अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार (Taliban Government in Afghanistan) को दुनिया के ज्यादातर देशों ने मान्यता नहीं दी है. यानी इसे अवैध माना जा रहा है और इसी वजह से अमेरिका जैसे देशों सहित कई एजेंसियों ने अफगानिस्तान के अरबों डालर के फंड पर रोक लगा दी है. ऐसे में सवाल उठता है कि तालिबान देश की इकोनॉमी और सरकार को कैसे चलाएगा? आइए जानते हैं कि तालिबान के पास कहां से पैसा आ सकता है और उसकी कमाई का स्रोत क्या है? (फाइल फोटो: AP)
करीब 20 साल तक के गृहयुद्ध से अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था वैसे ही बर्बाद थी. पिछले 20 साल में लोकतंत्र के दौरान इसमें कुछ सुधार हुआ. लेकिन अब फिर से तालिबान की सरकार आ गई है तो देश में नया आर्थिक संकट आने की आशंका है. अमेरिका ने अपने यहां अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक Da Afghan Bank (DAB) द्वारा जमा अफगानिस्तान सरकार के 9.5 अरब डॉलर के फंड या एसेट को फ्रीज कर दिया है. इसी तरह आईएमएफ ने भी अफगानिस्तान के फंड पर रोक लगा दी है. (फाइल फोटो: Getty Images)
संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था (Afghanistan) की जीडीपी महज 19.8 अरब डॉलर है. यह काफी समय से सबसे कम विकसित देशों की संयुक्त राष्ट्र की सूची में है. विश्व बैंक के मुताबिक अफगानिस्तान का करीब 75 फीसदी सरकारी बजट अंतरराष्ट्रीय दानताओं (international donors) से मिलता है. लेकिन तालिबान के कब्जे के बाद ही यह साफ हो गया कि अब अफगानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मदद नहीं मिलने वाली है. अमेरिका के अलावा दूसरे दानदाता भी अब सख्ती बरत रहे हैं. शॉर्ट टर्म में तो तालिबान के लिए काफी आर्थिक संकट आने वाला है. (फाइल फोटो: Getty Images)
अमेरिका ने अफगानिस्तान जा रही नकदी के शिपमेंट पर भी रोक लगा दी है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी एसडीआर और अन्य मौद्रिक संसाधनों तक तालिबान सरकार की पहुंच पर रोक लगा दी है. अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक DAB के गवर्नर अमजद अहमदी देश से भाग चुके हैं. इन सबसे तालिबान को संसाधन की भारी तंगी आने वाली है और महंगाई काफी बढ़ेगी. इससे आम जनता और गरीब लोगों की मुश्किल बढ़ेगी. (फाइल फोटो: AP)
अभी तक तालिबान सरकार को लेकर सिर्फ पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, सऊदी अरब और चीन का ही रुख कुछ नरम है. जब तक ये देश तालिबान की नकदी के रूप में कोई मदद नहीं करते, अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से वहां की जनता को काफी परेशानी होने वाली है. (फाइल फोटो: Getty Images)
हालांकि तालिबान को आर्थिक लिहाज से एक संपन्न आतंकी संगठन माना जाता रहा है. जून 2021 की संयुक्त राष्ट्र (UN) एक रिपोर्ट के अनुसार तालिबान को हर साल करीब 1.6 अरब डॉलर की आमदनी होती है. इसके अनुसार तालिबान की कमाई का मुख्य स्रोत ड्रग की तस्करी, अफीम की खेती, अपहरण से मिली फिरौती, वसूली, खनिजों के अवैध दोहन और अपने कब्जे वाले इलाकों में लोगों, कारोबार पर लगाए गए टैक्स हैं. इसके अलावा कई अमीर लोग और एनजीओ भी तालिबान की आर्थिक मदद करते रहे हैं. (फाइल फोटो: UN)
अब देशभर में करेगा टैक्स वसूली: अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद अब तालिबान पूरे देश से टैक्स वसूल सकते हैं. यही नहीं सीमा व्यापार पर लगे टैक्स से भी तालिबान सरकार की कमाई होगी. इसके अलावा बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं पर भी इसका नियंत्रण होगा. इसके अलावा अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर अवैध हवाला मनी ट्रांसफर नेटवर्क चलता है, इनसे भी तालिबान सरकार टैक्स थोपकर भारी कमाई कर सकती है. अफीम जैसे व्यापार को तालिबान सरकार औपचारिक रूप देकर भारी कमाई कर सकती है. (फाइल फोटो: Getty Images)
यही नहीं तालिबान का देश के सभी 34 प्रांतों में करीब 704 माइनिंग क्षेत्रों पर कब्जा है. अफगानिस्तान खनिज संसाधनों के लिहाज से काफी संपन्न है और खासकर वहां के रेयर अर्थ मेटल पर चीन सहित कई देशों की नजर है. साल 2017 की अफगान सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में खनिज संसाधनों का कुल मूल्य करीब 3 लाख करोड़ डॉलर है. अब ये सभी तालिबान के कब्जे में हैं. इन संसाधनों के दोहन से तालिबान भारी कमाई कर सकता है. हालांकि इन सबके दोहन के लिए बुनियादी ढांचा विकास में वर्षों लग सकते हैं, यानी तत्काल तो तालिबान को इनसे कोई फायदा नहीं मिलने वाला है. (फाइल फोटो: Getty Images)
इसके अलावा तालिबान के हाथ अमेरिकी हथियारों और साजो-सामान का जखीरा लग गया है जिनका मूल्य अरबों डॉलर में है. जरूरत पड़ने पर तालिबान इनकी अवैध संगठनों या मित्र देशों को बिक्री भी कर सकता है. (फाइल फोटो: Getty Images) (www.businesstoday.in के इनपुट पर आधारित)