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मेट्रो सिटीज नहीं, अब टियर-2 शहरों में बढ़ेगी प्रॉपर्टी की मांग, हवाई कनेक्टिविटी ने बदला रियल एस्टेट का गेम

अगर आप एक निवेशक हैं, तो 'हवाई संपर्क' वाले शहरों का डेटा आपके लिए सबसे बड़ा मार्गदर्शक हो सकता है. हवाई कनेक्टिविटी की यह 'डबल डिजिट ग्रोथ' केवल विमानों की उड़ान नहीं है, बल्कि यह उन छोटे शहरों की अर्थव्यवस्था और प्रॉपर्टी मार्केट की ऊंची उड़ान का संकेत है.

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टियर 2 सिटीज में मिल रहा है निवेश पर मोटा मुनाफा (Photo-ITG)
टियर 2 सिटीज में मिल रहा है निवेश पर मोटा मुनाफा (Photo-ITG)

भारत का रियल एस्टेट सेक्टर पिछले कुछ सालों में एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है, जहां एक समय में निवेश और रिहाइश के लिए केवल मुंबई, दिल्ली-NCR और बेंगलुरु जैसे महानगरों की चर्चा होती थी, वहीं अब निवेशकों और खरीदारों की नजर टियर-2 शहरों पर टिक गई है. इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण है इन शहरों में 'हवाई कनेक्टिविटी' का विस्तार, जिसने रियल एस्टेट के पूरे खेल को बदलकर रख दिया है.

रियल एस्टेट कंसल्टेंसी फर्म कॉलियर्स (Colliers) और क्रेडाई (CREDAI) की हालिया रिपोर्टों के अनुसार, जिन छोटे शहरों में हवाई यातायात में डबल डिजिट (10% से अधिक) की सालाना वृद्धि दर्ज की गई है, वहां प्रॉपर्टी की कीमतों और मांग में जबरदस्त उछाल देखा गया है. भारत सरकार की उड़ान (UDAN) योजना ने वाराणसी, इंदौर, जयपुर, चंडीगढ़ और कोच्चि जैसे शहरों को देश के मुख्य आर्थिक केंद्रों से जोड़ दिया है.

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बेहतर कनेक्टिविटी का सीधा मतलब है व्यापार में आसानी, पर्यटन में वृद्धि और नए रोजगार के अवसर. जब किसी शहर में पहुंच आसान होती है, तो वहां कमर्शियल और रेजिडेंशियल दोनों ही तरह की संपत्तियों की मांग बढ़ जाती है.

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टियर-2 शहर क्यों बने पहली पसंद?

महानगरों में प्रॉपर्टी की कीमतें अब अपनी उच्चतम सीमा के करीब पहुंच रही हैं. गुरुग्राम, मुंबई और बेंगलुरु में जमीन की कमी और आसमान छूती कीमतों ने खरीदारों को नए विकल्पों की तलाश करने पर मजबूर किया है. टियर-2 शहरों में निवेश की लागत कम है, लेकिन विकास की गति तेज होने के कारण यहां पूंजी की वृद्धि महानगरों की तुलना में अधिक है. वर्क-फ्रॉम-होम और हाइब्रिड वर्किंग कल्चर के बाद, लोग अब भीड़भाड़ और प्रदूषण से दूर उन शहरों में रहना पसंद कर रहे हैं जहां बुनियादी ढांचा आधुनिक हो लेकिन जीवन की रफ्तार थोड़ी शांत हो.

हवाई अड्डों के साथ-साथ एक्सप्रेसवे और मेट्रो नियो जैसे प्रोजेक्ट्स ने इन शहरों की सूरत बदल दी है. रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ खास शहर इस रेस में सबसे आगे हैं- जैसे अयोध्या और वाराणसी धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ हवाई अड्डे के विस्तार ने यहां जमीन की कीमतों को पिछले 2-3 वर्षों में दोगुना से अधिक कर दिया है. वहीं इंदौर और भोपाल स्वच्छता और मध्य भारत के लॉजिस्टिक हब होने के कारण आईटी कंपनियां यहां अपने ऑफिस खोल रही हैं. भुवनेश्वर और विशाखापत्तनम जैसे तटीय शहर होने और औद्योगिक गलियारों से जुड़ने के कारण यहां कमर्शियल रियल एस्टेट की मांग बढ़ी है.

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रियल एस्टेट विशेषज्ञों का मानना है कि हवाई अड्डे के इर्द-गिर्द विकसित होने वाला शहर का कॉन्सेप्ट अब भारत में जड़ें जमा रहा है. नाइट फ्रैंक इंडिया (Knight Frank India) के विश्लेषण के अनुसार, हवाई अड्डों के पास स्थित संपत्तियों का मूल्य अन्य क्षेत्रों की तुलना में 20-30% तेजी से बढ़ता है. टियर-2 शहरों में अब केवल स्थानीय डेवलपर्स ही नहीं, बल्कि DLF, गोदरेज प्रॉपर्टीज और टाटा हाउसिंग जैसे बड़े खिलाड़ी भी अपने प्रोजेक्ट्स लॉन्च कर रहे हैं. यह इस बात का प्रमाण है कि बाजार का विश्वास अब छोटे शहरों की ओर स्थानांतरित हो गया है.

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भविष्य की चुनौतियां और संभावनाएं

हालांकि मांग बढ़ रही है, लेकिन इन शहरों में टिकाऊ विकास सुनिश्चित करना एक चुनौती है. नियोजित शहरीकरण, बेहतर सीवरेज सिस्टम और बिजली की निर्बाध आपूर्ति वे कारक होंगे जो इन शहरों की सफलता को लंबे समय तक बनाए रखेंगे. अनुमान है कि 2026 तक, भारत के कुल रियल एस्टेट निवेश का एक बड़ा हिस्सा टियर-2 और टियर-3 शहरों से आएगा, हवाई कनेक्टिविटी में हो रही वृद्धि इस आग में घी का काम कर रही है.

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