बुलेट ट्रेन के बाद मोदी सरकार ने मैग्लेव ट्रेन को चलाने की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं. इसके लिए सरकारी कंपनी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) ने स्विस रैपिड एजी के साथ साझेदारी की है. खुद बीएचईएल ने इसकी जानकारी दी है. मैग्लेव की बात करें तो ये दो शब्दों से मिलकर बना है, मैग्नेटिक लेवीटेशन यानी चुंबकीय शक्ति से ट्रेन को हवा में ऊपर उठाकर चलाना. (Photo: File)
मैग्नेटिक लेवीटेशन के जरिए ट्रेन चलाने के लिए रेल मंत्रालय ने पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए मैग्लेव ट्रेन सिस्टम की योजना बनाई है. मैग्लेव ट्रेन पटरी पर दौड़ने के बजाय हवा में रहती है. ट्रेन को मैग्नेटिक फील्ड की मदद से कंट्रोल किया जाता है. इसलिए उसका पटरी से कोई सीधा संपर्क नहीं होता. इस वजह से इसमें ऊर्जा की बहुत कम खपत होती है और यह आसानी से 500-800 किमी प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकती है. (Photo: File)
सूत्रों के मुताबिक मोदी सरकार बंगलुरु-चेन्नई, हैदराबाद-चेन्नई, दिल्ली-चंडीगढ़ और नागपुर-मुंबई के बीच मैग्लेव ट्रेन चलाने की योजना बना रही है. दुनियाभर में मैग्लेव ट्रेन की तकनीक चुनिंदा देशों के पास ही है. ये देश हैं- जर्मनी, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और यूएसए. चीन में शंघाई शहर से शंघाई एयरपोर्ट के बीच मैग्लेव ट्रेन चलती है और ये ट्रैक महज 38 किलोमीटर का है. (Photo: File)
मैग्लेव तकनीक से ट्रेन चलाने का सपना जर्मनी, यूके और यूएसए जैसे कई देशों ने देखा. लेकिन तकनीकी कुशलता के बावजूद इसकी लागत और बिजली की खपत को देखते हुए ये सफल नहीं रही. दुनियाभर में कॉमर्शियल तरीके से ये सिर्फ और सिर्फ तीन देशों चीन, दक्षिण कोरिया और जापान में ही चल रही है. (Photo: File)
भेल ने कहा कि यह समझौता पीएम मोदी के 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान को ध्यान में रखकर किया गया है. इस समझौते के बाद अब बीएचईएल स्विस रैपिड एजी के साथ मिल कर इस पर काम करेगी. (Photo: File)