मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के महासचिव हनन मोल्ला कहा कि अगर सरकार ने वाजिब कदम नहीं उठाये तो किसान के बेटे-बेटियां किसान बनना पसंद नहीं करेंगे.
उन्होंने कहा कि किसान के बेटे-बेटी अब खेती नहीं करना चाहते, क्योंकि वे अपने बाप-दादों की दयनीय हालत देख रहे हैं. सरकार भी ऐसा कुछ नहीं कर रही जिससे किसानों के बच्चे खेती में बने रहें.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ देश के कई संगठनों से जुड़े किसान आंदोलन कर रहे हैं, जिनमें वामपंथी संगठन भी शामिल हैं. केंद्र सरकार से किसान नेताओं की कई दौर की वार्ता का कोई हल नहीं निकला है और अब किसान संगठनों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है. किसान आंदोलन में मोल्ला का संगठन अखिल भारतीय किसान सभा भी शामिल है.
खासकर पंजाब, हरियाणा, यूपी के किसान दिल्ली से राज्यों को जोड़ने वाली सीमाओं पर धरना दे रहे हैं. किसानों का कहना है कि वे तीनों नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की अपनी मांग से पीछे नहीं हटेंगे.
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सिर्फ अडानी-अंबानी को फायदा!
आज किसानी काफी कठिन पेशा हो गया है, अब नई पीढ़ी जमीन बेचकर कॉरपोरेट की नौकरी करना बेहतर समझ रहा है. इस पीढ़ी को क्या सुझाव देना चाहेंगे. इस सवाल पर मोल्ला ने कहा, 'किसान के बेटे-बेटी अब खेती नहीं करना चाहते, क्योंकि वे अपने पिता-दादा की खस्ता हालत देख चुके हैं. खेती अब घाटे का सौदा हो चुका है. ऐसी हालत में सरकार का कर्तव्य क्या है? क्या मुनाफा केवल अडानी और अंबानी के लिए है, करोड़ों किसानों के लिए नहीं?'
निरंकुश खेती का डर
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में मोल्ला ने कहा कि सरकार यदि हालात में सुधार करे तो युवाओं का बड़ा हिस्सा खेती में बना रहेगा. लेकिन सरकार किसानों की मदद नहीं कर रही. देश भर में पहले से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग होती रही है, लेकिन इस पर कुछ अंकुश रहता है.
अब नए कानूनों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पूरी तरह से मुक्त कर दिया गया है. इसमें तो जो मजबूत साझेदार होगा, उसका ही प्रभुत्व रहेगा. एक बार मजबूत साझेदार फसल खरीद लेगा, लोन और बीज आदि मुहैया करा देगा तो कोई कैसे भरोसा कर सकता है कि ये धनी लोग धीरे-धीरे जमीन पर अपना प्रभुत्व कायम कर लें.