पेट्रोल-डीजल से लेकर रसोई गैस, सब्जी, दाल और खाने के तेल को लेकर पहले से महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी के लिए अब माचिस भी सस्ती नहीं रह गई है. गरीब के घर में उजाला करने वाली दियासलाई के दाम 1 दिसंबर से दोगुने हो गए हैं.
2 रुपये की हुई ‘दियासलाई’
अभी तक देश में माचिस का दाम (Matchbox Price Hike) 1 रुपया था. लेकिन 1 रुपये में 50 बार रोशनी करने वाली ये माचिस बुधवार 1 दिसंबर 2021 से 2 रुपये की हो गई है. इससे पहले 2007 में माचिस की कीमत बढ़ाकर 1 रुपये की गई थी और उससे पहले ये महज 50 पैसे में आती थी. बीते 14 साल में महंगाई आसमान तक पहुंच गई, लेकिन आम आदमी का घर रोशन करने वाली इस माचिस के दाम नहीं बढ़े.
माचिस उद्योग पर महंगाई की मार
माचिस बनाने की लागत बढ़ जाने के चलते शिवकाशी में ऑल इंडिया चैंबर ऑफ मैचेस ने करीब 14 साल बाद माचिस के दाम बढ़ाने का फैसला किया है. माचिस बनाने में जो सामान उपयोग होता है उसमें से करीब 14 वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं और अब माचिस उद्योग इस महंगाई को झेल पाने में असमर्थ है.
बढ़ी माचिस बनाने की लागत
माचिस बनाने में सबसे अहम चीज लगती है लाल फास्फोरस जिसे हम आम भाषा में ‘रोगन’ भी कहते हैं. इसी रोगन की कीमत अब 425 रुपये की जगह 810 रुपये किलोग्राम हो गई है. वहीं मोम की लागत 58 रुपये से बढ़कर 80 रुपये, माचिस की डिबिया की लागत 36 रुपये से बढ़कर 55 रुपये हो गई है. इसके अलावा कागज, पोटेशियम क्लोरेट और सल्फेट के दाम भी अक्टूबर से लगातार बढ़ रहे हैं. माचिस उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि ऐसे में इसके दाम बढ़ाने जरूरी हो गए हैं.
नेशनल स्मॉल मैचबॉक्स मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के वी. एस. सेतुरतिनम ने टीओआई से कहा था कि अभी 50 तीली वाली 600 माचिस की डिबिया 270 से 300 रुपये की बेची जाती है. अब माचिस उद्योग ने इसका दाम 60% बढ़ाने यानी 430 से 480 रुपये करने का निर्णय किया है. ये दाम 12% के जीएसटी और परिवहन लागत को छोड़कर तय किए गए हैं.
देश में माचिस उद्योग मुख्य तौर पर तमिलनाडु में चलता है. यहां करीब 4 लाख लोगों को इससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है. इसमें भी करीब 90% महिलाएं हैं.
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