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क्या उत्तर बिहार में NDA का 'अजेय' किला भेद पाएगा महागठबंधन? ये रणनीति कर सकती है जादू

बिहार का अगला चुनाव जीतना है तो उत्तर बिहार जीतना होगा. यहीं से तय होती है सत्ता की कुर्सी. एनडीए पिछले दो चुनावों से इस इलाके में अजेय किला बनाए बैठा है, जबकि महागठबंधन की असली चुनौती अब इसी इलाके में है जहां सीटें भी सबसे ज्यादा हैं और समीकरण भी सबसे पेचीदा.

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महागठबंधन की मुश्किल: जहां सबसे ज्यादा सीटें, वहीं एनडीए सबसे मजबूत
महागठबंधन की मुश्किल: जहां सबसे ज्यादा सीटें, वहीं एनडीए सबसे मजबूत

अगर महागठबंधन को बिहार विधानसभा चुनाव जीतना है तो उत्तर बिहार में एनडीए की पकड़ तोड़नी ही होगी. पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों के नतीजे तो यही इशारा करते हैं. यहां का वोट शेयर महागठबंधन की जीत की चाभी बन सकता है. आइए यहां समझते हैं, कैसे? 

गौरतलब है कि बिहार को प्रशासनिक रूप से 9 जोनों में बांटा गया है. चुनावी विश्लेषण के लिए पटना से भोजपुर को अलग करके 10 जोन बनाए गए पांच उत्तर बिहार में और पांच दक्षिण बिहार में. इसके अलावा उत्तर बिहार में कुल 140 सीटें हैं. इनमें सारण (24), तिरहुत (49), दरभंगा (30), कोसी (13) और पूर्णिया (24). इसके बाद दक्षिण बिहार में 103 सीटें हैं. इनमें भागलपुर (12), मुंगेर (22), मगध (26), पटना (21) और भोजपुर (22) का बड़ा वोट शेयर है. 

उत्तर बिहार की सीटें कुल सीटों का करीब 58% हैं. राज्य की करीब 70% मुस्लिम आबादी यहीं रहती है. पूर्णिया में करीब 46% आबादी मुस्लिम है. तिरहुत और दरभंगा में मुस्लिम आबादी बिहार के औसत 18% के आसपास है. यही वजह है कि उत्तर बिहार चुनावी ध्रुवीकरण (polarisation) का केंद्र बन जाता है.  तिरहुत और दरभंगा में ऊंची जातियों की आबादी भी ज्यादा है (करीब 11%) जबकि कोसी इलाके में यादवों की आबादी सबसे ज्यादा (22%) है.

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दलित आबादी उत्तर और दक्षिण बिहार दोनों में लगभग बराबर है. मगध में सबसे ज्यादा दलित आबादी (31%) है, जबकि पटना और भोजपुर में भी 21-22% के आसपास है. उत्तर में कोसी में सबसे ज्यादा दलित (21%) हैं.

दक्षिण बिहार के पटना, मगध और भोजपुर में यादवों की संख्या ज्यादा है. वहीं यहां ऊंची जातियों और कुर्मी-कोयरी वोटर्स की भी अच्छी हिस्सेदारी है. सारण, मुंगेर और दरभंगा में अत्यंत पिछड़ी जातियों (EBC) की संख्या सबसे ज्यादा है. ये सारे फैक्टर टिकट वितरण में अहम रोल निभाते हैं.

2020 का चुनाव

2020 में एनडीए ने 243 में से 125 सीटें जीती थीं, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं. दोनों के वोटों में सिर्फ करीब 12 हजार वोटों का फर्क था. एनडीए ने 5 जोन में बढ़त बनाई थी, महागठबंधन 3 में आगे रहा, जबकि 2 जोन में कांटे की टक्कर हुई थी. यहां एनडीए को सबसे ज्यादा बढ़त कोसी में (+7%) मिली थी, जबकि भोजपुर में महागठबंधन को सबसे ज्यादा फायदा (+12%) हुआ था.

उत्तर बिहार में एनडीए ने 140 में से 86 सीटें जीती थीं. उत्तर के पांच जोनों में से सारण को छोड़कर बाकी सभी में एनडीए आगे था, यहां तक कि मुस्लिम बहुल पूर्णिया में भी. पूर्णिया जोन में ओवैसी की पार्टी AIMIM ने करीब 11% वोट काट लिए थे, जिससे एनडीए को फायदा मिला.

