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बीतेगा साल... लागू होगा ये नया नियम और खत्म हो सकता है इन गाड़ियों का सफर! जानिए क्या है वजह

रियल ड्राइविंग इमिशन को आगामी 1 अप्रैल 2023 से लागू किए जाने की योजना है. ये साल 2020 में बीएस6 उत्सर्जन (BS6 Emission) मानक का ही दूसरा चरण है. वाहनों को नए RDE मानकों के अनुरूप तैयार करने के लिए इनमें ऑनबोर्ड सेल्फ-डायग्नोस्टिक डिवाइस दिए जाएंगे.

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प्रतिकात्मक तस्वीर: Hyundai i20
प्रतिकात्मक तस्वीर: Hyundai i20

नए साल की सरहद पर खड़े हैं हम लोग, चंद रोज बीतेंगे और खत्म हो जाएगा ये साल भी. खैर साल 2022 ऑटो सेक्टर के लिए काफी मुफीद रहा, कोरोना महामारी से उबरते हुए ऑटो सेक्टर एक बार फिर से पटरी पर दौड़ पड़ा है. लेकिन इस बीतते साल के साथ ही बाजार में मौजूदा कुछ वाहनों के रफ़्तार भी थमने का अंदेशा है. मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो रियल ड्राइविंग इमिशन (RDE) के नियमों के चलते अगले साल अप्रैल महीने के शुरू होते ही तकरीबन 17 मॉडलों को डिस्कंटीन्यू किया जा सकता है. यानी कि इन वाहनों की बिक्री रोकी जा सकती है. 

साल 2020 में बीएस6 उत्सर्जन (BS6 Emission) मानक के सफलता पूर्वक लागू होने के बाद सरकार नए रियल ड्राइविंग इमिशन (RDE) नॉर्म्स को आगामी 1 अप्रैल 2022 से लागू करने की तैयारी में है. आरडीई नॉर्म्स मूल रूप से भारत में पहले से लागू बीएस 6 नॉर्म्स का दूसरा चरण है. RDE को पहली बार यूरोप में  लागू किया गया था. इस नए नियम के तहत वाहन निर्माता कंपनियों को वास्तविक परिस्थितियों में उत्सर्जन मानकों को पूरा करने की आवश्यकता होगी. RDE के रोलआउट होने के बाद भारतीय ऑटो सेक्टर पर गहरा प्रभाव देखने को मिलेगा. 

क्या है रियल ड्राइविंग इमिशन (RDE):

आरडीई के लिए आवश्यक है कि वाहनों में रीयल-टाइम ड्राइविंग उत्सर्जन स्तरों की निगरानी के लिए ऑनबोर्ड सेल्फ-डायग्नोस्टिक डिवाइस दिए गए हों। उत्सर्जन पर कड़ी नजर रखने और उत्सर्जन मानकों को पूरा करने के लिए ये डिवाइस उत्प्रेरक (Catalytic) कनवर्टर और ऑक्सीजन सेंसर जैसे प्रमुख हिस्सों की लगातार निगरानी करेगा. दरअसल, RDE रियल लाइफ में वाहनों द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले NOx जैसे प्रदूषकों को मापता है, जिसके परिणामस्वरूप बेहतर अनुपालन होता है. इसे भारत में BS-VI उत्सर्जन मानदंडों के सेकेंड फेज़ के रूप में देखा जा रहा है जिसका पहला चरण 2020 में शुरू हुआ था.

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यहां तक ​​कि वाहनों में इस्तेमाल किए जाने वाले सेमीकंडक्टर को भी थ्रॉटल, क्रैंकशाफ्ट की स्थिति, एयर इंटेक प्रेशर, इंजन के तापमान और उत्सर्जन के दौरान बाहर निमलने वाले मैटीरियल (पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन ऑक्साइड, CO2, सल्फर), आदि की निगरानी के लिए अपग्रेड करना होगा. इसके अलावा, वाहनों में प्रोग्रॉम्ड फ्यूल इंजेक्टर को भी शामिल किए जाने होंगे. 

इस नियम के तहत वाहनों को पूरी तरह से तैयार करने के लिए कंपनियों को कारों के इंजन को अपग्रेड करना होगा. ये बदलाव इतने आसान भी नहीं है, और इसका सीधा असर वाहनों के निर्माण पर पड़ने वाले खर्च पर भी देखने को मिलेगा, इसलिए संभव है कि नए उत्सर्जन मानकों के तहत तैयार होने के वाले वाहनों की कीमत में इजाफा भी देखने को मिले. मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी खबरें आ रही हैं कि, संभव है कि वाहन निर्माता कंपनियां अपने कुछ मॉडलों को डिस्कंटीन्यू कर दें, फिलहाल रिपोर्ट्स में 17 कारों का जिक्र किया जा रहा है. 

ये गाड़ियां हो सकती हैं डिस्कंटीन्यू: 

  • टाटा अल्ट्रॉज डीजल
  • महिंद्रा मराज़ो
  • महिंद्रा अल्टुरस जी4
  • महिंद्रा केयूवी100
  • स्कोडा ऑक्टेविया
  • स्कोडा सुपर्ब
  • रेनो क्विड 800
  • निसान किक्स
  • मारुति सुजुकी ऑल्टो 800
  • टोयोटा इनोवा क्रिस्टा पेट्रोल
  • हुंडई i20 डीजल
  • हुंडई वेरना डीजल
  • होंडा सिटी डीजल
  • होंडा अमेज डीजल
  • होंडा जैज
  • होंडा डब्ल्यूआर-वी

     

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