भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर रघुराम राजन पहली बार मौद्रिक नीति की समीक्षा करने जा रहे हैं. देशवासी महंगाई और महंगे ब्याज दर में राहत की उम्मीद कर रहे हैं. इस ओर लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं.
रघुराम राजन नीतिगत समीक्षा ऐसे समय में करने जा रहे हैं, जबकि एक तरफ तो नीतिगत दरों में कटौती तथा दूसरी ओर मुद्रास्फीति पर काबू पाने के कदमों की जरूरत जताई जा रही है.
थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति अगस्त महीने में बढ़कर 6 महीने के उच्च स्तर 6.1 प्रतिशत पर पहुंच गई.
राजन के लिए राहत की बात यह है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी नकदी प्रोत्साहन नीति में कोई बदलाव नहीं किया है. फेडरल रिजर्व ने बीते दिन बाजारों को यह कह कर चोंका दिया कि वह अपना 85 अरब डॉलर मासिक बांड खरीद प्रोग्राम जारी रखेगा और वृद्धि में सुधार के और सबूतों का इंतजार करेगा.
फेडरल रिजर्व के प्रोत्साहन प्रोग्राम को धीरे-धीरे खत्म करने की आशंका के कारण पिछले दिनों भारतीय अर्थव्यवस्था, खासकर बांड बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों का पूंजी प्रवाह कम हो गया था, जिससे रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले काफी गिर गया.
जानकारों का मानना है कि फेडरल रिजर्व के इस कदम से राजन के पास गिरती आर्थिक वृद्धि दर को काबू में लाने के कदम उठाने की गुंजाइश बची है.
बैंकर तथा उद्योग जगत का केंद्रीय बैंक द्वारा 2013-14 की मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा में नीतिगत दरों में कमी तथा नकदी को आसान बनाने पर जोर है.
भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन प्रतीप चौधरी ने कहा, हमने नकदी बढा़ने तथा इसे कम खर्चीला बनाने के लिए सिफारिश की हैं. देखना है कि राजन अर्थव्यवस्था में कितना जान डाल पाते हैं.