
‘रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध (Russia-Ukraine War) से कई वस्तुओं की कीमत तेजी से बढ़ी है, और इसका असर दुनिया के अलग-अलग देशों में आम आदमी की जेब पर पड़ रहा है. इन वस्तुओं के दाम तय करने में रूस और यूक्रेन की अहम भूमिका है और इन्हें इग्नोर भी नहीं किया जा सकता.
पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाएंगे महंगाई
दुनिया के किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में महंगाई का मुख्य वाहक ईंधन की कीमत होती है, क्योंकि इससे परिवहन-मालवहन की लागत बढ़ती है और ये कई वस्तुओं को महंगा बनाता है. पेट्रोल-डीजल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के भाव से तय होती हैं, और रूस के यूक्रेन पर आक्रमण का बड़ा असर कच्चे तेल की कीमतों (Crude Oil Price) पर पड़ा है. 2014 के बाद ये पहली बार 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गया है. जबकि 23 फरवरी के बाद से अब तक कच्चे तेल के भाव में 19% की बढ़त दर्ज की जा चुकी है. कच्चे तेल की कीमतें तय करने में रूस की अहम भूमिका है, यह हर साल 65 लाख बैरल तेल का निर्यात करता है.
हालांकि इससे बचने के लिए कई देशों ने अपने रणनीतिक भंडार (स्ट्रेटजिक रिजर्व) का सहारा लिया है, लेकिन भारत जैसे बड़े आयातक देशों में पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ना (Petrol-Diesel Price Hike) अवश्यंभावी लगता है. आने वाले समय में भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमत 30 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ने के आसार हैं.
महंगा होगा खाने का तेल भी
भारत अपनी जरूरत के खाद्य तेल का बड़ा हिस्सा आयात करता है. पिछले डेढ़ साल से देश में सरसों तेल (Mustard Oil Price), रिफाइंड ऑयल (Refined Oil Price) और अन्य एडिबल ऑयल की कीमतों (Edible Oil Price) में अच्छी-खासी वृद्धि देखने को मिली है. ऐसे में रूस और यूक्रेन युद्ध से कच्चे खाद्य तेल (Crude Edible Oil) की सप्लाई बाधित हो सकती है. वहीं सूरजमुखी के तेल (Sunflower Oil) के लिए भारत 90% आपूर्ति के लिए यूक्रेन और रूस पर निर्भर है. दुनियाभर में इस तेल का 75% निर्यात रूस और यूक्रेन करते हैं. ऐसे में इस तेल के भाव भी महंगाई की मार झेलेंगे.

गैस से लेकर खाद तक महंगी
रूस और यूक्रेन युद्ध का असर दुनियाभर की ईंधन जरूरत पर भी पड़ेगा. रूस दुनिया में 17% प्राकृतिक गैस का उत्पादन करता है. इसके भाव बढ़ने से सभी देशों में इनकी कीमतें प्रभावित होंगी. वहीं दुनिया में नाइट्रोजन खाद का 15% कारोबार रूस से होता है. जबकि पोटाश फर्टिलाइजर निर्यात में रूस की 17% से अधिक हिस्सेदारी है. इससे दुनियाभर में उवर्रकों की कीमत भी प्रभावित होने की आशंका है.
गेहूं के मामले में भारत को फिलहाल आयात की जरूरत नहीं पड़ती है. लेकिन दुनिया के कई देश रूस और यूक्रेन से मिलने वाले गेहूं पर निर्भर करते हैं. ये दोनों देश दुनिया में गेहूं का 29% निर्यात करते हैं.
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