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Active Fund और Passive Fund क्या है... आपको भी नहीं पता? जानिए आपको किस म्यूचुअल फंड में लगाना चाहिए पैसे?

म्यूचुअल फंड में पैसे लगाने वाले अधिकतर लोगों को एक्टिव और पैसिव फंड के बारे में जानकारी नहीं होती है. चाहे उनका पोर्टफोलियो लाखों का हो, या फिर करोड़ों का. आइए इस बारे में विस्तार जानते हैं...

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Active Mutual Fund vs Passive Mutual Fund
Active Mutual Fund vs Passive Mutual Fund

दफ्तर में एक सहयोगी से चर्चा हो रही थी, म्यूचुअल फंड की बात आते ही, कहने लगे हम भी म्यूचुअल फंड में पैसे लगाते हैं. कई साल से लगा रहे हैं, फैमिली में सबके नाम से अलग-अलग SIP करते हैं. वैसे में आज की तारीख में म्यूचुअल फंड में पैसा लगाना बेहद आसान भी है, डिमैड अकाउंट खुलवाया और पैसे लगाना शुरू. 
 
आप भी म्यूचुअल फंड में पैसे लगाते हैं? संभव है लगाते होंगे वर्षों से, रिटर्न भी मिल रहा होगा, जिसे देखकर आपको अच्छा भी लगता होगा. लेकिन अगर आपसे केवल ये पूछ लिया जाए किस फंड में लगाते हैं- एक्टिव फंड या पैसिव फंड? शायद आपके पास जवाब नहीं होगा, क्योंकि इस बारे में आपको पता नहीं होगा. कोई बात नहीं... म्यूचुअल फंड में पैसे लगाने वाले अधिकतर लोगों को भी इस बारे में जानकारी नहीं है. चाहे उनका पोर्टफोलियो लाखों का हो, या फिर करोड़ों का.

अब सवाल उठता है कि ये एक्टिव फंड और पैसिव फंड क्या होता है? एक आम निवेशक को इसे क्यों जानना जरूरी है?
 
दरअसल, हाल के वर्षों में म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) तेजी से लोकप्रिय हुए हैं. लोग बेहतर रिटर्न (Better Return) की चाह में म्यूचुअल फंड का रास्ता चुन रहे हैं... मुख्यतौर पर म्यूचुअल फंड निवेश के दो रास्ते हैं- एक्टिव फंड और पैसिव फंड. 

क्या है एक्टिव फंड?

सबसे पहले एक्टिव फंड (Active Fund) की बात करते हैं. जैसा कि नाम है... एक्टिव यानी सक्रिय. एक्टिव फंड को एक्सपर्ट द्वारा मैनेज किया जाता है, यहां एक्सपर्ट का मतलब फंड मैनेजर होता है. निवेश से पहल रणनीति बनाई जाती है. फंड मैनेजर नियमित तौर पर खरीद-बिक्री से जुड़े फैसले लेते हैं.

एक निवेशक की नजरिये से समझें तो एक्टिव फंड को इसलिए पसंद किया जाता है कि उसे इंडस्ट्रीज के एक्सपर्ट्स मैनेज करते हैं. कहां, किस शेयर में निवेश करना है, किस शेयर से बाहर निकलना है.

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एक्टिव फंड की खूबियां

दरअसल, एक्टिव म्यूचुअल फंड्स में इंडेक्स यानी बाजार से बेहतर रिटर्न की उम्मीद की जाती है. क्योंकि फंड मैनेजर द्वारा ऑपरेट किया जाता है. हालांकि फंड मैनेजर निवेशक से इसके चार्ज करते हैं, इसलिए पैसिव फंड की तुलना में एक्टिव फंड का एक्सपेंश रेशियो (लागत) ज्यादा होता है. क्योंकि एक बड़ा एक्सपर्ट का पैनल फंड इसके पीछे काम करता है. 

