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निवेश मतलब ‘आर्थिक आजादी’ और टेंशन मुक्त रिटायरमेंट की जिंदगी

हरेक निवेशक को अपना पोर्टफोलियो बनाना चाहिए, यह बहुत ही समझदारी का काम है. लेकिन यह उन लोगों के लिए बहुत मुश्किल होता है जिनकी आमदनी इतनी नहीं है कि वह घर खरीद लें और टैक्स से बचने के लिए होम लोन दिखा दें.

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निवेश मतलब ‘आर्थिक आजादी’
निवेश मतलब ‘आर्थिक आजादी’

हरेक निवेशक को अपना पोर्टफोलियो बनाना चाहिए, यह बहुत ही समझदारी का काम है. लेकिन यह उन लोगों के लिए बहुत मुश्किल होता है जिनकी आमदनी इतनी नहीं है कि वह घर खरीद लें और टैक्स से बचने के लिए होम लोन दिखा दें, ना इतनी है कि कार-स्कूटर लेकर कार लोन दिखा दें. साथ ही भविष्य की चिंता भी उन्हें हमेशा लगी रहती है. ऐसे लोगों के लिए कुछ सुविधाजनक पोर्टफोलियो हम यहां बताने जा रहे हैं. इन्हें हम छोटी बचत योजना कह सकते हैं.

जरा इधर भी सोचें, आप मिड ऐज में हों तो कर्ज ले सकते हैं, लेकिन अगर आपकी उम्र साठ के बाद की हो तो कहीं से भी आपको कर्ज नहीं मिलेगा. इसलिए जो कुछ भी निवेश करें उसे इस हिसाब से करें कि रिटायरमेंट के बाद आपके पास बाकी की जिंदगी के लिए जमा पूंजी हो. इसके अलावा रिटायरमेंट की उम्र के बाद शरीर कमजोर हो जाता है मेहनत करने लायक नहीं रहता, जिससे कमाई का जरिया खत्म सा हो जाता है. और तो और शरीर बीमारियों का घर भी बनने लगता है जिससे खर्चे कम होने के बजाय बढ़ते चले जाते हैं. इसलिए इन बातों को ध्यान में रखकर कोई छोटी शुरूआत करें और अभी से रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी की खुशहाली के लिए बचाएं.

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पीपीएफ (PPF) एक जरिया
पीपीएफ में पैसा जमा करना शुरूआती निवेशक के लिए अच्छा है जहां वह कुछ पैसा अपने भविष्य के लिए जमा कर पाता है. यह अलग बात है कि समय-समय पर इस पर मिलने वाले ब्याज की दर में कमी होती गई हैं. फिलहाल PPF पर 8.1 फीसदी के हिसाब से ब्याज मिल रहा है. PPF में एक साल में केवल 1.5 लाख तक ही पैसा निवेश किया जा सकता है. लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि जब आप PPF में पैसे जमा करें तो शुरुआती महीनों में ही करें. वित्तीय वर्ष 01 अप्रैल से 31 मार्च तक चलता है. इसमें ब्याज साल में एक बार मिलता है जबकि इसकी कैलकुलेशन मासिक बैलेंस पर होती है. यानी हर महीने की 5वीं तारीख के बैलेंस पर ब्याज मिलता है.

दरअसल इस श्रेणी के लोग टैक्स से बचने के लिए जनवरी-फरवरी-मार्च में जाकर PPF में पैसा जमा करते हैं जबकि उस पर उतना ब्याज नहीं मिल पाता जितना अगर इसे साल के शुरूआती महीने यानी अप्रैल-मई-जून में जमा करके पाया जा सकता है. इसमें 15 साल बाद पीपीएफ की मियाद पूरी होने पर रकम मिलती है. हालांकि शर्तों के साथ कुछ पैसा निकाल सकते हैं. 15 साल बाद अगर चाहें तो इस पैसे को किसी खास जगह (फिक्स डिपोजिट) या किसी अन्य जगह निवेश पर लगाएं. रिटायरमेंट तक आपके पास ठीक सा अमाउंट जमा हो जाता है. इस तरह के निवेश में जब तक पैसा जमा कर पाते हैं उसी का आपको ब्याज भी मिलता है. मतलब जीवन में दुर्घटना के समय आपके परिवार के लिए सिवाय उस जमापूंजी के कुछ अतिरिक नहीं रह पाता है. इसलिए लाइफ इंश्योरेंस (जीवन बीमा) भी होना ही चाहिए.

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ईपीएफ EPF
ईपीएफ पर फिलहाल 8.75 फीसदी से आपको ब्याज मिलता है. निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी की कंपनी इस अकाउंट को खोलती है. इसमें कर्मचारी और कंपनी की बराबर की हिस्सेदारी होती है. फिलहाल यह वेतन का 12 फीसदी होता है. दरअसल EPF आपका प्रोविडेंट फंट होता है जबकि EPS (एम्पलॉईज पेंशन स्कीम) आपकी पेंशन होती है. सैलरी का 12 फीसदी EPF में जाता है. कंपनी के कॉन्ट्रीब्यूशन का 8.33 फीसदी (या 1250 रूपये में से जो अधिक हो) EPS में जबकि बाकी EPF में चला जाता है. EPS यानी कि पेंशन के लिए जमा की गई राशि पर आपको कोई ब्याज नहीं मिलता. जबकि प्रोविडेंट फंड वाले हिस्से पर हर साल ब्याज जुड़ता जाता है. जब आप पीएफ विड्रॉ करते हैं तब आपको EPF और EPS दोनों रकम मिल जाती है.

