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SEBI की बैठक में बड़ा फैसला... PSU डीलिस्टिंग आसान बनाने के लिए बदलाव को मंजूरी

SEBI ने बोर्ड बैठक में बड़ा फैसला लेते हुए 90% से अधिक सरकारी हिस्सेदारी वाले सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs) के लिए डीलिस्टिंग मानदंडों में ढील को मंजूरी दी है.

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सेबी की बोर्ड बैठक में बड़ा फैसला
सेबी की बोर्ड बैठक में बड़ा फैसला

सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) बोर्ड की बैठक में बुधवार को कई बड़े फैसले लिए गए. इनमें मार्केट रेग्युलेटर ने (इक्विटी शेयरों की डीलिस्टिंग) विनियम, 2021 में संशोधनों को अपनी मंजूरी दे दी. इस कदम का उद्देश्य सरकार की बहुसंख्यक हिस्सेदारी वाले PSU की स्वैच्छिक डीलिस्टिंग को आसान बनाना है. इसके तहत उन सरकारी उपक्रमों के लिए विशेष प्रावधान होंगे, जिनमें भारत सरकार या अन्य पीएसयू की संयुक्त हिस्सेदारी 90 फीसदी या उससे अधिक है. 

SEBI चेयरमैन ने क्या कहा? 
बिजनेस टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, SEBI के संशोधन के बाद लागू होने वाले प्रावधान इन PSUs को एग्जिट के लिए मौजूदा रिवर्स बुक-बिल्डिंग रूट की जगह फिक्स्ड प्राइस डीलिस्टिंग रूट मुहैया कराते हैं. सेबी के चेयरमैन तुहिन कांत पांडे (Tuhin Kanta Pandey) के मुताबिक, संशोधित मानदंडों के तहत पात्र PSU अब तक चल रहे रिवर्स बुक-बिल्डिंग रूट के बजाय एक फिक्स्ड प्राइस प्रक्रिया के माध्यम से डीलिस्ट हो सकते हैं. इशके तहत ऑफर प्राइस, फ्लोर प्राइस पर मिनिमम 15% प्रीमियम पर निर्धारित किया जाएगा, जिसे रजिस्टर्ड वैल्यूयर्स द्वारा तय किया जाएगा.

डीलिस्ट होने के बाद क्या प्रक्रिया?  
मार्केट रेग्युलेटर सेबी की ओर से स्पष्ट किया गया है कि एक बार डीलिस्ट होने के बाद ये पीएसयू नॉन लिस्टेड ईकाई के रूप में जारी रह सकते हैं और स्वैच्छिक स्ट्राइक-ऑफ का ऑप्शन चुन सकते हैं. हालाँकि, अगर कोई डीलिस्टेड PSU स्ट्राइक-ऑफ का विकल्प का चयन करता है, तो फिर उसे डीलिस्टिंग की तारीख से एक वर्ष के बाद 30 दिनों के भीतर प्रक्रिया शुरू करनी होगी.

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गौरतलब है कि फिलहाल तक पीएसयू के लिए मिनिमम पब्लिक शेयर होल्डिंग के नियमों (Public Shareholding Rule) का पालन आसान नहीं है. PSU को लिस्टिंग के 3 सालों में प्रमोटर की हिस्सेदारी को 75 फीसदी तक लाना जरूरी है. इसके बावजूद ज्यादातर सरकारी उपक्रम इसका पालन नहीं कर रही हैं.

BFSI कंपनियों पर संशोधन लागू नहीं
SEBI के मुताबिक, वर्तमान में केवल 5 सार्वजनिक उपक्रम ही ऐसे मानदंड को पूरा करते हैं, जहां प्रमोटर की हिस्सेदारी 90 फीसदी से ज्यादा है. ऐसे में (इक्विटी शेयरों की डीलिस्टिंग) विनियम, 2021 में ताजा संशोधन एक टारगेटेड रेग्युलेटर चेंज बनता है. इस कदम से सरकार के रणनीतिक विनिवेश प्रयासों (Strategic Disinvestment Efforts) को समर्थन मिलने और एग्जिट रणनीति को सरल बनाने वाला साबित होगा.

SEBI Chairman ने साफ किया कि संशोधन के बाद लागू होने वाले प्रावधानों के तहत आने वाले पीएसयू में कोई भी BFSI कंपनी ((बैंक, एनबीएफसी और इंश्योरेंस कंपनियां) शामिल नहीं हैं.  

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