क्या ब्रिक्स vs वेस्टर्न वर्ल्ड कोल्ड वॉर छिड़ने वाला है... भारत-चीन-ब्राजील को NATO की धमकी का क्या मतलब है?

BRICS और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ता तनाव एक नए शीत युद्ध जैसा दिख सकता है, लेकिन यह पुराने शीत युद्ध से अलग है. यह मुख्य रूप से आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर है, जिसमें टैरिफ और प्रतिबंध हथियार बन रहे हैं. NATO की धमकी भारत, चीन और ब्राजील के लिए आर्थिक जोखिम पैदा करती है.

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ट्रंप के टैरिफ और नाटो महासचिव रूट की धमकी के बाद वैश्विक हालात तनावपूर्ण हो गए है. (Photo: ITG) ट्रंप के टैरिफ और नाटो महासचिव रूट की धमकी के बाद वैश्विक हालात तनावपूर्ण हो गए है. (Photo: ITG)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 16 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 12:25 PM IST

BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) एक ऐसा संगठन है, जो उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को एक मंच देता है. यह समूह अब 10 देशों (मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात सहित) का हो चुका है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में 41% हिस्सेदारी रखता है.

दूसरी ओर, पश्चिमी देशों का नेतृत्व अमेरिका और NATO (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) करता है, जो मुख्य रूप से सैन्य और आर्थिक शक्ति का केंद्र है. हाल ही में, NATO के महासचिव मार्क रूट ने भारत, चीन और ब्राजील को रूस के साथ व्यापार बंद करने की चेतावनी दी, जिसमें 100% टैरिफ (आयात कर) और सेकेंडरी सैंक्शंस (माध्यमिक प्रतिबंध) की धमकी शामिल है.

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यह धमकी क्या है और क्या यह BRICS और पश्चिमी देशों के बीच एक नए शीत युद्ध की शुरुआत है? 

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शीत युद्ध क्या है?

शीत युद्ध (Cold War) का मतलब है दो देशों या समूहों के बीच बिना सीधे युद्ध के तनाव, प्रतिस्पर्धा और आर्थिक-सैन्य दबाव. 1945 से 1991 तक अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चला शीत युद्ध इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. उस समय दोनों पक्षों ने हथियारों की होड़, जासूसी और आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए एक-दूसरे को कमजोर करने की कोशिश की. आज BRICS और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ता तनाव कुछ वैसा ही दिख रहा है, लेकिन यह आर्थिक और भू-राजनीतिक (जियोपॉलिटिकल) मुद्दों पर केंद्रित है.

BRICS और पश्चिमी देशों के बीच तनाव क्यों?

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BRICS का लक्ष्य है वैश्विक दक्षिण (Global South) के देशों को एक मजबूत आवाज देना. पश्चिमी वर्चस्व (जैसे अमेरिकी डॉलर और पश्चिमी संस्थानों) को चुनौती देना. हाल ही में 6-7 जुलाई 2025 को ब्राजील के रियो डी जनेरो में हुए 17वें BRICS समिट में कई अहम फैसले लिए गए, जैसे...

  • अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना: BRICS देश स्थानीय मुद्राओं में व्यापार और एक नई BRICS मुद्रा बनाने की बात कर रहे हैं. इससे अमेरिकी डॉलर की वैश्विक वर्चस्व को चुनौती मिल सकती है.
  • पश्चिमी नीतियों की आलोचना: BRICS ने अमेरिका के टैरिफ और इजरायल-ईरान युद्ध की निंदा की, जिससे अमेरिका और NATO नाराज हुए.
  • वैश्विक दक्षिण की आवाज: BRICS ने संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक जैसे संस्थानों में भारत और ब्राजील की बड़ी भूमिका की मांग की.

इन कदमों से पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका को लगता है कि BRICS उनकी आर्थिक और राजनीतिक शक्ति को कमजोर कर रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS को अमेरिका विरोधी करार देते हुए 10% अतिरिक्त टैरिफ और 100% सेकेंडरी टैरिफ की धमकी दी.

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NATO की धमकी का क्या मतलब है?

NATO के महासचिव मार्क रूट ने 15 जुलाई 2025 को भारत, चीन और ब्राजील को चेतावनी दी कि अगर वे रूस के साथ व्यापार जारी रखेंगे, तो उन्हें भारी आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि बीजिंग, दिल्ली या ब्राजील के राष्ट्रपति, इस पर ध्यान दें, क्योंकि यह आपको बहुत नुकसान पहुंचा सकता है. रूट ने इन देशों से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन करके यूक्रेन के साथ शांति समझौता करने के लिए दबाव डालने को कहा.

