दिल्ली, बिहार, हिमाचल... प्राकृतिक आपदाएं कैसे भारत के नक्शे को शहर-दर-शहर बदल रही हैं?

प्राकृतिक आपदाएं भारत के नक्शे को धीरे-धीरे बदल रही हैं. हिमालय से लेकर तटीय इलाकों तक, हर जगह भौगोलिक बदलाव दिख रहे हैं. बाढ़ और भूस्खलन से शहरों का ढांचा कमजोर हो रहा है. हिमाचल, दिल्ली और ओडिशा जैसे इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. जलवायु परिवर्तन और हमारी गलतियां इसके पीछे हैं.

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इस तरह की तस्वीर हर मॉनसून में आपको देश के किसी न किसी शहर की मिल जाएगी. (Photo: Representational/Getty) इस तरह की तस्वीर हर मॉनसून में आपको देश के किसी न किसी शहर की मिल जाएगी. (Photo: Representational/Getty)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 02 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 5:18 PM IST

प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, भूस्खलन और चक्रवात भारत में इन दिनों बहुत बड़ी समस्या बन गए हैं. ये आपदाएं न सिर्फ लोगों की जिंदगी और संपत्ति को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि धीरे-धीरे भारत के भौगोलिक नक्शे को भी बदल रही हैं. शहरों की शक्ल और इलाकों का ढांचा बदल रहा है. आइए, समझते हैं कि यह सब कैसे हो रहा है? 

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1. भारत के कौन से क्षेत्र बाढ़ और भूस्खलन से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं?

भारत के कई हिस्से इन आपदाओं से जूझ रहे हैं...

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  • हिमालयी क्षेत्र: हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में भूस्खलन और बाढ़ आम बात हो गई है. 2023 में भारी बारिश से हिमाचल में सड़कें और घर बह गए थे.
  • गंगा-यमुना का मैदान: बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में हर साल बाढ़ आती है. यमुना नदी ने दिल्ली में 2023 में रिकॉर्ड जलस्तर तोड़ा था.
  • तटीय इलाके: ओडिशा, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में चक्रवात और बाढ़ से नुकसान होता है. 2023 के चक्रवात मिचांग ने चेन्नई को बुरी तरह प्रभावित किया.
  • पश्चिमी भारत: गुजरात और राजस्थान में सूखे के बाद कभी-कभी बाढ़ आती है, जो मिट्टी को कमजोर करती है.

ये इलाके भौगोलिक स्थिति और मौसम के कारण सबसे ज्यादा खतरे में हैं.

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2. भारत में बार-बार भूस्खलन और बाढ़ आने के क्या कारण हैं?

इन आपदाओं के पीछे कई कारण हैं...

  • जलवायु परिवर्तन: गर्मी बढ़ने से बारिश अनियमित और भारी हो रही है, जो बाढ़ और भूस्खलन को बढ़ावा देती है.
  • पहाड़ों की कटाई: हिमालय और पश्चिमी घाट में पेड़ों की कटाई से मिट्टी ढीली हो जाती है, जिससे भूस्खलन होता है.
  • शहरीकरण: शहरों में सड़कें और इमारतें बनाने के लिए नदियों और नालों को बंद किया जाता है, जिससे पानी रुक जाता है और बाढ़ आती है.
  • अधिक आबादी: ज्यादा लोग रहने से पहाड़ों और मैदानों पर दबाव पड़ता है, जो खतरे को बढ़ाता है.
  • मॉनसून: जून से सितंबर में 80% बारिश होने से नदियां ओवरफ्लो हो जाती हैं.

ये कारण मिलकर भारत में आपदाओं को बार-बार ला रहे हैं.

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3. ये आपदाएं भारत की भौगोलिक संरचना को कैसे बदल रही हैं?

प्राकृतिक आपदाएं धरती की शक्ल बदल रही हैं...

  • हिमालय में बदलाव: भूस्खलन से पहाड़ों की ऊंचाई कम हो रही है. नदियों का रास्ता बदल रहा है. उत्तराखंड में ग्लेशियर पिघलने से नदियां चौड़ी हो रही हैं.
  • मैदानों का डूबना: बाढ़ से गंगा और ब्रह्मपुत्र के किनारे की जमीन धीरे-धीरे कम हो रही है. बिहार में कई गांव अब नदियों में समा गए हैं.
  • तटीय इलाकों का सिकुड़ना: चक्रवात और समुद्र का बढ़ता स्तर ओडिशा और पश्चिम बंगाल के तट को कम कर रहा है.
  • नई नदियां बनना: भारी बारिश से नई नालियां और नदियां बन रही हैं, जो पुराने नक्शे को बदल रही हैं.

