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Home Loan Disadvantages: होम लोन लेकर घर खरीदना घाटे का सौदा, किराये पर रहकर बन जाएंगे राजा!

शहरों में लोग बड़े पैमाने पर होम लोन लेकर घर खरीद रहे हैं. अपना घर होना हर किसी का सपना होता है, लेकिन ये इकोनॉमिकल कितना होता है. इसके समझ लीजिए. होम लोन पर घर खरीदने के बाद आप एक कर्ज से बंध जाते हैं. लेकिन किराये घर में रहने पर आपको EMI जैसी चीजों का सामना नहीं करना पड़ता.

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क्या फायदे का सौदा है किराये पर रहना?
क्या फायदे का सौदा है किराये पर रहना?

अपना घर खरीदना सभी का सपना होता है. इन दिनों बड़ी संख्या में लोग होम लोन (Home Loan) लेकर घर खरीद रहे हैं. लेकिन अगर कोई आपसे ये कहे कि अपना घर खरीदने से बेहतर किराये (Rent) पर रहना है, तो आपको हैरानी होगी. लेकिस सच यही और इसका कैलकुलेशन भी कोई अधिक पेचीदा नहीं है. किसी भी प्रॉपर्टी (Property) की कीमत उसके लोकेशन (Location) पर निर्भर करती है. जैसे कि जहां आप घर खरीद रहे हैं या बनवा रहे हैं, वहां ट्रांसपोर्टेशन (Transportation) की सुविधा, मेडिकल फैसिलीटीज (Medical) और तमाम तरह के फैक्टर प्रॉपर्टी की कॉस्ट (Property Cost) पर असर डालते हैं.

इस तरह समझते हैं

मान लीजिए कि एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले विवेक दिल्ली-एनसीआर में 2BHK फ्लैट खरीदने का प्लान कर रहे हैं. उन्हें शहर में बन रही नई रेसिडेंशियल सोसायटी (Residential Society) में एक फ्लैट पसंद आया है, जिसकी कीमत 35 लाख रुपये है. अब अगर विवेक घर खरीदने जाते हैं, तो डाउनपेमेंट के रूप में 5-6 लाख रुपये पेड करने होंगे.

इसके अलावा Stamp Duty, Registration Charges और ब्रोकरेज आदि के लिए भी पैसे की जरूरत पड़ेगी. कुल मिलाकर शुरुआत में विवेक को 10 लाख रुपये खर्च करने पड़ेंगे. क्योंकि 35 लाख का घर बाकी खर्च मिलाकर 38-40 लाख रुपये का पड़ेगा. 10 लाख रुपये खर्च करने के बाद बाकी बचे 30 लाख रुपये के लिए विवके को बैंक से फाइनेंस (Bank Finance) मिल जाएगा.

लोन और EMI

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बैंक में विवेक के क्रेडिट स्कोर (Credit Score) समेत कुछ अन्य पैमानों पर खरे उतरते हैं, तो उन्हें 8 फीसदी की दर पर होम लोन मिल जाएगा. अब 8 फीसदी के इंटरेस्ट रेट पर 20 साल के लिए 30 लाख रुपये के होम लोन की EMI करीब 25 हजार रुपये बनेगी. इस तरह विवेक को 10 लाख रुपये खर्च करने के बाद हर महीने 25 हजार रुपये की EMI भरनी होगी. 

Loan

किराये पर रहने का फॉर्मूला

अब किराये पर रहने के फॉर्मूले का भी आंकलन कर लेते हैं. अगर विवेक 10 हजार रुपये पर फ्लैट किराये (Flat On Rent) पर लेते हैं, तो हर महीने 15 हजार रुपये की बचत होगी. क्योंकि फ्लैट खरीदने पर उन्हें 25 हजार रुपये हर महीने EMI के रूप में भरते. अब अगर इस 15 हजार रुपये को अच्छी स्ट्रेटजी बनाकर इन्वेस्ट किया जाए तो करोड़ों का फंड तैयार किया जा सकता है. बेहतर रिटर्न के लिए आज के समय में वैसे भी कई शानदार इंस्ट्रुमेंट मौजूद हैं.  

शुरू कर सकते हैं SIP

कहा जाता है कि कम मेहनत पर ज्यादा रिटर्न (Return) देने के मामले में एसआईपी (SIP) शानदार विकल्प है. SIP के लिए 10-12 फीसदी का रिटर्न आम है. अब अगर विवेक 12 फीसदी रिटर्न वाली SIP में 20 साल के लिए हर महीने 15 हजार रुपये निवेश करते हैं, तो आप बैंक को ब्याज देने की बजाय 36 लाख रुपये निवेश करते हैं. 20 साल बाद यह आपके लिए ये 1.50 करोड़ रुपये का फंड तैयार कर देगा. अगर विवेक ने 15 फीसदी रिटर्न वाले SIP में पैसा लगा दिया, तो 20 साल बाद विवेक के पास करीब 2.28 करोड़ रुपये का फंड तैयार हो जाएगा.  

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10 लाख नकद वाले का गणित

ये तो रहा EMI का हिसाब-किताब. अब जो विवेक एकमुश्त 10 लाख रुपये खर्च करने वाले थे, उसका भी गणित समझ लेते हैं. अगर इस 10 लाख रुपये को लम्पसम्प स्कीम में इन्वेस्ट किया गया तो 20 साल बाद आपके पास इससे भी करोड़ों की रकम तैयार हो जाएगी. अगर इस निवेश को 20 साल में 12 फीसदी के हिसाब से देखें, तो 97 लाख रुपये और 15 फीसदी के हिसाब से 1.64 करोड़ रुपये हो जाएगा. 

दूसरी ओर अगर आप घर खरीदते हैं तो आपको कर्ज से फ्री होने में 20 साल लगेंगे. भारत में रियल एस्टेट सालाना 5-6 फीसदी की रेट से ग्रोथ करता है. इस आधार पर कैलकुलेट करें, तो विवेक को जो घर 40 लाख रुपये में मिल रहा है. वह 20 साल बाद 1.12 करोड़ रुपये में मिल जाएगा. इसके अलावा प्लैट के पुराना होने के साथ इसकी वैल्यू भी कम होगी.

घर खरीदना इमोशनल पर इकोनॉमिकल नहीं

अब अगर आप किराये के घर में ही रहते हैं और घर खरीदने के पैसे को निवेश करते हैं, तो 20 साल बाद आपके पास करीब 4 करोड़ रुपये का फंड जमा हो सकता है. यह 15 फीसदी रिटर्न के हिसाब से है. अगर आपको 12 फीसदी भी रिटर्न मिलता है, तो 20 साल बाद आपके पास करीब 2.5 करोड़ रुपये का मोटा फंड होगा. इस तरह किराये के घर में रहते हुए होशियारी से इन्वेस्ट करना नया घर खरीदने की तुलना में कई गुना फायदेमंद हो सकता है. तो इस तरह अपना घर खरीदना इमोशनल फैसला हो सकता है, इकोनॉमिकल नहीं. 

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