लाइफ इंश्योरेंस-
कुछ लोग LIC या अन्य इंश्योरेंस कंपनी में अपना पैसा निवेश करते हैं. इसमें जोखिम शामिल होता है. हालांकि औसतन एक इंश्योरेंस जीवन भर चलने में घाटे का सौदा लगता है क्योंकि इसमें कुछ जमा पूंजी का 4-6 फीसदी तक ही रिटर्न मिलता है. लेकिन जीवन का जोखिम शामिल होने के कारण समय पूर्व मिलने वाला लाभ लोगों को इसे लेने के लिए आकर्षित करता है. छोटी आमदनी के लोगों के लिए यह एक अच्छा विकल्प होता है, जहां उन्हें उम्मीद होती है कि जब तक जिंदा हैं तब तक कुछ तो जमा कर ही लेंगे जबकि जोखिम के वक्त परिवार को कुछ जमापूंजी हासिल हो जाए.

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लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते समय ऐसा लगता है कि हमारे कुछ निवेश करने से अच्छा धन जमा हो रहा है जबकि ऐसा नहीं है. इस रिटर्न में मुद्रास्फीति यानी महंगाई शामिल नहीं होती है. एक उदाहरण से आपको बताते हैं. 2005-06 में जहां महंगाई दर 8.85 रही जबकि इसी दौरान इंश्योरेंस कंपनियों से महंगाई के बराबर भी रिटर्न नहीं दिया. इस तरह देखें तो यह भी निवेश का कोई बेहतर तरीका नहीं है. अच्छा होगा आपने जो निवेश के लिए रकम तय की हो वह अलग-अलग तरह के निवेश में लगी हो.

मेडिकल इंश्योरेंस-
अभी भी भारत में मेडिकल इंश्योरेंस उस तरह पॉपुलर नहीं हो पाई है जैसी इसकी उम्मीद थी. जबकि इसे अगर निवेश के रूप में देखा जाए तो यह एक अच्छा निवेश है. इसे कुछ इस तरह से समझें. एक नौकरी करने वाला इंसान जिसकी आमदनी टैक्स के दायरे के आसपास हो. अगर जीवन में सबकुछ ठीक चल रहा हो तो ठीक है. अगर एक बीमारी भी उसे या उसके घर के किसी सदस्य को हो जाए तो पूरी सैलरी उसी में निकल जाती है और कभी तो यह खर्चा अपनी हैसियत से भी बाहर निकल जाता है. ऐसे में याद आता है कि मेडिकल इंश्योरेंस तो ले ही लेना चाहिए था.

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पहली बार में ऐसा लगता है कि हम स्वस्थ हैं आखिर किस बात का दंड (प्रीमियम) भर रहे हैं. पर इसका सही अंदाजा तभी पता चल पाता है जब आप या घर के अन्य सदस्य बीमार होते हैं और अपनी जेब से खर्च होने के बजाय किसी दूसरे (इंश्योरेंस कंपनी) की जेब से पैसे जाते हों. निजी सेक्टर में काम करने वालों का भले ही कॉर्पोरेट इंश्योरेंस प्लान चल रहा हो लेकिन नौकरी के जाते ही इंश्योरेंस के फायदे भी शून्य हो जाते हैं. इसलिए छोटा ही सही, एक फ्लोटर प्लान (परिवार के लिए मेडिकल इंश्योरेंस) तो रख ही लेना चाहिए.

घर को किराये पर देना-
हर इंसान को आश्रय के लिए घर चाहिए. यह जीवन की मूलभूत जरूरतों में शामिल है. लेकिन घर को खरीद कर उसे धन अर्जित करने के मकसद से किराये पर देना नफे का सौदा नहीं होता है. दरअसल एक समय बाद घर की कीमत समय के अनुसार नहीं बढ़ती है. उसे पुराना मान लिया जाता है. जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में घिसावट (डेप्रीसिएशन) कहा जाता है. इसे कुछ इस तरह से गुणा-भाग करें. माना एक घर बीस साल पहले कुछ लाखों में खरीदा हो और आज का रेट पता कर लें. उसी समय यह पैसा अलग-अलग तरह के निवेश के क्षेत्र में लगाया गया होता तो किसी में कम और किसी में ज्यादा रिटर्न मिल रहा होता. निवेश विशेषज्ञ घर को इनवेस्टमेंट ना मानकर लाइबिलिटीज मानते हैं.

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जरा इधर भी सोचें, आप मिड ऐज में हों तो कर्ज ले सकते हैं, लेकिन अगर आपकी उम्र साठ के बाद की हो तो कहीं से भी आपको कर्ज नहीं मिलेगा. इसलिए जो कुछ भी निवेश करें उसे इस हिसाब से करें कि रिटायरमेंट के बाद आपके पास बाकी की जिंदगी के लिए जमा पूंजी हो. इसके अलावा रिटायरमेंट की उम्र के बाद शरीर कमजोर हो जाता है मेहनत करने लायक नहीं रहता, जिससे कमाई का जरिया खत्म सा हो जाता है. और तो और शरीर बीमारियों का घर भी बनने लगता है जिससे खर्चे कम होने के बजाय बढ़ते चले जाते हैं. इसलिए इन बातों को ध्यान में रखकर कोई छोटी शुरूआत करें और अभी से रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी की खुशहाली के लिए बचाएं.

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