40 हजार सैनिक, अब तक का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास... चीन को चेतावनी दे रहे भारत समेत 19 देश!

तलिस्मान सेबर युद्ध अभ्यास में भारत की भागीदारी चीन को साफ संदेश देती है कि अगर उसने भारत की सरहदों के अलावा हिंद-प्रशांत में अपनी आक्रामक हरकतों को जारी रखा, तो एक मजबूत, एकजुट और तकनीकी तौर पर तेज गठबंधन उसे जवाब देने के लिए तैयार है.

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चीन को 19 देशों का कड़ा संदेश (Photo: AP) चीन को 19 देशों का कड़ा संदेश (Photo: AP)

आजतक ब्यूरो

  • नई दिल्ली,
  • 16 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 6:36 PM IST

मौजूदा वक्त में दुनिया के कुछ देशों के बीच तनातनी है, तो वहीं कुछ देशों के बीच जंग जैसे हालात हैं. वहीं, दूसरी तरफ 19 देश एकजुट होकर चीन को चेतावनी दे रहे हैं कि वह दबंग बनने से पहले उनका पराक्रम देख ले. हम बात कर रहे हैं तलिस्मान सेबर 2025 की, जो ऐसा भीषण युद्धा अभ्यास है जिसकी गर्जना इस वक्त ऑस्ट्रेलिया के साथ पापुआ न्यू गिनी के आसपास के समुद्री इलाकों में सुनी जा सकती है. इसमें भारत सहित 19 देश हिस्सा ले रहे हैं. पहली बार भारत ने तलिस्मान सेबर युद्धा अभ्यास में हिस्सा लेने का फैसला किया है. 

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इसकी शुरुआत साल 2005 में हुई थी, जो एक साल में दो बार होता है और मुख्य रूप से यह अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच होने वाला द्विपक्षीय युद्धा अभ्यास है.

भारत के शामिल होने के क्या मायने?

युद्ध अभ्यास में भारत की भागीदारी चीन को साफ संदेश देती है कि अगर उसने भारत की सरहदों के अलावा हिंद-प्रशांत में अपनी आक्रामक हरकतों को जारी रखा, तो एक मजबूत, एकजुट और तकनीकी तौर पर तेज गठबंधन उसे जवाब देने के लिए तैयार है. 35 से 40 हजार सैनिकों के साथ इस बार शुरू हुआ, यह अभ्यास अब तक का सबसे बड़ा युद्धा अभ्यास है. तलिस्मान सेबर का मतलब है, जादुई तलवार. इस तरह यह चीन को चौंकाने वाली जादुई ताकत है, जिससे उसे आगाह किया जा रहा है.

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चीन के दबदबे वाले इलाके में युद्धा अभ्यास

यह युद्धाभ्यास ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में हो रहा है और पहली बार ऑस्ट्रेलिया से बाहर पापुआ न्यू गिनी में भी हो रहा है. इसका दायरा कोरल सागर और दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में उस हिस्से में है, जहां चीन का दखल लगातार बढ़ रहा है. भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण पूर्व एशिया से लेकर साउथ पैसिफिक के द्वीपीय देशों तक, सभी इसमें शामिल हैं. इसका मैसेज साफ है, नियम आधारित समुद्री व्यवस्था और संप्रभुता की रक्षा करना.

चीन की विस्तारवादी नजरें

चीन अक्सर इन देशों के द्वीपों पर दावा करता है. दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया और ब्रुनेई के इलाके हों या फिर सोलोमन आइलैंड्स और पापुआ न्यू गिनी जैसे छोटे देश, हर जगह उसकी विस्तारवादी नजरें गड़ी हैं. लेकिन इस युद्धा अभ्यास ने मैसेज दिया है कि हिंद-प्रशांत किसी एक का नहीं बल्कि सभी का है.

हथियारों का प्रदर्शन

19 देशों और 40 हजार सैनिकों के इस युद्धा अभ्यास की धमक चीन कान खोलकर सुन रहा है. ऑस्ट्रेलिया ने पहली बार 400 किलोमीटर की रेंज वाली HIMARS और प्रिसिजन स्ट्राइक मिसाइलों का लाइव-फायर टेस्ट किया. जापान ने Type 3 मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें दागीं. दक्षिण कोरिया ने K-1 टैंक और K9A2 स्व-चालित हॉवित्जर का प्रदर्शन किया. अमेरिकी F-35B लड़ाकू जेट्स ने भी हिस्सा लिया. भारत पहली बार इसमें शामिल होकर चीन को बड़ा संदेश दे रहा है.

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हिंदुस्तान में ऑस्ट्रेलिया के राजदूत फिलिप ग्रीन ने भारत की भागीदारी का स्वागत करते हुए लिखा था कि पहली बार तलिस्मान सेबर युद्धाभ्यास में भारत को हिस्सा लेते देखना गर्व का पल है. यह हिंद-प्रशांत में डिफेंस और सिक्योरिटी की दिशा में बेहद अहम कदम है. ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, भारत सहित 19 देशों का यह युद्धाभ्यास सिर्फ दिखावा नहीं है. यह चीन को एक चेतावनी है कि तमाम देशों के सैनिक और हथियार एक साथ आकर उसके मंसूबों को मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं, खास तौर पर ऐसे  वक्त में जब वह ताइवान पर कब्जा जमाने के लिए ताल ठोक रहा है.

इवेंट के डिप्लोमैटिक संकेत

युद्ध अभ्यास के बीच दिलचस्प बात यह रही कि जिस दिन यह यह शुरू हुआ, उसके अगले ही दिन ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने 16 से 21 जुलाई तक की चीन यात्रा शुरू की. चीन के राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान उन्होंने जो कहा, वह ऐसा इशारा है जिसे समझदार जिनपिंग भी समझ गए होंगे.

चीन के लिए क्या संदेश?

चीन के लिए बेहतर यही होगा कि वह पड़ोसी देशों से रिश्ते बेहतर रखे, नहीं तो ये तमाम देश एकजुट होकर अपनी सामूहिक ताकत से उसे सबक सिखा सकते हैं. चीन ने इस इलाके के कृत्रिम द्वीपों पर सैन्य ठिकाने बना रखे हैं और यह युद्ध अभ्यास उन ठिकानों को तबाह करने की ताकत का प्रदर्शन भी है. युद्ध अभ्यास में शामिल ब्रिगेडियर विल्सन ने कहा कि यह अभ्यास किसी विशेष देश के खिलाफ नहीं है, लेकिन चीन इसे अपने खिलाफ एक रणनीतिक संकेत के रूप में देखेगा. चीन हर बार अपने जासूस जहाज इस इलाके में भेजता है और इस बार भी ऐसा ही करेगा.

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