
जब भी बात कारों की होती है तो एक शब्द 'चेसिस' (Chassis) का जिक्र आपने कई बार सुना होगा. आमतौर पर चेसिस जिसका असल उच्चारण (चा-सी) है वो एक तरह का फ्रेम होता है या यूं कहें कि कार की नींव होती है जिस पर वाहन का पूरा ढांचा खड़ा किया जाता है. जाहिर है कि इसका मजबूत होना बेहद जरूरी है. चेसिस का आविष्कार 1800 के दशक के अंत में हुआ था और ऑटोमोटिव सोर्सों का अनुमान है कि यह 1896 के आसपास पहली बार वजूद में आया. आज हम आपको चेसिस के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे. मसलन ये क्या होता है, किसी भी वाहन में इसकी क्या महत्ता है और ये कितने तरह का होता है.
कारों की दुनिया की शुरुआत घोड़े द्वारा खींची जाने वाली गाड़ियों से शुरू होती है और चेसिस को भी सबसे पहले घोड़ागाड़ी के सिद्धांतों के आधार पर ही डिज़ाइन किया गया था, इसलिए शुरुआती चेसिस लकड़ी और गोंद (Glue) जैसी सामग्रियों से तैयार की गई थी. तब से लेकर अब तक ऑटोमोटिव इंडस्ट्री ने एक लंबा सफर तय किया है, और यहां तक आते-आते चेसिस का रूप काफी बदल गया है.

क्या होता है चेसिस (Chassis):
तकनीकी रूप से देखा जाए तो चेसिस कार का कंकाल (Skeleton) होता है. जैसे मानव शरीर में कंकाल के ढांचे के इर्द-गिर्द मांसपेशियों से शरीर की संरचना होती है ठीक वैसे ही चेसिस के चारों तरफ अलग-अलग पार्ट्स को असेंबल कर वाहन की बॉडी को तैयार किया जाता. ये स्केलटन ही है जो कार की बॉडी का पूरा वजन वहन करता है. चेसिस स्टील से बना होता है और इसमें टायर, कार इंजन, एक्सल सिस्टम, कार का ट्रांसमिशन, स्टीयरिंग सिस्टम, ब्रेक और सस्पेंशन जैसे पुर्जे शामिल किए जाते हैं. कार चेसिस किसी भी वाहन में सबसे महत्वपूर्ण कपोनेंट है. जब आप कोई कार खरीद रहे हों, तो चेसिस की जांच अवश्य करें, खासकर अगर वह सेकेंड हैंड कार हो.
1900 के मध्य तक "बॉडी-ऑन-फ्रेम" चेचिसों का निर्माण किया जाता था. जिसमें कार की बॉडी को चेसिस के चारों तरफ बिल्ड किया जाता था. 1940 के दशक में, एक यूनिबॉडी कंस्ट्रक्शन की शुरुआत हुई. जिसमें चेसिस और फ्रेम को अधिक टिकाऊ और बेहतर ड्राइविंग एक्सपीरिएंस के लिए एक सिंगल एलिमेंट के तौर पर डेवपल किया गया. आजकल, स्टैंडअलोन चेसिस और स्टैंडअलोन फ्रेम वाहन निर्माण का उपयोग एसयूवी, पिकअप ट्रक और भारी वाहनों के निर्माण में किया जाता है.
चेसिस और फ्रेम में अंतर:
आप सोच रहे होंगे कि क्या कार चेसिस और कार फ्रेम एक ही चीज़ हैं क्योंकि इनका इस्तेमाल कार के समान कंपोनेंट्स को परिभाषित करने के लिए किया जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है. चेसिस "स्केलटन" का वह हिस्सा है जो कार का भार उठाता है और उसका भार वहन करता है. दूसरी ओर फ्रेम (Frame) कार का बाकी हिस्सा है जो चेसिस पर फिट किया जाता है. आप इसे अपने शरीर की त्वचा और मांसपेशियों की तरह समझ सकते हैं.
कितने तरह का चेसिस:
आमतौर पर कार चेसिस कई तरह के होते हैं. जिनमें से सभी की अपनी अलग उपयोगिता और महत्व होता है. इन्हें वाहनों को उनके विशेष उद्देश्य के अनुसार ही तैयार किया जाता है. जैसे कि रेसिंग कारों में ट्यूबलर फ्रेम होते हैं, जबकि यात्री कारें (जैसे कि आप रेगुलर यूज में चला रहे होते हैं) वो यूनिबॉडी या मोनोकोक फ्रेम के साथ आती हैं. तो आइये जानें चेसिस के प्रकार-