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इस धमकी का भारत, चीन और ब्राजील के लिए क्या अर्थ है?

भारत

  • रूस के साथ संबंध: भारत का रूस के साथ पुराना और मजबूत रिश्ता है, खासकर रक्षा और तेल खरीद में. भारत रूस से सस्ता तेल खरीदता है, जो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है.
  • NATO की धमकी का असर: अगर अमेरिका 100% टैरिफ लगाता है, तो भारत के निर्यात (जैसे दवाइयां, कपड़े) को नुकसान होगा. लेकिन भारत ने साफ कहा है कि वह अपनी नीतियों को स्वतंत्र रखेगा. किसी के दबाव में नहीं आएगा.
  • भारत की रणनीति: भारत BRICS में सक्रिय है, लेकिन वह अमेरिका और QUAD (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ भी रिश्ते बनाए रखना चाहता है. भारत और चीन के बीच तनाव भी BRICS की एकजुटता को कमजोर करता है.

चीन

  • रूस का समर्थन: चीन रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. यूक्रेन युद्ध के दौरान उसने रूस को अप्रत्यक्ष समर्थन दिया है.
  • धमकी का असर: अमेरिका के टैरिफ से चीन की अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है, क्योंकि वह अमेरिका को भारी मात्रा में सामान निर्यात करता है. लेकिन चीन BRICS को पश्चिमी वर्चस्व के खिलाफ एक हथियार के रूप में देखता है.
  • चीन की स्थिति: चीन ने NATO की धमकी को खारिज करते हुए कहा कि वह यूक्रेन युद्ध में हथियार नहीं दे रहा और उसका सैन्य विकास सामान्य है.

ब्राजील

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  • स्वतंत्र रुख: ब्राजील के राष्ट्रपति लूला ने BRICS को गुट-निरपेक्ष आंदोलन की तरह पेश किया, जो न तो पश्चिमी देशों के साथ है और न ही उनके खिलाफ.
  • धमकी का असर: ब्राजील को पहले से ही अमेरिका ने 50% टैरिफ की धमकी दी है, क्योंकि उसने पूर्व राष्ट्रपति बोल्सोनारो के खिलाफ मुकदमा चलाया. NATO की धमकी से ब्राजील का तेल और कृषि निर्यात प्रभावित हो सकता है.
  • ब्राजील की रणनीति: ब्राजील BRICS को वैश्विक दक्षिण की आवाज बनाना चाहता है, लेकिन वह अमेरिका के साथ टकराव से बचना चाहता है.

क्या यह नया शीत युद्ध है?

BRICS और पश्चिमी देशों के बीच तनाव को शीत युद्ध कहना जल्दबाजी हो सकती है, लेकिन कुछ संकेत इसे दर्शाते हैं...

आर्थिक युद्ध: अमेरिका और NATO के टैरिफ और प्रतिबंध BRICS देशों को आर्थिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश हैं. यह पुराने शीत युद्ध की तरह नहीं, बल्कि आर्थिक और तकनीकी प्रतिस्पर्धा का रूप ले रहा है.

वैचारिक टकराव: BRICS वैश्विक दक्षिण की आवाज बनकर पश्चिमी वर्चस्व को चुनौती दे रहा है, जबकि NATO और अमेरिका अपनी सैन्य और आर्थिक शक्ति को बनाए रखना चाहते हैं.

BRICS की कमजोरियां: BRICS देशों के बीच एकजुटता की कमी (जैसे भारत-चीन तनाव) और कुछ देशों का पश्चिम के साथ जुड़ाव (जैसे भारत और ब्राजील) इसे पूरी तरह संगठित विरोधी ब्लॉक बनने से रोकता है.

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हालांकि, यह टकराव अभी सैन्य युद्ध की बजाय आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर है. अगर BRICS अपनी मुद्रा या वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्था को मजबूत करता है, तो तनाव और बढ़ सकता है.

भारत की स्थिति और भविष्य

भारत BRICS में एक प्रमुख भूमिका निभाता है. 2026 में BRICS समिट की मेजबानी करेगा. भारत की नीति संतुलन की है. वह न तो पूरी तरह पश्चिम के साथ है. न ही पूरी तरह उनके खिलाफ. भारत रूस से सस्ता तेल और हथियार लेना जारी रखेगा, लेकिन वह अमेरिका और NATO के साथ भी रिश्ते बनाए रखेगा. NATO की धमकी भारत के लिए एक चुनौती है, लेकिन भारत ने पहले भी ऐसी धमकियों का जवाब अपनी स्वतंत्र विदेश नीति से दिया है.

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