ये बदलाव धीरे-धीरे हो रहे हैं, लेकिन लंबे समय में भारत का नक्शा बिल्कुल अलग दिख सकता है.

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4. क्या भारतीय शहर प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील हो रहे हैं?

हां, शहर अब ज्यादा खतरे में हैं...

  • मुंबई और चेन्नई: 2005 और 2015 की बाढ़ में इन शहरों की सड़कें पानी में डूब गईं, क्योंकि नालियां पुरानी हो गई हैं.
  • दिल्ली: यमुना की बाढ़ ने 2023 में कई कॉलोनियों को प्रभावित किया. ज्यादा इमारतें बनने से पानी निकलने की जगह कम हो गई.
  • हिमाचल और उत्तराखंड: पर्यटन और सड़क निर्माण से पहाड़ कमजोर हो रहे हैं, जिससे भूस्खलन बढ़ा है.
  • गुजरात: चक्रवात बिपरजॉय ने अहमदाबाद को नुकसान पहुंचाया, क्योंकि शहर फैलने से नदियां प्रभावित हुईं.

शहरों में आबादी और निर्माण बढ़ने से ये आपदाओं के लिए कमजोर हो रहे हैं.

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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

1. इन आपदाओं को कम करने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है?

सरकार ने कई कदम उठाए हैं...

  • चेतावनी सिस्टम: मौसम विभाग और INCOIS बाढ़ और भूस्खलन की पहले से चेतावनी देते हैं.
  • बांध और नाले: नदियों पर बांध बनाए जा रहे हैं. शहरों में नालों को साफ किया जा रहा है.
  • जागरूकता: लोगों को आपदा किट और सुरक्षित जगहों के बारे में बताया जा रहा है.

फिर भी, इन कदमों को और तेज करने की जरूरत है.

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2. क्या भारत में बढ़ती बाढ़ और भूस्खलन के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

हां, ज्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन एक बड़ा कारण है. गर्मी बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. बारिश अनियमित हो रही है. लेकिन पेड़ों की कटाई और गलत निर्माण भी इसमें शामिल हैं. यह सिर्फ प्रकृति की गलती नहीं, हमारी आदतों का भी नतीजा है.

भारत में बाढ़, भूस्खलन और प्राकृतिक आपदाओं का डेटा (2025 तक अनुमानित)

भारत में प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़ और भूस्खलन हर साल भारी नुकसान पहुंचाते हैं. नीचे हाल के आंकड़ों और अनुमानों के आधार पर सांख्यिकीय जानकारी दी जा रही है...

बाढ़ प्रभावित क्षेत्र: भारत के कुल 329 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में से 40 मिलियन हेक्टेयर (12% से ज्यादा) बाढ़ के खतरे में है. हर साल औसतन 75 लाख हेक्टेयर जमीन बाढ़ से प्रभावित होती है.

जान-माल का नुकसान: हर साल लगभग 1,600 लोग बाढ़ में जान गंवाते हैं. पिछले 10 सालों (1996-2005) में औसत वार्षिक नुकसान 4745 करोड़ रुपये था, जो पहले के 53 सालों के 1805 करोड़ रुपये से कहीं ज्यादा है.

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विस्थापन: 2015 से 2024 के बीच भारत में 3.2 करोड़ लोग बाढ़, तूफान और भूस्खलन जैसी आपदाओं से विस्थापित हुए. 2024 में अकेले 4.58 करोड़ बार लोग बेघर हुए.

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भूस्खलन: हिमालयी क्षेत्रों में हर साल 200-300 भूस्खलन की घटनाएं होती हैं. 2023 में हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश से 100 से ज्यादा भूस्खलन दर्ज किए गए.

चक्रवात: हर साल औसतन 2-3 बड़े चक्रवात तटीय इलाकों (ओडिशा, पश्चिम बंगाल) में आते हैं. 2023 में चक्रवात मिचांग ने चेन्नई को प्रभावित किया.

फसल और संपत्ति: बाढ़ से हर साल फसलों, घरों और सार्वजनिक सुविधाओं को 1805 करोड़ रुपये का नुकसान होता है, जो बढ़ता जा रहा है.

जलवायु परिवर्तन का असर: पिछले 10 सालों में मौसम से जुड़ी आपदाओं (बाढ़, तूफान) से 21.9 करोड़ विस्थापन हुए, जो सालाना 2.24 करोड़ के हिसाब से है.

(ये आंकड़े मौसम विभाग और अन्य स्रोतों से लिए गए अनुमान हैं, जो 2025 तक के रुझानों पर आधारित हैं. सटीक डेटा हर साल बदल सकता है, लेकिन खतरा बढ़ता जा रहा है. सावधानी और तैयारी जरूरी है.)

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