1. बैकबोन (Backbone)
बैकबोन कार चेसिस फ्रेम एक बैकबोन (रीढ़ की हड्डी) की तरह दिखता है और पूरे वाहन को एक साथ रखता है. यह एक एच-शेप (H-Shape) का फ्रेम होता है जिसमें एक ट्यूब दिया जाता है जो फ्रेम के दोनों सिरों को एक साथ जोड़ने का काम करता है. इसका ठोस कंस्ट्रक्शन किसी भी वाहन को बेहतर ग्राउंड क्लीयरेंस देता है. बैकबोन चेसिस वाला वाहन ऑफ-रोडिंग और ट्रक जैसे भारी उपयोग के लिए आइडियल माना जाता है.
हालांकि, बैकबोन चेसिस की एक बड़ी कमी भी है. यह साइड इम्पैक्ट यानी कि साइड से होने वाले टकराव को बहुत अच्छी तरह से नहीं झेल पाता है. बैकबोन फ्रेम की एक विशेषता यह है कि यह ड्राइव शाफ्ट के कमजोर कंपोनेंट्स को मोटी ट्यूबों के चलते सुरक्षित रखता है. यह वाहन को ऊबड़-खाबड़ और खराब रास्तों के लिए बेहतरीन बनाता है.

2. लैडर फ्रेम: (Ladder Frame)
लैडर-फ्रेम चेसिस सबसे पुराने चेसिस प्रकारों में से एक है. इसका नाम भी इसके डिज़ाइन के आधार पर ही रख गया है. इसका डिज़ाइन काफी हद तक किसी सीढ़ी की तरह होता है. यानी कि इसमें दो लंबे फ्रेम या बीम (वर्टिकल) के बीच में कई छोटे-छोट (हॉरिजॉन्टल) बीम लगाए जाते हैं. चूंकि इनका प्रोडक्शन आसाना था ता पुराने दौर में ये फ्रेम काफी लोकप्रिय हुआ और बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन भी हुआ.
चूंकि लैडर फ्रेम चेसिस काफी भारी होता है, इसलिए इसका इस्तेमाल आमतौर पर उन वाहनों के लिए किया जाता है जो भारी माल वहन करने का काम करते हैं, जैसे बस, ट्रक इत्यादि. इसके अलावा ये आजकल की एसयूवी कारों में भी खूब इस्तेमाल किया जाता है, ख़ासतौर पर ऑफरोडिंग व्हीकल्स में. वजन में हैवी होने के नाते इसका असर वाहनों के माइलेज पर भी पड़ता है. इस तरह के फ्रेम वाली कारों की फ्यूल एफिशिएंसी आमतौर पर कम होती है.

3. यूनिबॉडी या मोनोकोक: (Monocoque)
जैसा कि हमने पहले बताया, आजकल के पैसेंजर कारों में यूनिबॉडी फ्रेम या मोनोकोक फ्रेम का उपयोग किया जाता है. इस प्रकार के चेसिस फ्रेम में, कार की बॉडी और फ्रेम को एक साथ मिलाकर एक सिंगल यूनिट बनाया जाता है. कार के कुछ बॉडीवर्क को यूनिबॉडी कंस्ट्रक्शन में शामिल किया जा सकता है. यदि आप गौर करें तो पैनल, रूफ, दरवाज़ों के किनारे और कार के फर्श जैसे हिस्से यूनिबॉडी स्ट्रक्चर में मिल सकते हैं.
बॉडी-ऑन-फ़्रेम तकनीक की तुलना में यूनिबॉडी फ़्रेम के लोकप्रिय होने का एक कारण यह है कि यह वजन में हल्का होता है. वजन में हल्का और बेहतर एयरोडायनमिकी के चलते इससे न केवल ड्राइविंग शानदार होती है बल्कि फ्यूल एफिशिएंसी (माइलेज) पर भी सकारात्म असर देखा जाता है. भले ही यूनिबॉडी फ़्रेम हल्के होते हैं, लेकिन इसकी मजबूती में कोई कमी नहीं होती है.
चूँकि बॉडी-ऑन-फ़्रेम स्ट्रक्चर में चेसिस और फ़्रेम दोनों अलग-अलग होते हैं. इसलिए ड्राइविंग करते समय यह बहुत ज़्यादा शोर करते हैं. आपको पुराने वाहनों में शोर की शिकायत मिल सकती है. वहीं मोनोकोक फ़्रेम को साइलेंट माना जाता है और आपको एक सहज ड्राइविंग एक्सपीरिएंस देते हैं. इसका फ्रेमवर्क कॉम्पैक्ट होता है तो कार के भीतर बेहतर केबिन स्पेस भी मिलता है. जिसका इस्तेमाल सीटिंग अरेंजमेंट और अन्य स्टोरेज स्पेश के तौर पर किया जाता है.

