अगर आपकी सैलरी 25 लाख रुपये सालाना है, तो देश के कई बड़े शहरों में आप घर नहीं खरीद सकते हैं. भारत का हाउसिंग मार्केट पूरी तरह बिखर रहा है. 1 करोड़ से कम कीमत वाले घरों की बिक्री घट रही है, लग्जरी घरों की बिक्री आसमान छू रही है और मिडिल क्लास शहरों में घर खरीदने की रेस से बाहर हो रहा है. सवाल उठ रहा है कि आखिर देश किसके लिए बन रहा है?
2025 की पहली तिमाही में, 50 लाख से कम कीमत वाले घरों की बिक्री 9% घटी, जबकि 50 लाख से 1 करोड़ वाले घरों की बिक्री में 6% की गिरावट आई. दूसरी ओर 2 करोड़ से 5 करोड़ की रेंज वाले घरों की बिक्री 28% बढ़ी और 50 करोड़ से ऊपर के घरों की बिक्री में 483% का उछाल आया. अब 1 करोड़ से ज्यादा कीमत वाले घर देश के बड़े शहरों में कुल रेजिडेंशियल बिक्री का 46% हिस्सा हैं.
रियल एस्टेट डेवलपर राजदीप चौहान इन आंकड़ों पर जवाब देते हुए लिखते हैं- "जब 25 लाख सालाना कमाने वाला सॉफ्टवेयर इंजीनियर मुंबई, बेंगलुरु या एनसीआर में 2BHK नहीं खरीद सकता, तो हम घर बना रहे हैं या असमानता बढ़ा रहे हैं? उन्होंने मौजूदा ट्रेंड को "बारबेल इकॉनमी" की ओर बढ़ता बताया, जहां डेवलपर्स सिर्फ़ बहुत अमीर या बहुत गरीब लोगों के लिए काम कर रहे हैं, और मिडिल क्लास के पास विकल्प तेज़ी से कम हो रहे हैं.
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आंकड़ों से पता चलता है कि सप्लाई और अफोर्डेबिलिटी में बड़ा बदलाव आ रहा है. 50 लाख से कम कीमत वाले घरों के नए प्रोजेक्ट्स 2025 की पहली छमाही में पूरे देश में 31% कम हुए हैं. बेंगलुरु में ये 2018 के मुकाबले 85% नीचे हैं, मुंबई और कोलकाता में साल-दर-साल 11% और 67% की गिरावट आई है.
इनकम हाउसिंग कीमतों के साथ तालमेल नहीं रख पा रही, और मुंबई में EMI-टू-इनकम रेशियो 48% है, जबकि कई अन्य मेट्रो शहरों में ये 30% से ज़्यादा है, जो आमतौर पर फाइनेंशियल स्ट्रेस का स्तर माना जाता है.