चारधाम जैसी यात्राओं पर क्यों जाती है लोगों की जान? किन गलतियों से बचने की सलाह दे रहे एक्सपर्ट

चारधाम यात्रा (Char Dham Yatra) में अब तक 44 लोगों की मौत हो चुकी है. ज्यादातर लोगों की मौत सांस संबंधी दिक्कतों और दिल की बीमारियों की वजह से हुई है. पहाड़ों की यात्रा कहीं जिंदगी भर सुनाने के लिए बुरी कहानी न बन जाए, इसलिए वैज्ञानिकों, हिमालय के एक्सपर्ट और डॉक्टर्स की ये सलाह माननी चाहिए...

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Char Dham Yatra 2022: अब तक 44 लोगों की मौत हो चुकी है. पहाड़ी जलवायु से एडजस्ट करना जरूरी. (फोटोः गेटी) Char Dham Yatra 2022: अब तक 44 लोगों की मौत हो चुकी है. पहाड़ी जलवायु से एडजस्ट करना जरूरी. (फोटोः गेटी)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 18 मई 2022,
  • अपडेटेड 12:12 PM IST
  • पर्वतारोही, साइंटिस्ट और डॉक्टर ने कही ये बात
  • पहाड़ पर जाने से पहले ये चीजें करना बेहद जरूरी

पहाड़ों पर जाते समय खासतौर से धार्मिक यात्राओं के समय लोग आस्था और जल्दबाजी के चक्कर में सेहत का ख्याल नहीं रखते. जबकि, उन्हें अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही पहाड़ों पर यात्रा करनी चाहिए. चारधाम यात्रा (Char Dham Yatra) के दौरान हर साल लोगों की मौत होती है. इसके आंकड़ें भी हैं. इस साल अब तक 44 लोगों की मौत हो चुकी है. केदारनाथ में 18, यमुनोत्री में 14, बद्रीनाथ में 8 और गंगोत्री में 4. आखिरकार इन मौतों के पीछे की वजह क्या है? क्या पहाड़ों की क्षमता लोगों के अनुपात में कम है? क्या वहां जाने वाले सभी लोगों के फेफड़ों में उनके हिस्से की हवा नहीं मिल रही है? या फिर लोग अपनी सेहत की जांच कराए बगैर, बिना पहाड़ी जलवायु से अभ्यस्त हुए यात्रा पर निकल गए?

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साइंटिस्ट और एक्सपर्ट्स कहते हैं कि पहाड़ों पर जाने से पहले शरीर को एक्लीमेटाइज (Acclimatize) करना होता है. यानी पहाड़ी जलवायु के हिसाब से शरीर को ढालना. यह आसान काम नहीं है. क्योंकि लोगों के पास समय कम है. जल्दी जाकर, जल्दी लौटना भी होता है. इसलिए कोई इस बात पर ध्यान नहीं देता. दूसरी है आपकी सेहत. सांस संबंधी दिक्कत हो, ब्लड प्रेशर हो या दिल संबंधी दिक्कत हो या फिर शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो. तब आपको यात्रा से बचना चाहिए... या फिर यहां बताए एक्सपर्ट्स की सलाह माननी चाहिए. क्योंकि आपके शरीर का ऊंचाई और उसके जलवायु से सीधा संबंध हैं. 

पहाड़ी यात्रा से पहले लोगों को रखना चाहिए जलवायु के साथ शरीर को एडजस्ट करने का ख्याल. (फोटोः गेटी)

ऊंचाई भी है मौत की जरूरी वजह, पहले चारों धामों की ऊंचाई समझे

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चारधाम यात्रा में चार जगहों की यात्रा की जाती है. गंगोत्री (Gangotri), यमुनोत्री (Yamunotri), बद्रीनाथ (Badrinath) और केदारनाथ (Kedarnath). भागीरथी नदी के पास स्थित गंगोत्री की ऊंचाई समुद्र तल से 3100 मीटर है. यमुना नदी का उद्गम स्थल यमुनोत्री 3293 मीटर की ऊंचाई पर है. बद्रीनाथ की ऊंचाई 3300 मीटर है. जबकि, केदारनाथ की ऊंचाई 3583 मीटर है. दिल्ली की समुद्र तल से ऊंचाई 300 मीटर है. दिल्ली को इस लिस्ट में शामिल करने की वजह हम आपको आगे बताते हैं. 

एक दिन में चढ़ना चाहिए सिर्फ 1000 मीटर, कभी जल्दबाजी न करें

IIT रुड़की (IIT Roorkee) के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट के ग्लेशियर एक्सपर्ट और हिमालयी क्षेत्रों के जानकार प्रवीण कुमार सिंह ने कहा कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में पहाड़ों पर जाने वालों के लिए मेडिकल रिकमंडेशन दिए हैं कि 24 घंटे में औसतन 500 मीटर और अधिकतम 1000 मीटर की ऊंचाई पूरी करनी चाहिए. लोग चारधाम जैसी यात्राओं में जल्दबाजी करते हैं. कोशिश करते हैं कि जल्दी दर्शन हो जाए. इस दौरान वो कभी भी अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखते. शरीर को पहाड़ों के अनुसार एक्लीमेटाइज करना जरूरी होता है. अगर आप 500 से 1000 मीटर जाते हैं. तो वहां एक दिन या रात रुक कर थोड़ी ट्रेकिंग करनी चाहिए. ताकि शरीर पहाड़ी जलवायु के साथ एडजस्ट कर सके. 