4. ट्यूबलर फ्रेम: (Tubular Frame)
ट्यूबलर फ्रेम में मूलरूप से खोखले ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है. जो से हल्के फ्रेम की बॉडी बनाते हैं. इसे विशेष रूप से रेस कार और स्पोर्ट्स कार जैसे परफॉर्मेंस व्हीकल में इस्तेमाल किया जाता है. वजन में हल्का होने के साथ-साथ इनकी एयरोडायनमिकी (Aerodynamic) बेहतर होती है जो वाहन को हवा को चीरते हुए तेज गति से आगे बढ़ने में मदद करता है. एक ट्यूबलर चेसिस हल्के एल्यूमीनियम या स्पेशल स्टील से बना होता है.
ट्यूबलर फ्रेम हल्का होता है, लेकिन मजबूती से समझौता नहीं करता है. इसे इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि, ये किसी भी तरह के इम्पैक्ट को आसानी से झेलते हुए झटके को पूरे फ्रेम में वितरित (डिस्ट्रीब्यूट) कर सके. जिससे फोर्स बंट जाता है और यात्री को एक सुरक्षित फ्रेम मिलता है. बड़े एक्सीडेंट्स में भी ये कारगर साबित होता है. बता दें कि, ट्यूबलर चेसिस आमतौर पर महंगे होते हैं और ट्यूबों का एक ख़ास सिस्टम बनाने के लिए स्पेश वेल्डिंग टेक्नोलॉजी की आवश्यकता होती है. इस तरह के फ्रेम का इस्तेमाल विशेष तौर पर रेसिंग कारों में किया जाता है, जिनका निर्माण कंपनियां स्क्रैच से करती हैं. क्योंकि ये फ्रेम शुरुआत से ही बॉडी के अनुरूप तैयार किए जाते हैं.
भारत की कुछ चुनिंदा कारें और उनके चेसिस फ्रेम:
| कार मॉडल | चेसिस फ्रेम टाइप |
| टाटा टियागो | मोनोकॉक |
| मारुति वैगन आर | मोनोकॉक |
| महिंद्रा थार | लैडर फ्रेम |
| महिंद्रा स्कॉर्पियो | लैडर फ्रेम |
| टोयोटा फॉर्च्यूनर | लैडर फ्रेम |
| फोर्स गुरखा | लैडर फ्रेम |
| मारुति स्विफ्ट | मोनोकॉक |
| टाटा अल्ट्रोज़ | मोनोकॉक |
| हुंडई i20 | मोनोकॉक |
कार के चेसिस का मजबूत होना बेहतर जरूरी होता है. किसी भी आपात स्थिति में ये फ्रेम ही वाहन पर लगने वाले एक्स्ट्रा फोर्स को झेलता है. यदि इसमें फोर्स को डिस्ट्रीब्यूट करने का गुण है तो ये बड़े झटके को भी आसानी से झेल सकता है. आज कल इंडियन मार्केट में आने वाली ज्यादातर पैसेंजर कारों में मोनोकॉक फ्रेम का इस्तेमाल किया जा रहा है. वहीं हैवी बॉडी और ऑफरोडिंग व्हीकल्स में लैडर फ्रेम देखने को मिलता है.