एक था वीरा. नाम के ही मुताबिक बहुत बहादुर और जांबाज. कहते हैं कि वीरा को भगवान ने वीरता दी तो उसके ही जोड़ की एक कन्या भी रची. इसका नाम रखा धीरा. धरती जैसे धैर्य वाली धीरा के कानों तक वीरा की वीरता के चर्चे पहुंचे और वीरा भी धीरा की खूबसूरती की कहानियां सुनता रहता था. दोनों ने एक-दूसरे को देखा भी नहीं था, लेकिन मन ही मन दोनों आपस में एक-दूसरे को चाहने लगे थे.
फिर एक दिन दोनों मिले और दोनों एक साथ रहने लगे. जैसा कि हर प्रेम कहानी में होता आया है कि एक खलनायक जरूर होता है तो यहां उस भूमिका में था डाकू कालिया. कालिया को धीरा का वीरा के साथ रहना रास नहीं आया. एक दिन उसने धोखे से वीरा पर हमला कर दिया. वीरा बहादुरी से लड़ा, लेकिन बहुत घायल होने जाने के कारण और कालिया के धोखे के कारण उसके आगे टिक न सका और अपनी आखिरी सांसे गिनने लगा.
उसकी चीखें धीरा तक पहुंची तो वह भागकर वहां पहुंची, जहां ये लड़ाई हो रही थी. कालिया ने दम तोड़ते वीरा के सामने से धीरा को हाथ पकड़कर खींचना चाहा, लेकिन धीरा ने कालिया को धक्का देकर गिरा दिया और दौड़कर अपने वीरा से लिपट गई. कालिया ये देखकर जोर-जोर से हंसने लगा और चिल्लाते हुए बोला- ओ धीरा- अब तो वीरा मरने को है, अब तुझे मेरी होने से कोई नहीं रोक सकता.
ये सुनकर न जाने धीरा को क्या हुआ कि उसने वीरा के सीने से बहते लहू को हाथ में मिला और उससे अपने माथे को रंग लिया. फिर कालिया की ओर देखकर चीखी- तू चाहे जितनी कोशिश कर ले, लेकिन मैं केवल वीरा की थी, वीरा की हूं और वीरा की रहूंगी. धीरा की इस बात में और वीरा के लहू से रंगे उसके माथे में न जाए क्या जादू था कि कालिया से कुछ कहते न बना और वह लौट गया. इधर वीरा और धीरा ने एक-दूसरे की बांहों में जान दे दी. धीरा-वीरा नहीं रहे, लेकिन धीरा के माथे पर लगा वीरा का लहू आज भी चमक रहा है.
इस बारे में नहीं कहा जा सकता है कि ये कहानी कितनी पुरानी है, कब की है और किस दौर में सामने आई? लेकिन भारतीय समाज में विवाहित महिलाएं सिंदूर क्यों लगाती हैं, इस सवाल का जवाब इस लोककथा से भी दिया जाता है, जो उत्तर भारत की व्रती महिलाओं के बीच खासी प्रचलित है. नई-नवेली शादी करके आई दुल्हनों के हाथ में सिंधोरा (एक पात्र, जिसमें सिंदूर रखा जाता है) देते हुए उनकी सास या कोई बड़ी-बूढ़ी जब इसका महत्व बताती हैं, तो इसी कहानी को सुनाकर सिंदूर की महिमा का बखान करती हैं.

सुहाग की निशानी और पति की लंबी उम्र का प्रतीक
वह बताती हैं कि कैसे सिंदूर उनके सुहाग यानी पति की निशानी है और यह उनकी लंबी उम्र का भी प्रतीक है. सिंदूर की बात इसलिए, क्योंकि मंगलवार-बुधवार की दरम्यानी रात तीनों सेनाओं ने मिलकर ज्वाइंट 'ऑपरेशन सिंदूर' को अंजाम दिया और इसके जरिए आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है. यह कार्रवाई 22 अप्रैल 2025 को हुए पहलगाम हमले का बदला है, जिसमें आतंकियों ने कायराना हरकत करते हुए 26 हिंदू पुरुषों की हत्या कर दी थी. आतंकियों ने धर्म पूछ कर यह हमला किया था, सिर्फ पुरुषों को निशाना बनाया था, साथ ही महिलाओं से कहा था कि जाओ, अपनी सरकार को बता देना...
सिंदूर उजाड़ने का करारा जवाब ऑपरेशन सिंदूर
इस हमले में मारे गए जो भी पुरुष थे, उनमें से कई की नई-नई शादी हुई थी. महिलाओं के सामने ही उनके सुहाग और सिंदूर उजाड़ दिए गए थे, लिहाजा आतंकियों से बदला लेने के लिए जो ऑपरेशन चलाया गया, उसे ऑपरेशन सिंदूर नाम दिया गया. ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह एक संदेश है कि सिंदूर उजाड़ने वालों को करारा जवाब मिलेगा.