आसान शब्दों में कहें तो एक्टिव फंड का मकसद बाजार के इंडेक्स से बेहतर प्रदर्शन करना होता है. हालांकि, यह गारंटीड नहीं है. पैसिव फंड्स की तुलना में एक्टिव फंड्स में बेहतर जोखिम प्रबंधन हो सकता है. क्योंकि फंड मैनेजर बाजार के परिवर्तनों को जल्दी समझ सकते हैं. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि वे जोखिम मुक्त होते हैं. इक्विटी म्यूचुअल फंड, डेट म्यूचुअल फंड, हाइब्रिड फंड या फंड ऑफ फंड्स वगैरह एक्टिव मैनेज्ड फंड के दायरे में आते हैं.

क्या है पैसिव फंड?

अब बात पैसिव फंड की करते हैं... पिछले कुछ वर्षों में पैसिव म्यूचुअल फंड (Passive Mutual Fund) में निवेश लगातार बढ़ रहा है. पैसिव फंड भी एक म्यूचुअल फंड में निवेश का माध्यम है, जो बाजार सूचकांक या किसी खास बाजार सेगमेंट को ट्रैक करता है. पैसिव फंड में फंड मैनेजर यह तय नहीं करता कि फंड में कौन-सी कंपनियां होंगी. पैसिव फंड में निवेश करना आसान होता है. पैसिव फंड के निवेशकों को सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले फंड के बारे में शोध करने की जरूरत नहीं होती. 

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पैसिव फंड के नफा-नुकसान

बता दें, एक निवेशक पैसिव फंड में तब पैसा लगाता है जब वो चाहता है कि उसका रिटर्न बाजार के अनुरूप हो. ये फंड कम लागत वाले फंड होता है, क्योंकि स्टॉक का चयन करने और शोध में कोई लागत शामिल नहीं होता है. बाजार में उतरने वाले नए निवेशक खास तौर पर युवा इस तरह के फंड को ज्यादा पसंद करते हैं. इसकी मुख्य वजह पैसिव फंड का अच्छा रिटर्न है. पैसिव फंड एक बेंचमार्क इंडेक्स को ट्रैक करते हैं और उसके परफॉरमेंस की नकल करने की कोशिश करते हैं.

एक्टिव फंड के मुकाबले इसमें उतार-चढ़ाव कम होता है. इंडेक्‍स फंड उन लोगों के लिए बेहतर माना जाता है, जिनके पास मार्केट को अच्‍छे से ट्रैक करने का समय नहीं होता है. एक्टिव फंड के मुकाबले पैसिव फंड में निवेशकों को कम एक्सपेंस रेशियो देना पड़ता है. उदाहरण के तौर पर ये कुछ पैसिव फंड हैं- इंडेक्स फंड, एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF). इसके अलावा गोल्ड, कमोडिटीज, बैंक, हेल्थकेयर समेत कई कैटेगरी के लिए ETF और इंडेक्स फंड उपलब्ध हैं.

अब आपको बताते हैं कि दोनों फंड्स में क्या अंतर है...
एक्टिव फंड्स में फंड मैनेजर फैसला करता है कि पैसा किस-किस सेक्टर के किन-किन शेयरों में लगाया जाए. वहीं, पैसिव फंड्स इंडेक्सों (सूचकांकों), मसलन सेंसेक्स की 30 कंपनियों या निफ्टी की 50 कंपनियों में उनके वेटेज के अनुपात में निवेश करते हैं. ऐसे में पैसिव फंड्स में फंड मैनेजर की भूमिका बहुत सीमित हो जाती है. इसलिए इनकी मैनेजमेंट फीस भी कम होती है. हाल के वर्षों में छोटे शहरों और कस्बों (टियर 2) से पैसिव फंड के निवेशकों की संख्या में ज्यादा बढ़ोतरी हुई है. 

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ऐसे में अगर आपको निवेश के बारे में जानकारी नहीं है या बहुत कम जानकारी है, तो ऐसे में पैसिव फंड जैसे ETF और इंडेक्स फंड के रास्ते म्यूचुअल फंड में निवेश करना आपके लिए सही होगा. पैसिव फंड ऐसे निवेशकों के लिए है, जो कम रिस्क लेना चाहते हैं. साथ ही, पैसा लगाने के लिए कौन-सा फंड चुनें, इस झंझट से बचाता है.

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