्बारे बनाने से हुआ था बिजनेस शुरू
टायर की दुनिया का बादशाह बनने से पहले इस कंपनी के फाउंडर के.एम. मामेन मपिल्लई (K. M. Mammen Mappillai) गुब्बारे बनाते थे. जी हां, मपिल्लई ने साल 1946 में कारोबारी दुनिया में कदम रखा. उन्होंने तिरुवोट्टियूर, मद्रास में एक छोटे से शेड में गुब्बारे बनाने का कारोबार शुरू किया. वे ज्यादातर बच्चों के खिलौने के साथ ही इंडस्ट्रियल ग्लव्स और लैटेक्स से बनी हुई चीजों का निर्माण करते थे. समय के साथ उन्होंने अपने कारोबार का विस्तार करने का मन बनाया और इस पर आगे बढ़ते हुए साल 1952 में मद्रास रबर फैक्ट्री (MRF) की स्थापना की. ट्रेड रबर बनाने का उनका कारोबर की दुनिया में प्रवेश करने के महज 4 वर्षों के भीतर ही कंपनी तेजी से आगे बढ़ी और साल 1956 तक MRF 50% शेयर के साथ भारत में ट्रेड रबर का मार्केट लीडर बन गया.
समय के साथ बदलता गया कारोबार
5 नवंबर 1961 को MRF को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का दर्जा मिला. उस वक्त तक कंपनी मैन्सफील्ड टायर एंड रबर कंपनी के सहयोग से ऑटोमोबाइल, विमान, साइकिल के लिए टायर और ट्यूब बनाती थी. 1965 में कंपनी ने अपने पहले फॉरेन वेंचर के जरिए अमेरिका (US) में टायरों का निर्यात शुरू कर दिया. 80 के दशक में भारतीय ऑटो सेक्टर में बड़ा बदलाव आया, किफायती कारों ने दस्तक दी, जिसका उदाहरण मारुति 800 (Maruti 800) है. वहीं टू-व्हीलर इंडस्ट्री ने भी रफ्तार पकड़ ली थी, 1985 में कंपनी ने टू-व्हीलर्स के लिए टायर बनाने शुरू कर दिए. 1993 तक MRF का कारोबार स्थापित हो चुका था और अब ये कंपनी ट्रक, कार, बाइक-स्कूटर बाजार तक में अव्वल बन गई थी.
दो दशक में ऐसी रही शेयर की चाल
अब बात कर लेते हैं इस शेयर की परफॉर्मेंस के बारे में, तो बता दें कि तो दो दशक पहले 6 अगस्त 2004 को MRF Share की कीमत 1548 रुपये थी. धीरे-धीरे बढ़ता हुआ ये स्टॉक साल 2010 तक आते-आते 5,000 का लेवल पार कर गया था. फिर 2012 में इसका भाव 10,000 रुपये के पार निकला और 2015 तक 7 अगस्त 2015 तक ये तूफानी तेजी पकड़ते हुए 44,922 रुपये पर पहुंच गया था. इसके बाद तो इस शेयर ने रिकॉर्ड तेजी के नए कीर्तिमान स्थापित किए.
(नोट- शेयर बाजार में किसी भी निवेश से पहले अपने मार्केट एक्सपर्ट्स की सलाह जरूर लें.)