रूस और यूक्रेन के बीच जंग (Russia Ukraine War) का असर भारत पर भी पड़ने लगा है. सरकार को इस जंग की वजह से विनिवेश के मोर्चे पर चालू वित्त वर्ष में झटका लगने वाला है. दरअसल पिछले महीने बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने ऐलान किया था कि मार्च में LIC का आईपीओ लॉन्च किया जाएगा, और सरकार संशोधित विनिवेश के टारगेट तक पहुंच जाएगी.
बजट (Budget 2022) में मोदी सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में विनिवेश से होने वाली आय के अनुमान में भारी कटौती करते हुए इसे 1.75 लाख करोड़ रुपये से घटाकर 78,000 करोड़ रुपये कर दिया. सरकार का प्लान था कि LIC के IPO से ये आंकड़ा आसानी से हासिल हो जाएगा. लेकिन अब रूस-यूक्रेन युद्ध से विनिवेश का खेल बिगड़ गया है.
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर
रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से शेयर बाजार में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. निफ्टी अपने ऑल टाइम हाई से 2200 अंकों से ज्यादा टूट चुका है. इसलिए गिरते बाजार में सरकार LIC के IPO को लॉन्च करने की स्थिति में नहीं है. IPO को ठंडा रिस्पॉन्स मिल सकता है. क्योंकि निवेशक सहमे हुए हैं. इसी डर की वजह से सरकार लगभग तैयारी कर चुकी है कि अब अगले वित्त वर्ष में LIC के IPO को लॉन्च किया जाएगा.
ऐसे में अब संसोधित 78,000 करोड़ रुपये के विविनेश लक्ष्य भी चालू वित्त-वर्ष में हासिल होना मुश्किल है. अभी तक केवल सरकार 12,030 करोड़ रुपये का ही विनिवेश राजस्व जुटा पाई है.
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अब अगले वित्त वर्ष में LIC IPO संभव
हालांकि सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 65,000 करोड़ का विनिवेश लक्ष्य तय किया है. अगर LIC आईपीओ अगले वित्त वर्ष में लॉन्च होता है तो फिर सरकार अगले साल पूर्व निर्धारित विनिवेश के लक्ष्य से आगे निकल जाएगी.
सरकार की मानें तो इससे पहले दो वित्त वर्ष में कोरोना संकट की वजह से विनिवेशका लक्ष्य हासिल नहीं हो पाए. जबकि अबकी बार रूस और यूक्रेन में जंग की वजह से रोड़ा अटक रहा है. इससे पहले भी सरकार कई बार अपने विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने से चूकी है.
वित्त वर्ष 2020-21 में
मोदी सरकार ने वर्ष 2020-21 में विनिवेश से 2.10 लाख करोड़ रुपये का राजस्व जुटाने का लक्ष्य रखा था. लेकिन सरकार सिर्फ 37,897 करोड़ रुपये ही जुटा पाई थी.
वित्त वर्ष 2019-20 में
सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में पहले विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने का ऐलान किया था. उसके बाद संशोधित कर टागरेट 65,000 करोड़ रुपये का रखा गया था. लेकिन वर्ष 2019-20 में विनिवेश प्राप्ति 50,298 करोड़ रुपये रही थी.
वित्त वर्ष 2018-19 में
वित्त वर्ष 2018-19 के लिए सरकार ने 80,000 करोड़ रुपये विनिवेश के जरिए हासिल करने का लक्ष्य रखा था, जबकि सरकार इस लक्ष्य से आगे निकलकर 85,000 करोड़ रुपये हासिल करने में सफल रही.
वित्त वर्ष 2017-18 में
वित्त वर्ष 2017-18 में सरकार ने विनिवेश से 1 लाख करोड़ रुपये हासिल करने का लक्ष्य रखा था, जबकि सरकार 1 लाख 56 करोड़ रुपये हासिल कर पाने में कामयाब रही थी. यानी लक्ष्य से थोड़ा ज्यादा रकम जुटाई थी.
वित्त वर्ष 2016-17 में
वित्त-वर्ष 2016-17 में मोदी सरकार ने विनिवेश के जरिये 56,500 करोड़ रुपये का जुटाने लक्ष्य रखा था, लेकिन 46,247 करोड़ रुपये ही हासिल कर सकी थी.
वित्त वर्ष 2015-16 में
साल 2015-16 में सरकार ने विनिवेश से 69,500 करोड़ रुपये हासिल करने का लक्ष्य बजट में रखा था. सरकार महज 23,997 करोड़ रुपये ही हासिल कर सकी थी.
वित्त वर्ष 2014-15 में
वित्त वर्ष 2014-15 के लिए सरकार ने 43,425 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य रखा था. सरकार इस मद से 24,349 करोड़ रुपये ही जुटा पाई थी.
वित्त वर्ष 2013-14 में
वित्त वर्ष 2013-14 में विनिवेश के जरिये करीब 40,000 करोड़ रुपये जुटाने का प्लान था, लेकिन 15,819 करोड़ रुपये ही जुटा पाई.
वित्त वर्ष 2012-13 में
मनमोहन सरकार वित्त वर्ष 2012-13 में विनिवेश से 30,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था, जबकि 23,957 रुपये मिला था.
वित्त वर्ष 2011-12 में
2011-12 में सरकार ने विनिवेश से 40,000 करोड़ रुपये का टारगेट रखा था, लेकिन वह 13,894 करोड़ रुपये ही हासिल कर पाई.
पहले भी टागरेट तक नहीं पहुंच पाई थी सरकार
मोदी सरकार से पहले की सरकारें भी इस मोर्चे पर लगातार विफल रही हैं. 2001 से 2004 के बीच सबसे बड़ी संख्या में विनिवेश हुए. इस दौरान सरकार ने 38,500 करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य रखा था. लेकिन सरकार 21,163 करोड़ रुपये ही हासिल करने में सफल रही थी.
1991-92 से लेकर 2000-01 तक के लिए सरकार ने 54,300 करोड़ रुपये विनिवेश के जरिए जुटाने का लक्ष्य रखा था, इसके उलट सरकार इससे आधी से भी कम यानी 20,078.62 करोड़ रुपये ही जुटा सकी थी.