सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड को लेकर बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड की दिवाला समाधान प्रक्रिया को 90 दिन में पूरा करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि परिवर्तित समाधान योजनाएं सिर्फ दो कंपनियों एनबीसीसी और सुरक्षा रियलटी से ही मंगाई जाएगी. कोर्ट का यह कदम जेपी समूह के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि वह मकान खरीदारों, जेपी समूह और संबंधित बैंकों के साथ पूरा न्याय करने के लिये 'असाधारण स्थिति' में यह निर्देश दे रहे हैं. अदालत ने कहा कि हम दिवाला समाधान पेशेवर को निर्देश देते हैं कि इस कार्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया को 90 दिन के भीतर पूरा किया जाए. दिवाला समाधान पेशेवर पहले 45 दिन में दिवाला समाधान प्रक्रिया के तहत सिर्फ सुरक्षा रियलटी और एनबीसीसी से संशोधित समाधान योजना आमंत्रित कर सकता है.
ऐसे शुरू हुआ जेपी ग्रुप का सफर
जेपी ग्रुप के फाउंडर जय प्रकाश गौड़ का जन्म 1930 में यूपी के बुलंदशहर में एक छोटे से गांव में हुआ था. उन्होंने 1950 में रुड़की यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. इसके बाद गौड़ की यूपी सरकार में जूनियर इंजीनियर की नौकरी लग गई. लेकिन जय प्रकाश गौड़ को नौकरी में बंध कर रहना पसंद नहीं था और उन्होंने 1958 में सिविल कॉन्ट्रैक्टर के तौर पर काम शुरू कर दिया.
लगभग दो दशक बाद जय प्रकाश गौड़ ने जेपी एसोसिएट के नाम से सिविल
इंजीनियरिंग और कंस्ट्रक्शन कंपनी के साथ जेपी ग्रुप की नींव रखी. इसके
बाद जय प्रकाश गौड़ ने कभी पलट कर नहीं देखा. शुरुआती कारोबारी जीवन में
तमाम उतार-चढ़ाव के बाद भी ग्रुप का कारोबार बढ़ता गया.
जेपी ग्रुप ने रियल एस्टेट, एजुकेशन और पावर सेक्टर से लेकर सीमेंट
प्लांट व डैम तक की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई. यही नहीं, करीब 2005
से 2008 के बीच ग्रुप को यमुना एक्सप्रेसवे और देश का पहला फॉर्मूला वन
ट्रैक बनाने का ठेका भी हासिल हुआ.
यहां तक तो सब ठीक था लेकिन जानकार
बताते हैं कि ये दोनों प्रोजेक्ट ग्रुप के लिए आर्थिक बोझ बन गया. इन
प्रोजेक्ट से जेपी ग्रुप को वह लाभ नहीं मिला, जिसकी उम्मीद समूह और उनके
निवेशकों को थी. ग्रुप के लिए यह एक बड़ा झटका था.
विवादों का सफर
इसके साथ ही जेपी ग्रुप के साथ विवादों का सफर भी शुरू हो गया. साल 2014 की कैग रिपोर्ट में जेपी ग्रुप को दिए गए कई प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े किए गए.
वहीं ग्रुप की कंपनी जेपी इंफ्राटेक के नोएडा और ग्रेटर नोएडा के हाउसिंग
प्रोजेक्ट विवादों में आ गए. इन प्रोजेक्ट्स में होम बायर्स से पैसे तो
ले लिए गए लेकिन उन्हें पजेशन नहीं मिला. इसका नतीजा ये हुआ कि जेपी
इंफ्रा के खिलाफ होम बायर्स ने सड़क से लेकर कोर्ट तक मोर्चा खोल दिया.
जेपी ग्रुप ने महंगा कर्ज लेकर इससे उबरने की कोशिश की तभी नोटबंदी का ऐलान
हो गया. नोटबंदी के फैसले की वजह से रियल एस्टेट सेक्टर की रफ्तार
सुस्त पड़ गई. इससे जेपी ग्रुप की इंफ्राटेक को बड़ा झटका लगा. वहीं
कानूनी दबाव बढ़ने की वजह से जेपी ग्रुप पर होम बायर्स को पजेशन देने या
पैसा लौटाने का दबाव बढ़ने लगा.
वहीं कंपनी पर धोखाधड़ी के भी आरोप लगे तो
डायरेक्टर्स की प्रॉपर्टी भी फ्रीज की गई. इन हालातों से निपटने के लिए
जेपी इंफ्रा कर्ज के जाल में फंसती चली गई. वहीं जेपी इंफ्रा के शेयर भाव
भी लुढ़कने लगे और कंपनी की प्रॉफिट को भी झटका लगने लगा.
अदालत ने कहा कि इस रियल एस्टेट कंपनी को फिर से खड़ा करना जरूरी है क्योंकि इसमें 20 हजार से ज्यादा घर खरीदारों ने निवेश किया है. पीठ ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ जेपी समूह की याचिका पर यह आदेश पारित किया।