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हर तरफ कैश के लिए मारामारी, जानें नोटबंदी करने में ये देश भी हुए थे फेल

यह कोई पहला मौका नहीं है जब किसी देश ने करेंसी सुधार के लिए डिमॉनेटाइजेशन प्रक्रिया शुरू की और कोहराम पूरे देश में मच गया हो. हालांकि, कई विकसित देशों ने जब अपनी करेंसी मार्केट के साथ छेड़छाड़ की, तो उन्हें आसानी से सुधार कार्यक्रम लागू करने में सफलता मिली.

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कालेधन पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार का बड़ा फैसला
कालेधन पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार का बड़ा फैसला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक झटके में देश की कुल करेंसी से लगभग 86 फीसदी नोटों (500 और 1000) को गैरकानूनी करार दिया है. इस फैसले से देशभर में अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है. देश में करोड़ों लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि वह अपने पास मौजूद 500 और 1000 रुपये के नोटों का क्या करे.

यह कोई पहला मौका नहीं है जब किसी देश ने करेंसी सुधार के लिए डिमॉनेटाइजेशन प्रक्रिया शुरू की और कोहराम पूरे देश में मच गया हो. हालांकि, कई विकसित देशों ने जब अपनी करेंसी मार्केट के साथ छेड़छाड़ की, तो उन्हें आसानी से सुधार कार्यक्रम लागू करने में सफलता मिली.

विकसित देशों ने सफलता पाई (इंग्लैंड और यूरोपियन यूनियन हैं अपवाद)

इंग्लैंड
जैसे 1971 में इंग्लैंड ने अपनी करेंसी के साथ बड़ी छेड़छाड़ करते हुए रोमन काल से चले आ रहे सिक्कों को हटाने के लिए पाउंड में दश्मलव पद्दति लागू किया था. बैंकिंग और करेंसी की टर्म में इस प्रक्रिया को डेसिमलाइजेशन कहा जाता है. इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए इंग्लैंड सरकार ने सभी बैंकों को चार दिन का वक्त दिया, जिससे नई करेंसी को पूरे देश में पहुंचाया जा सके. इस दौरान देश के सभी बैंक बंद रहे. माना जाता है कि इंग्लैंड ने सफलता के साथ अपनी अर्थव्यवस्था से पूराने सिक्कों को बाहर कर दिया और किसी बड़े नुकासन का सामना नहीं करना पड़ा.

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यूरोपियन यूनियन
इसके बाद यूरोप में करेंसी के साथ बड़ी छेड़छाड़ का दूसरा मौका जनवरी 2002 में आया, जब यूरोपियन यूनियन के 11 देशों ने नई यूरो करेंसी लागू की (बाद में 12वें देश ग्रीस ने लागू किया). हालांकि, यूरो का जन्म 1999 में हो चुका था और ये सभी देश तीन साल तक इस नई करेंसी को लीगल टेंडर घोषित करने के लिए तैयारी कर रहे थे. यह एक सोची-समझी रणनीति और लंबी तैयारी का नतीजा था कि यूरोप के इन 12 देशों में नई करेंसी को सफलता के साथ लॉन्च कर दिया गया.

इन्हें बस विफलता ही हाथ लगी

सोवियत यूनियन
अपने आखिरी दिनों में सोवियत यूनियन के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाचोव ने जनवरी 1991 में डिमॉनेटाइजेशन की प्रक्रिया शुरू की. गोर्वाचोव का मकसद भी अर्थव्यवस्था से ब्लैकमनी बन चुके रूबल को बाहर करना था. लिहाजा वहां 50 और 100 रूबल की करेंसी को प्रतिबंधित कर दिया गया. यह करेंसी उनकी अर्थव्यवस्था का एक-तिहाई हिस्सा था. इस करेंसी सुधार कार्यक्रम से सोवियत यूनियन में मंहगाई पर लगाम नहीं लगाया जा सका. वहीं, उदारीकरण और राजनीतिक और आर्थिक सुधार (प्रेस्ट्रॉइका और ग्लैसनॉस्ट) से पॉपुलर हुई गोर्वाचोव सरकार तेजी से अनपॉपुलर हुई और देखते ही देखते अगस्त आते-आते सोवियत यूनियन विघटन का शिकार हो गई.

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उत्तर कोरिया
2010 में उत्तर कोरिया ने एक बड़ा डिमॉनेटाइजेशन कार्यक्रम चलाया. तत्कालीन तानाशाह किम जॉन्ग द्वितीय ने एक झटके में काला बाजारी और लगाम लगाने और अर्थव्यवस्था को काबू करने के लिए देश की सभी करेंसी की वैल्यू से दो शून्य हटा दिए थे. यानी 1000 रुपये महज 10 रुपये रह गए और 5000 की नोट महज 50 रुपये की कीमत पर पहुंच गए. इस फैसले के साथ-साथ उत्तर कोरिया के सामने फसल खराब की दूसरी बड़ी चुनौती सामने थी. देश में गंभीर खाद्य संकट पैदा हो गया. चावल की कीमत आसमान छूने लगी. नतीजा यह हुआ कि तानाशाह को गलती के लिए माफी मांगनी पड़ी और यह माफी तानाशाह ने सरकार के वित्त मंत्री को मौत की सजा के साथ मांगी.

म्यांमार (बर्मा)
देश की मिलिट्री शासन ने 1987 में एक झटके में फैसला लेते हुए देश की कुल करेंसी से लगभग 80 फीसदी करेंसी को गैरकानूनी घोषित कर दिया. म्यांमार में जनता शासक ने भी प्रधानमंत्री मोदी की तरह यह कदम ब्लैकमनी और ब्लैकमार्केटिंग को लगाम लगाने के लिए उठाया था. इस फैसला का नतीजा यह रहा कि मिलिट्री शासन में पहली बार छात्रों ने जनता शासक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. यह विरोध प्रदर्शन एक साल तक चलता रहा और फिर सरकार ने बड़ी बर्बरता के साथ इसका दमन कर दिया. अंतिम नतीजा यह रहा कि प्रदर्शन कर रहे हजारों नागरिक सेना की गोलियों के शिकार बने.

हालांकि, इसका पहलू ये भी है कि जिन देशों में नोटबंदी लागू हुई थी पूरी तरह लेकिन भारत में केवल 1000 और 500 के नोट बंद किए गए हैं. 100, 50, 20 और 10 के नोट अब भी चल रहे हैं.

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