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विदेशी निवेशकों नहीं लुभा पा रहा UPA का FDI

सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आर्थिक सुधारों का पिटारा खोल दिया है, या फिर सरकार ने अपने धमाकेदार फैसले से एफडीआई के लिए सारे दरवाजे खोल दिए हैं. हर कोई यही सोच रहा है कि क्या एफडीआई सरकार का कोई अचूक अस्त्र है, ऐसा अस्त्र जिसे चला देने के बाद सरकार मंदी और मायूसी के बादलों को छू मंतर कर देगी.

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वालमार्ट
वालमार्ट

सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आर्थिक सुधारों का पिटारा खोल दिया है, या फिर सरकार ने अपने धमाकेदार फैसले से एफडीआई के लिए सारे दरवाजे खोल दिए हैं. हर कोई यही सोच रहा है कि क्या एफडीआई सरकार का कोई अचूक अस्त्र है, ऐसा अस्त्र जिसे चला देने के बाद सरकार मंदी और मायूसी के बादलों को छू मंतर कर देगी.

अब नौकरियों की भरमार होगी, मंहगाई पर लगाम लगेगी, रुपये का लुढकना रुक जाऐगा और विदेशी पूंजी के दम पर देश में खुशहाली बरसेगी. लेकिन सच्चाई क्या सचमुच ऐसी है. सितंबर 2012 में ममता बनर्जी की धमकी की परवाह किए बगैर, सत्ता को दांव पर लगाकर, सरकार ने मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडआई को मंजूरी दे दी थी.

तब सरकार के सिपहसलार ये बताते नहीं थक रहे थे कि कैसे इस क्रांतिकारी फैसले से देश की तकदीर बदल जाएगी. दौलतमंद विदेशी कंपनियां भारत जैसे बड़े बाजार पर कब्जा करने के लिए लाइन लगा कर खड़ी होंगी. विदेशों से पूंजी तो आएगी ही, नई टेक्नालॉजी, इंफ्रास्ट्रक्चर और रोजगार के अवसर भी आएंगे. किसानों को उपज की वाजिब कीमत मिलेगी और बिचौलियों से छुटकारा मिलेगा.

जुलाई, 2013 दस महीने गुजर चुके हैं, न वालमार्ट आया न टेस्को और न ही केरफोर ने कोई खबर ली. जिन कंपनिंयों के स्वागत में सरकार ने सत्ता को दांव पर लगाकर पलक बिछाई थी, वो झांकने तक नहीं आए. पूंजी आना तो दूर, हालत ये है कि फिलहाल मल्टी ब्रांट रिटेल में सरकार के पास कोई प्रस्ताव विचाराधीन भी नहीं है.

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इसी हफ्ते सरकार ने जब एक बार फिर करीब दर्जन भर क्षेत्रों में एफडीआई के लिए नए दरवाजे खोले तो इसे फिर क्रांतिकारी फैसला बताया गया. लेकिन एफडीआई को लेकर सरकार जितनी दवा कर रही है, मर्ज उतना ही बढ़ता जाता है. 2011–12 में भारत में 45.6 बिलियन डॉलर की एफडीआई आई, लेकिन 2012-13 में ये घटकर 36.9 बिलियन डॉलर रह गई.

सिविल ऐविएशन में जेट और एतेहाद की डील को इस क्षेत्र में एफडीआई की बड़ी सफलता बताया गया था, लेकिन अब वो डील विवादों के भंवर में फंस गई हैं. अब तैयारी इस बात की हो रही है कि मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी पूंजी लाने के लिए नियमों में और ढील दी जाए.

वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा था, 'जल्द की सरकार एफडीआई नियमों में बदलाव लाएगी जिससे इनवेस्टर्स के लिए यह और आसान हो जाए.' लेकिन उद्योग जगत से जुड़े लोगों का कहना है कि सिर्फ सरकार के कहने से विदेशी पूंजी नहीं आएगी, इसके लिए माहौल बनाना होगा.

फिक्की की अध्यक्ष नैना लाल किदवई ने कहा, 'नियमों को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए, कंपनियों को इस बात का भरोसा होना चाहिए कि नियम रातों रात नहीं बदलेंगे, कंपनियां यहां कोई एक दो दिन के लिए नहीं आती लंबे समय के लिए पैसा लगाती हैं इसलिए सही माहौल होना जरूरी है.'

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जैसे कई मामलों में ये बात सामने आई है कि कंपनियों के लिए जमीन हासिल करना और राज्य सरकारों से तमाम मंजूरी लेना इतना बड़ा सिरदर्द बन जाता है कि वो भारत में पूंजी लगाने का विचार ही छोड़ देती हैं.

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