राजस्थान की तप्त धरती से समय-समय पर प्रेम, विश्वास और आस्था का ऐसा सोता फूटा है कि उसके मीठे जल से संसार आज तक अपनी आत्मा की प्यास बुझा रहा है. पुष्टिमार्गी संत कवियों की भूमि, श्रीकृष्ण के गिरधारी स्वरूप की पूजा स्थली और जहां एक तरफ राजपूतों ने रणचंडी के चरणों में रक्त से अभिषेक किया तो वहीं इसी भूमि पर सारे संसार में राधा-कृष्ण को देखने वाले भी जन्में. इन्हीं में से एक रहीं मीरा. राजपूतों में ही जन्मीं, रजवाड़े में पली बढ़ीं और क्षत्रियों के घर ब्याही गई इस भक्त हृदय मीरा ने बचपन में ही जब श्रीकृष्ण के एक बार अपना मान लिया तो मान लिया. फिर वह उनके प्रेम से डिगी नहीं, और अंत में उनके ही भीतर समा गईं.
मीरा की भावपूर्ण गाथा
मीरा की इसी भावपूर्ण गाथा को श्रीराम भारतीय कला केंद्र ने अपने ‘केंद्र डांस फेस्टिवल 2025’ के जरिए मंच पर उकेरा. बीते रविवार कमानी ऑडिटोरियम मीरा की इस अतुलनीय गाथा का साक्षी बना जहां नृत्य-नाटिका ‘मीरा’ में उनके जीवन दर्शन की झलकियां दिखाई दीं. श्रीराम भारतीय कला केंद्र राजधानी के संस्कृति प्रेमियों के लिए एक बहुप्रतीक्षित वार्षिक आयोजन है, जिसमें वह ऐसी ही अन्य गाथाओं की भावभीनी प्रस्तुतियां देते हैं. पद्मश्री शोभा दीपक सिंह के विचारों की उपज और उनके निर्देशन में नृत्यांगना मोलिना सिंह ने 'मीरा' के केंद्रीय पात्र को मंच पर जीवंत कर दिया.
इस नृत्य-नाटिका का निर्देशन पद्मश्री शोभा दीपक सिंह (निदेशक, श्रीराम भारतीय कला केंद्र), ने किया. शशिधरन नायर की कोरियोग्राफी, शुभा मुद्गल की मधुर संगीतमय रचनाएं, शानदार वेशभूषा के साथ लाइट और साउंड के स्पेशल इफेक्ट ने ऐसा दृश्य रचा कि मीरा का पूरा जीवन चरित्र हमारे आस-पास ही घटता नजर आया.

मीरा की भक्ति के साक्षी बने दर्शक
यह नृत्य-नाटिका कृष्ण भक्त मीरा के जीवन, भक्ति और बलिदान पर आधारित थी. मीरा की कठिनाइयों को कलात्मक रूप से समृद्ध प्रस्तुति में पेश करते हुए, केंद्र ने प्रोडक्शन मूल्यों में यथासंभव प्रामाणिकता बनाए रखने का प्रयास किया है. कोरियोग्राफी राजस्थानी नृत्य संस्कृति पर आधारित है और समय बीतने के साथ मीरा की छवि को हमारी अंतरमन में और भी प्रभावी करती जाती है.
पद्मश्री शोभा दीपक सिंह कहती हैं, 'मीरा' वो चरित्र है जिसकी कल्पना आप कृष्ण से परे होकर कर ही नहीं सकते, खुद मीरा ने भी खुद की कल्पना इस रूप में कभी नहीं की. हमारी मीरा दुखियारी नहीं है, वह आंसू नहीं बहाती, कष्टों का रोना नहीं रोती. वह सशक्त है और उसके जीवन में दृढ़ निश्चय की जगह सबसे बड़ी है.
फिर वह उन परवाहों से परे हो चुकी है जो उसे समाज में बांधते हैं और अपने कृष्ण से दूर करते हैं. वह तानें सुन लेती हैं. विष पी लेती है. कठिन परिस्थितियों को पार कर जाती है लेकिन हंसती है-मुस्कुराती है और कृष्ण के गुण गाती है.
वह बहुत खुश है और कह रही है,
'स्याम ने चाकर राखो जी,
चाकर राहसूं बाग लगासूं,
नित उठ दरसन पाऊं,
वृंदावन की कुंज गलिन में
तेरी लीला गाऊं.'
विष दिए जाने पर कहती है कि, '
विष का प्याला राणा जी ने भेज्यो, पीवत मीरा हासी रहे,
लोक कहे मीरा भई बावरी, सास कहे कुलनासी रे.'
मीरा नवधा भक्ति की सुंदर उदाहरण है. यह वही भक्ति है जिसका ज्ञान श्रीराम ने शबरी को दिया था. इसमें न तपस्या चाहिए, न योग न साधना. केवल अपने दैनिक कार्यों के साथ हरिगुण गाते जाना है. ईश्वर का स्मरण करते रहना ही असली तपस्या है.
साहस की अद्भुत मूर्ति है मीरा
मीरा की महिमा उनकी कविताओं के माध्यम से उनके जीवन में आई उथल-पुथल को व्यक्त करने की क्षमता में निहित है. उनका जीवन अधिकांश महिलाओं के लिए एक रूपक प्रतीत होता है, जहाँ सदियों बाद भी मीरा का नाम जीवित है. मीरा जहां भी गईं, उन्होंने अपनी कविताओं की जीवंतता के जरिए मुक्ति का संदेश फैलाया और आंतरिक जागृति का आह्वान किया. मीरा मुक्त हो गई और जब इस मुक्ति के बाद पर्दा गिरा तो कुछ देर तक तो सभागार सुन्न सा पड़ा रहा. मीरा ने ऐसा असर डाला कि प्रस्तुति के बाद कमानी ऑडिटोरियम काफी देर तक तालियों की आवाज से गूंजता रहा.

मोलिना सिंह और अनुशुआ चौधरी मीरा की केंद्रीय भूमिका में दिखीं. राजकुमार शर्मा साधु के किरादर में नजर आए. शिवम साहनी ने मंच पर श्रीकृष्ण का अवतार लिया. विशाल निर्माण राणा बने नजर आए और स्वप्न मजूमदार राणा भोज के किरदार में दिखे.