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ट्रंप-हैरिस आमने-सामने... कोई भी जीते! भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा ये असर

आंकड़ों के मुताबिक 2023-24 में अमेरिका और भारत के बीच 118 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ. इसमें अमेरिकी कंपनियों के साथ-साथ भारतीय टेक्नोलॉजी और फार्मा इंडस्ट्री को भी बड़ी भूमिका रही है.

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Donald Trump and Kamla Harris
Donald Trump and Kamla Harris

अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के नतीजों का भारत की अर्थव्यवस्था पर भी असर होने का अनुमान है. दरअसल, ये चुनाव केवल अमेरिका तक सीमित नहीं है बल्कि इसका असर ग्लोबल ट्रेड, विदेशी निवेश और करेंसी की स्थिति पर भी गहरा असर डाल सकता है. 

व्यापार और आयात-निर्यात में संभावित बदलाव अमेरिका भारत का एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार है. आंकड़ों के मुताबिक 2023-24 में अमेरिका और भारत के बीच 118 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ. इसमें अमेरिकी कंपनियों के साथ-साथ भारतीय टेक्नोलॉजी और फार्मा इंडस्ट्री को भी बड़ी भूमिका रही है.

अब अगर नई सरकार ट्रेड पॉलिसीज में बदलाव करती है, तो ये सीधे भारत के कई सेक्टर्स को प्रभावित कर सकता है. मिसाल के तौर पर कुछ संभावित बदलावों में आयात-निर्यात पर टैक्स की दरें बढ़ाई जा सकती हैं. या नई टेक्नोलॉजी (Technology) पर एक्सपोर्ट कंट्रोल लगाया जा सकता है.

पिछले एक दशक में अमेरिका-भारत व्यापार में करीब 6 परसेंट का सालाना इजाफा देखा गया है. लेकिन इस चुनाव के बाद नई अमेरिकी सरकार की पॉलिसी से ये साफ होगा कि व्यापार नीति में स्थिरता बढ़ेगी या अस्थिरता आएगी जिससे इस ग्रोथ रेट में तेजी या कमी भी आ सकती है.

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 अमेरिकी डॉलर की स्थिति और इसका असर
अमेरिकी डॉलर की वैल्यू क्रूड ऑयल समेत भारत में कई आइटम्स की कीमतों को तय करता है. भारत अपनी ऊर्जा की जरूरतों का करीब 85 फीसदी हिस्सा आयात से पूरा करता है इसलिए अगर अमेरिकी चुनाव के बाद डॉलर मजबूत होता है तो भारत के लिए कच्चा तेल महंगा हो जाएगा.

इसका सीधा असर भारत की महंगाई दर और रुपये की कीमत पर पड़ेगा. अनुमान है कि अगर डॉलर इंडेक्स 105 या उससे ऊपर चला जाता है तो रुपये की गिरावट भी जारी रह सकती है. ऐसे में डॉलर की स्थिरता या अस्थिरता पर अमेरिका की फिस्कल पॉलिसीज का सीधा असर पड़ेगा.  

विदेशी निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर असर
अमेरिका का अगला प्रेसिडेंट भारतीय बाजार में इन्वेस्टमेंट को किस हद तक बढ़ावा देता है ये भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर के लिए अहम हो सकता है. अगर नई अमेरिकी सरकार 'फ्रेंडशोरिंग' और 'चाइना प्लस वन' जैसी नीतियों को बढ़ावा देती है तो भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को नई संभावनाएं मिल सकती हैं. 

टेक्नोलॉजी सेक्टर और वीज़ा पॉलिसी पर प्रभाव
भारत का आईटी सेक्टर अमेरिका के लिए एक प्रमुख सप्लायर है. अमेरिका में अगर वीजा पॉलिसीज या आईटी क्षेत्र के लिए नए नियम बनते हैं तो ये भारत की टॉप कंपनियों जैसे TCS, Infosys और Wipro पर बड़ा असर डाल सकता है. अगर नए राष्ट्रपति ने H1B वीजा पॉलिसी नियमों में बदलाव किया तो भारतीय प्रोफेशनल्स को नए मौके या चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

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अमेरिका में भारतीय टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल्स की संख्या पिछले 5 साल में 20 फीसदी बढ़ी है. इस चुनाव के नतीजे भी भारतीय टैलेंट की डिमांड और उनकी इनकम में बदलाव ला सकते हैं. अमेरिका की नई आर्थिक नीतियों का असर 2025 से भारतीय बाजार पर नजर आ सकता है. अगर अमेरिकी ब्याज दरें बढ़ती हैं तो विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से अपना पैसा निकाल सकते हैं, जिससे भारतीय कंपनियों के लिए फंडिंग महंगी हो सकती है.
 

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