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ऊंचाई वाले स्थानों पर हवा पतली हो जाती है. ऑक्सीजन का स्तर गिर जाता है. (फोटोः गेटी)

पर्वतारोही और साइंटिस्ट रुक-रुक कर जाते हैं पहाड़ों पर

प्रवीण सिंह ने अपनी एवरेस्ट यात्रा के दौरान की कहानी बताई. उन्होंने कहा कि हम लगातार ग्लेशियर्स की स्टडी पर अलग-अलग ऊंचाई वाले स्थानों पर जाते हैं. हम पहाड़ों पर जाने के नियमों का पूरा पालन करते हैं. एवरेस्ट बेस कैंप तक जाने से पहले 3000 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचने के लिए हमने 11 दिन की यात्रा की थी. उसके बाद बेस कैंप पर 20 दिन तक रुके रहे. अगर जल्दबाजी करते तो हमारी हालत खराब हो जाती. हम 2100 मीटर पर स्थित लुकला पर रुके, फाकडिंग में 26 से 2700 मीटर और 3100 मीटर पर नामचे बाजार में दो दिन रुके. वहां ट्रैकिंग की. फिर 37-3800 मीटर पर मौजूद लोबुचे और 4400 मीटर पर मौजूद दिंगबोचे पर तीन दिन रुके. इसके बाद बेस कैंप गए. 

कोरोना और पुरानी बीमारियां कर रही है इस समय परेशान

प्रवीण सिंह ने सलाह दी है कि चारधाम यात्रा करने वालों को रुद्रप्रयाग या गौरीकुंड या देवप्रयाग में एक रात या एक दिन रुक कर शरीर को एडजस्ट करना चाहिए. पहाड़ों पर अगर बारिश होती है, तो ह्यूमेडिटी बढ़ जाती है. ऐसे में ऑक्सीजन की कमी बढ़ जाती है. कोरोना काल में सबकी फिटनेस खराब हो चुकी है. सांस संबंधी दिक्कतें हो रही हैं. इसकी वजह से ऊंचाई पर जाने में दिक्कत आती है. जब ऑक्सीजन कम मिलती है तो दिल का काम तेजी से बढ़ जाता है. ब्लड प्रेशर बढ़ता है, इससे काफी ज्यादा नुकसान होता है. 

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बारिश के मौसम में अगर पहाड़ों पर ह्यूमेडिटी बढ़ती है तो दमा और फेफड़े संबंधी बीमारियों के लोगों को होती है दिक्कत. (फोटोः गेटी)

पहाड़ पर जाने से पहले करानी चाहिए मेडिकल जांच 

दिल्ली के बत्रा हॉस्पिटल स्थित कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. नबजीत तालुकदार ने कहा कि ऊंचाई वाले स्थान पर बीपी की समस्या एक बड़ी दिक्कत है. अगर सांस संबंधी दिक्कत है तो आपको हाई-एल्टीट्यूड एडिमा होने की आंशका बनी रहती है. पहाड़ों पर जाने वाले लोग 40-50 हजार रुपये यात्रा में खर्च करते हैं. लेकिन उससे पहले मेडिकल जांच में थोड़ा खर्चा करके सेहत की रिपोर्ट नहीं लेते. पहाड़ पर पला-बढ़ा व्यक्ति और मैदानी इलाकों के इंसान की शारीरिक क्षमता में अंतर होता है. ऊंचाई पर हवा पतली होती है. ऑक्सीजन की कमी होती है. 

ऐसी यात्रा से पहले ट्रेडमिल टेस्ट बेहद जरूरी है

डॉ. नबजीत तालुकदार ने कहा कि लोगों को जाने से पहले ट्रेडमिल टेस्ट यानी टीएमटी टेस्ट कराना चाहिए. अगर इस टेस्ट में रिजल्ट 7 से 8 मेटोबोलिक इक्विवैलेंट होता है जो वह ट्रेकिंग पर जा सकता है. अगर इससे कम है तो नहीं जाना चाहिए. सामान्य इंसान को एक दिन में 500 मीटर से ज्यादा नहीं चढ़ना चाहिए. अगर कोई एथलीट बॉडी का है तो भी उसे 24 घंटे में 1000 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर नहीं चढ़ना चाहिए. हीमोग्लोबिन लेवल सही होना चाहिए. दमा या फेफड़े की बीमारी नहीं होनी चाहिए. 

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300 मीटर ऊंची दिल्ली से सीधे 3500 मीटर ऊपर जाएंगे तो शॉक लगेगा

नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग से पर्वतारोहण की ट्रेनिंग प्राप्त वैज्ञानिक डॉ. भानु प्रताप कहते हैं कि पहाड़ी यात्राओं से पहले शरीर को वहां की जलवायु के हिसाब से एडजस्ट करना बेहद जरूरी है. अगर आपको 4000 मीटर की ऊंचाई पर जाना है तो कम से कम 2000 मीटर की ऊंचाई पर जाकर 2-3 दिन रुके. वहां ट्रेकिंग करे. वहां के जलवायु के साथ शरीर को अभ्यस्त करें. अगर अचानक से आप दिल्ली के 300 मीटर की ऊंचाई से सीधे 3500 मीटर की ऊंचाई पर जाएंगे तो आपके शरीर को शॉक लगेगा. पर्वतारोही और ट्रेकर हाईट गेन और हाईट लॉस के फॉर्मूले पर काम करते हैं. यानी किसी निचली ऊंचाई से ऊपर जाते हैं, थोड़ा समय वहां बिताते हैं फिर वापस नीचे आते हैं. वो इसी तरह से अपने शरीर को एडजस्ट करते हैं. 

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