सिंदूर का धार्मिक और पौराणिक महत्व
भारतीय समाज में सिंदूर का धार्मिक और पौराणिक महत्व है. इसका लाल रंग, इसे देवत्व से जोड़ता है और शुभता का प्रतीक बनता है, इसलिए हिंदू विवाह में सिंदूर का महत्व सबसे अधिक है. वैवाहिक रस्मों में सिंदूर दान का भी एक जरूरी रिवाज शामिल है, जिसमें भावी पति, अपनी भावी पत्नी की मांग में सिंदूर भरता है और इसके बाद मंगलसूत्र पहनाकर विवाह संपन्न होता है. इस रस्म के बाद विवाहित स्त्री को हर रोज अपनी मांग में सिंदूर लगाना होता है और यह उसकी रोजाना की दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है.
देवी पार्वती का आशीर्वाद है सिंदूर
कई पौराणिक कथाओं में सिंदूर महत्वपूर्ण किरदार की तरह शामिल होता है. जैसे रामायण में, सीता माता अपनी मांग में सिंदूर लगाती थीं, जिसे हनुमान ने देखा और इसे भगवान राम की दीर्घायु के लिए महत्वपूर्ण माना. स्कंद पुराण में, देवी पार्वती को भी सिंदूर लगाते हुए दर्शाया गया है, जो वैवाहिक प्रेम और भक्ति का प्रतीक है. महिलाएं देवी पार्वती के चरण से सिंदूर लेकर उसे आशीर्वाद के तौर पर अपनी मांग में लगाती हैं.
इसे थोड़ा और गहराई से देखें तो पता चलता है कि वेदों में सिंदूर का सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन ऋग्वेद (10.85) और अथर्ववेद (14.1) में जिस तरह के विवाह की रस्मों का वर्णन है, उनमें स्त्री शृंगार में लाल रंग शामिल है. यह अप्रत्यक्ष रूप से सिंदूर से जुड़ा हो सकता है, हालांकि पुराणों में स्पष्ट रूप से कई जगहों पर सिंदूर का विस्तार से वर्णन मिलता है.
भारतीय परंपरा और विरासत में शामिल है सिंदूर
असल में, सिंदूर, जिसे कुमकुम या सिंदुर भी कहा जाता है, एक चमकदार लाल पाउडर है जो भारतीय संस्कृति, विशेष रूप से हिंदू धार्मिक और सामाजिक परंपराओं में गहराई से निहित है. यह विवाहित महिलाओं द्वारा अपनी मांग (बालों के बीच) में लगाया जाता है और विवाह, शुभता, और स्त्री ऊर्जा का प्रतीक है. इसका महत्व हजारों वर्षों से चला आ रहा है और यह पौराणिक कथाओं, धार्मिक ग्रंथों, और सामाजिक मानदंडों में निहित है, जिससे यह भारतीय विरासत को समझने का एक रोचक विषय बन जाता है.

हड़प्पा सभ्यता में भी मिलते हैं सिंदूर के चिह्न
सिंदूर की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. पुरातात्विक साक्ष्य, जैसे हड़प्पा सभ्यता (लगभग 5000 ईसा पूर्व) से मिले महिला मूर्तियों पर लाल रंग से भरे बालों के विभाजन, इसकी प्राचीनता को दर्शाते हैं. ऐतिहासिक रूप से, सिंदूर हल्दी, फिटकिरी, या चूने से बनाया जाता था, जो समय के साथ शुद्ध सिंदूर (वर्मिलियन) में विकसित हुआ. सिंदूर की परंपरा न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, जैसे बंगाल में नवरात्रि के दौरान "सिंदूर खेला" रस्म, जहां महिलाएं एक-दूसरे पर सिंदूर लगाती हैं, जो नारी शक्ति और चेतना का प्रतीक है.
रामकथा में भी शामिल है सिंदूर
राम कथा में मां सीता के सिंदूर से मांग भरने का स्पष्ट रूप से उल्लेख आता है. कहा जाता है कि मां सीता रोज श्रृंगार करते समय मांग में सिंदूर भरती थीं. एक दिन हनुमान जी ने माता सीता से पूछा कि आप प्रतिदिन सिंदूर क्यों लगाती हैं? तब सीताजी ने कहा था कि, सिंदूर लगाने से भगवान राम प्रसन्न होते हैं और प्रसन्न रहने से शरीर स्वस्थ रहता है और शरीर के स्वस्थ रहने से आयु बढ़ती है. हिंदू धर्म की मानें तो अगर पत्नी बीच मांग में सिंदूर भरती है तो उसके पति की अकाल मृत्यु नहीं होती.
हनुमान जी को क्यों चढ़ाते हैं सिंदूरी चोला?
