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सिंगापुर को टक्कर देने वाली GIFT सिटी खाली! नहीं बिके घर, जॉब छोड़ रहे लोग

जिस 'वॉक-टू-वर्क' सपने को देखकर इस शहर में आवासीय इमारतें बनाई गईं, यहां लोग घर लेने को तैयार नहीं हैं. लोग काम के लिए तो आते हैं, लेकिन रहने के लिए नहीं रुकते.

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गांधीनगर की गिफ्ट सिटी क्यों वीरान? (Photo- AI-Generated)
गांधीनगर की गिफ्ट सिटी क्यों वीरान? (Photo- AI-Generated)

गांधीनगर में साबरमती नदी के किनारे स्थित गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (GIFT City), सिंगापुर और दुबई जैसे वैश्विक वित्तीय हब को टक्कर देने की योजना के साथ बनाया गया था. गगनचुंबी इमारतों का यह शहर तमाम उम्मीदों और आर्थिक संभावनाओं के साथ बसाया गया था, लेकिन हकीकत कुछ और ही है, जिस भव्यता और चहल-पहल के साथ इसे चमकना चाहिए था, वह दिखाई नहीं देती.

यहां के शानदार टावर और चौड़ी सड़कें आज भी खाली-खाली दिखती हैं. सबसे बड़ी चिंता यह है कि जिस 'वॉक-टू-वर्क' सपने को देखकर इस शहर में आवासीय इमारतें बनाई गईं, वहां लोग घर लेने को तैयार नहीं हैं. लोग काम के लिए आते हैं, लेकिन रहने के लिए नहीं रुकते.आख़िर क्या कारण है कि भारत का यह ड्रीम प्रोजेक्ट अपनी पूरी क्षमता से गुलज़ार नहीं हो पाया है? इसकी वजहें केवल टैक्स इंसेंटिव तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह वर्कफोर्स और लाइफस्टाइल की बुनियादी चुनौतियों से जूझ रहा है.

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क्यों नहीं बिक रहे घर?

GIFT सिटी में खाली पड़े घरों की संख्या चिंताजनक है, जो इसके आवासीय विकास को सीमित कर रही है. हालिया रियल एस्टेट रिपोर्टों के अनुसार, जुलाई 2025 तक GIFT सिटी में कुल आवासीय सप्लाई 3,168 यूनिट्स थी, जिसमें से करीब 2,100 यूनिट्स अभी भी बिना बिके पड़े हुए थे.

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ऊंची कीमतों का बोझ: घर न बिकने का एक मुख्य कारण कीमतें हैं. GIFT सिटी में डेवलपर्स ज़मीन सीधे नहीं खरीदते, बल्कि डेवलपमेंट राइट्स की बोली लगाते हैं. भविष्य की मांग के अनुमान में डेवलपर्स ने इतनी आक्रामक बोली लगाई है कि आवासीय ज़मीन की कीमत लगभग दोगुनी हो गई है. जमीन की ऊंची कीमत का सीधा बोझ खरीदारों पर पड़ता है, जिससे यहां अपार्टमेंट की कीमतें अहमदाबाद या आस-पास के क्षेत्रों की तुलना में बहुत ज़्यादा हो जाती हैं, और आम नौकरीपेशा व्यक्ति के लिए खरीदना मुश्किल होता है.

वर्कफोर्स और लाइफस्टाइल की चुनौतियां?

PwC इंडिया की हालिया स्टडी के अनुसार, GIFT सिटी की तरक्की को धीमा करने वाली मुख्य दिक्कतें ये हैं.

जॉब छोड़ने की दर: यहां कर्मचारी जल्द ही नौकरी छोड़कर चले जाते हैं, यानी जॉब बदलने की दर काफी ज़्यादा है. कर्मचारी ज़्यादा बेहतर सैलरी और लाइफस्टाइल के लिए मुंबई, बैंगलोर या दिल्ली जैसे स्थापित महानगरों में जाना पसंद करते हैं.

कम सैलरी: यहां काम करने वाले लोगों को अन्य बड़े शहरों के मुकाबले सैलरी कम मिलती है.

सामाजिक सुविधाओं की कमी: एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र में जो सामाजिक और मनोरंजन की सुविधाएं (जैसे प्रीमियम रेस्टोरेंट, मॉल, सिनेमा, एक्टिव नाइटलाइफ़) होनी चाहिए, उनकी यहां कमी है. कर्मचारियों को अच्छी लाइफस्टाइल के लिए अभी भी अहमदाबाद जाना पड़ता है.

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नतीजतन, GIFT सिटी में काम करने वाले कई लोग अहमदाबाद में रहना पसंद करते हैं और हर दिन लंबा सफ़र तय करके यहां आते हैं. इससे GIFT सिटी का रात का समय खाली रहता है और घरों की मांग किराये तक सीमित हो जाती है, न कि खरीद तक.

क्या है GIFT सिटी?

GIFT सिटी का कॉन्सेप्ट आज से करीब दो दशक पहले, 2007 में आया था. जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. आज यहां Google, IBM, SBI जैसी बड़ी कंपनियों ने अपने ग्लोबल ऑफिस खोले हैं और यह अब तक 30,000 लोगों को रोज़गार दे चुका है. इसे एक संपूर्ण शहर की तरह ज़ोन-वाइज (Zone-wise) डिज़ाइन किया गया है.

कमर्शियल और फ़ाइनेंस ज़ोन: यहां बैंक, अंतर्राष्ट्रीय एक्सचेंज, बीमा कंपनियां और वित्तीय संस्थाएं काम करती हैं, जिन्हें टैक्स में कई ख़ास छूटें मिलती हैं.

आईटी ज़ोन: यह टेक कंपनियों और ग्लोबल इन-हाउस सेंटर्स (GICs) के लिए है.

रेजिडेंशियल ज़ोन: यहां हाई-राइज टावर बन रहे हैं ताकि कर्मचारी यहीं रह सकें.

सोशल ज़ोन: इसमें स्कूल, अस्पताल, होटल और रिटेल सेवाएं शामिल हैं.

GIFT सिटी का इंफ्रास्ट्रक्चर शानदार है, लेकिन जब तक यह लोगों को रहने लायक एक बेहतरीन और संपूर्ण शहर नहीं बन जाता, तब तक इसे एक खाली मास्टरपीस बने रहने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा.

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