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दूसरी ओर, दक्षिण बिहार में महागठबंधन ने 103 में से 61 सीटें जीतीं. दक्षिण के पांच जोनों में महागठबंधन दो (भोजपुर और मगध) में आगे था, एनडीए एक (भागलपुर) में, और दो जोन (पटना और मुंगेर) में कांटे की टक्कर थी.

हालांकि उत्तर बिहार में मुस्लिम आबादी ज्यादा थी, लेकिन ध्रुवीकरण की वजह से महागठबंधन को नुकसान हुआ. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक वहां मुकाबला हिंदू बनाम मुस्लिम में बदल गया था.  दक्षिण बिहार में मुस्लिम आबादी कम है, इसलिए वहां जातीय समीकरण ज्यादा असर करते हैं. यही वजह है कि दक्षिण में महागठबंधन को फायदा मिला, और जेडीयू (JDU) को भोजपुर और मगध दोनों में एक भी सीट नहीं मिली थी.

2024 में एनडीए ने फिर पलटवार किया

2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने अपनी बढ़त और बढ़ा ली. विधानसभा में 125-110 की बढ़त अब लोकसभा में 173-67 हो गई.
एनडीए सात जोनों में आगे रहा, महागठबंधन सिर्फ तीन में. उत्तर बिहार की 140 में से 116 सीटों पर एनडीए ने बढ़त बनाई, यानी 2020 से 30 सीटें ज्यादा. एनडीए ने सारण को महागठबंधन से छीन लिया, जबकि महागठबंधन ने पूर्णिया जीता जहां पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल हुए.
दक्षिण बिहार में भी एनडीए आगे रहा (57-46). महागठबंधन अभी भी भोजपुर और मगध में आगे था, जबकि मुंगेर और पटना एनडीए के खाते में गए.

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अब क्या रणनीति अपनाए महागठबंधन?

उत्तर बिहार खासकर तिरहुत और दरभंगा में जीत के बिना एनडीए को हराना मुश्किल है. इन दोनों जोनों में बिहार की एक-तिहाई सीटें हैं. तिरहुत पारंपरिक तौर पर बीजेपी का गढ़ रहा है. बीजेपी के पास ऐसी 69 सीटें हैं जहां वो लगातार दो या तीन चुनाव जीतती आई है, और इनमें से करीब आधी सीटें (32) सिर्फ इन दो जोनों में हैं.

ऐसी कुल 71% सीटें उत्तर बिहार में हैं. जेडीयू की भी 73 मजबूत सीटें हैं, जिनमें से 55% उत्तर बिहार में आती हैं. महागठबंधन के लिए अब चुनौती ये है कि ध्रुवीकरण कम करके फोकस रोजगार, भ्रष्टाचार और विकास जैसे मुद्दों पर लाया जाए.

लेकिन ऐसा कैसे होगा?
कुछ लोग कहते हैं कि मुस्लिम उम्मीदवारों को कम टिकट देने से ध्रुवीकरण घटेगा, लेकिन समुदाय पहले ही कम प्रतिनिधित्व से नाराज है. दूसरी ओर, अगर दक्षिण बिहार में ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारे गए, तो वहां भी ध्रुवीकरण बढ़ सकता है और जातीय फायदा खत्म हो जाएगा.

VoteVibe के सर्वे के मुताबिक वोट चोरी मुस्लिम और यादव वोटर्स के बीच सबसे बड़ा मुद्दा है. ये क्रमशः 33% और 20% है. इससे ये दोनों वोटबैंक महागठबंधन की तरफ झुक सकते हैं, लेकिन साथ ही दूसरे जातीय समूह एनडीए के पक्ष में एकजुट हो सकते हैं. रिपोर्ट्स कहती हैं कि सबसे ज्यादा वोटर डिलीशन (नाम कटने) के मामले गोपालगंज, किशनगंज और पूर्णिया में हैं जिनमें से दो सीमांचल इलाके में आते हैं.

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पिछले दो महीनों में महागठबंधन का ज्यादा फोकस SIR (सामाजिक न्याय, इंसाफ और रोजगार) पर रहा, जिससे मुकाबला धर्म से हटकर विकास के मुद्दों पर जाने की जगह फिर धार्मिक लाइनों पर खिसक गया. जैसा कि कहा जाता है हर एक्शन का बराबर और व‍िपरीत रिएक्शन होता है.

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