अब हनुमान जी ठहरे रामभक्त और बात श्रीराम के जीवन से जुड़ी हो तो वो पीछे कैसे रहें? तो हनुमान जी ने क्या कि उन्होंने पूरे शरीर में सिंदूर ही सिंदूर मल लिया. इसी रूप में वह उस दिन दरबार पहुंचे. श्रीराम उन्हें देखकर बहुत हंसे, फिर पूछा कि हनुमान ये आपने क्यों किया? तब हनुमान जी ने कहा, कि माता के एक चुटकी सिंदूर से आप प्रसन्न होते हैं और आपकी आयु बढ़ती है तो मैंने पूरे शरीर में सिंदूर लगा लिया. ये सुनकर श्रीराम बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने हनुमान जी को सदा अपनी भक्ति का वरदान दिया. इसीलिए हनुमान जी को सिंदूर का चोला चढ़ाए जाने का चलन है.
नवरात्र और दीपावली में सिंदूर का महत्व
सिंदूर को महिलाएं बीच मांग से लगाती हैं, बीच मांग का मतलब है, पूरा भरा हुआ सिंदूर...ना एक चुटकी और ना बालों से छिपाया हुआ. कहा जाता है कि सिंदूर, पति को हर मुसीबत से बचाता है. इतना ही नहीं अगर नवरात्र और दीवाली जैसे त्योहार के दिन पति अपनी पत्नी की मांग में सिंदूर लगाता है तो यह काफी शुभ माना जाता है. ऐसा करने से पती-पत्नी का रिश्ता भी मजबूत होता है. दीपावली की बात हुई है तो बता दें कि सिंदूर सौभाग्य का प्रतीक है और सौभाग्य का दूसरा नाम लक्ष्मी ही है. इसलिए देवी लक्ष्मी की भी कृपा सिंदूर से मिल जाती है. देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए हल्दी में चूना मिलाकर बनाया गया कुंकुम लगाया जाता है, जो कि बहुत गाढ़ा लाल होता है. इसका गाढ़ा रंग गहरे दांपत्य की निशानी है.

विजय तिलक भी है सिंदूर
सिंदूर सिर्फ प्रेम और दांपत्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विजय का प्रतीक भी है. इतिहास गवाह है कि योद्धाओं को युद्ध में भेजने और विदा करने से पहले माताएं या पत्नियां उन्हें विजय तिलक करती थीं, उनकी आरती उतारती थीं और उन पर हल्दी-चावल वारती थीं. ऐसा करके पत्नियां उन्हें देवी दुर्गा के विजय मंत्र से सुरक्षित करती थीं, जो कि लाल रंग में समाई होती हैं. कई योद्धाओं का तिलक खून से भी किया जाता था.
जब द्रौपदी ने लहू से बाल धोए और लगाया सिंदूर
महाभारत में अपनी चीरहरण से खिन्न द्रौपदी जब अपने बाल खोलने का प्रण लेती है तो इस दौरान वह अपने माथे का सिंदूर भी पोंछने वाली होती है, लेकिन ऐन मौके पर गांधारी और कुंती उसका हाथ पकड़ लेती हैं और कहती हैं कि ऐसा मत करना द्रौपदी, वरना ये पूरा कुरुवंश समाप्त हो जाएगा. तब द्रौपदी दूसरा वचन लेती है कि 'जब तक दुशासन की छाती के लहू से अपने बाल नहीं धो लूंगीं, तब तक अपने केश नहीं सजाऊंगी.' इसके बाद जब महाभारत युद्ध हुआ तो भीम ने दुशासन की छाती चीरी और उसका लहू लाकर द्रौपदी को दिया. द्रौपदी ने इस खून से अपने बाल धोए, फिर अपने केश सजाकर अपनी मांग भरी.
पहलगाम हमले का जवाब 'ऑपरेशन सिंदूर'
पहलगाम हमले में आतंकियों ने दहशत का संदेश देने के लिए महिलाओं के सामने उनके पतियों की हत्या की थी और इस तरह से उनकी मांग सूनी कर दी थी. आज 15 दिन बाद, जब ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च हुआ तो ये समझिए कि इसका 'सिंदूर' नाम कितना सटीक है. यह उस सिंदूर का बदला है जो नई नवेली ब्याहताओं के माथे से पोंछ दिया गया था. ये उसी सिंदूर का बदला है, जिसे आतंक ने उजाड़ दिया था. ये उसी सिंदूर का बदला है, जिसे सुहाग के खून से धोने की कोशिश की गई थी. ऑपरेशन सिंदूर पहलगाम हमले में मारे गए उन 26 लोगों को सच्ची श्रद्धांजलि है, जो आतंक की कायराना हरकत का शिकार बने थे. ऑपरेशन सिंदूर उन सभी सिसकियों और बहते हुए आंसुओं को पोछने का जरिया है, जो सिसकियां 15 दिनों से बंद नहीं हुई थीं और जो आंसू बह-बहकर गालों पर सूखी रेखा बना चुके थे.